G20 की स्थापना का प्राथमिक कारण: वैश्विक आर्थिक समन्वय की आवश्यकता

आज के वैश्विक परिदृश्य में जब भी विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की बात होती है, तो G20 का नाम सर्वोपरि आता है। यह समूह केवल देशों का एक संगठन नहीं, बल्कि वैश्विक आर्थिक सहयोग और स्थिरता की दिशा में एक सामूहिक प्रयास है। लेकिन सवाल उठता है—G20 की स्थापना क्यों हुई? इसकी आवश्यकता क्या थी?

इसका सीधा और प्राथमिक उत्तर है: वैश्विक आर्थिक समन्वय की आवश्यकता


G20 की उत्पत्ति – एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

1990 के दशक के अंत में दुनिया एक बड़े आर्थिक संकट से गुज़र रही थी। 1997-98 का एशियाई वित्तीय संकट दुनिया की कई उभरती अर्थव्यवस्थाओं को हिला कर रख चुका था। मौजूदा अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संस्थाएं जैसे G7 (जो मुख्यतः विकसित देशों का समूह था) इस संकट का प्रभावी समाधान नहीं दे पा रही थीं।

ऐसे में यह महसूस किया गया कि केवल विकसित देशों के परामर्श से वैश्विक आर्थिक संकटों का समाधान संभव नहीं है। आवश्यक हो गया था कि विकासशील और उभरती अर्थव्यवस्थाओं को भी चर्चा और निर्णय प्रक्रिया में शामिल किया जाए। इसी सोच के तहत 1999 में G20 का गठन किया गया।


G20 का प्रारंभिक उद्देश्य: समन्वित वैश्विक आर्थिक नीति

G20 की स्थापना का मूल उद्देश्य था—
“विकसित और उभरती अर्थव्यवस्थाओं के बीच संवाद और समन्वय को बढ़ावा देकर वैश्विक वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करना।”

यह पहली बार था जब बड़ी उभरती अर्थव्यवस्थाओं (जैसे भारत, चीन, ब्राज़ील, दक्षिण अफ्रीका आदि) को विकसित देशों के साथ आर्थिक मुद्दों पर समान मंच प्रदान किया गया। इससे वैश्विक नीतियों में संतुलन और न्याय का बीज बोया गया।


आर्थिक समन्वय क्यों था आवश्यक?

  1. साझा संकट, साझी ज़िम्मेदारी:
    वैश्विक अर्थव्यवस्थाएं अब आपस में अत्यधिक जुड़ी हुई थीं। एक क्षेत्र में आर्थिक अस्थिरता का असर पूरे विश्व पर पड़ सकता था। समन्वय के बिना कोई भी उपाय अधूरा होता।
  2. वित्तीय बाजारों की निगरानी:
    बैंकों, निवेश संस्थाओं और वैश्विक पूंजी प्रवाह पर निगरानी रखने हेतु एक सामूहिक दृष्टिकोण की ज़रूरत थी।
  3. नीतिगत समन्वय:
    व्यापार, कर नीति, ऋण, ब्याज दर, जलवायु वित्त और डिजिटल अर्थव्यवस्था जैसे क्षेत्रों में सुसंगत वैश्विक रणनीति आवश्यक थी।
  4. उभरती अर्थव्यवस्थाओं की भागीदारी:
    विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाएं विश्व अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देने लगी थीं, लेकिन उन्हें नीति-निर्माण में बराबरी नहीं मिल रही थी। G20 ने इस असंतुलन को कुछ हद तक ठीक किया।

G20 की सफलता के संकेत

  • 2008 का वैश्विक वित्तीय संकट जब चरम पर था, तब G20 ने निर्णायक भूमिका निभाई।
  • G20 देशों ने समन्वयित रूप से बचाव पैकेज, बैंकिंग सुधार, और आर्थिक प्रोत्साहन योजनाएं बनाईं।
  • परिणामस्वरूप, वैश्विक मंदी पर जल्द काबू पाया गया और वित्तीय प्रणाली को पुनर्स्थापित किया गया।

निष्कर्ष: वैश्विक समन्वय का प्रभावी मंच

G20 की स्थापना ने यह स्पष्ट कर दिया कि आज की दुनिया को केवल कुछ विकसित देशों द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता। विकासशील, उभरती और विकसित सभी अर्थव्यवस्थाओं को एक साथ मिलकर नीतियाँ बनानी होंगी ताकि वैश्विक संकटों का सामना समुचित ढंग से किया जा सके।

इसलिए कहा जा सकता है कि G20 की स्थापना का प्राथमिक कारण वैश्विक आर्थिक समन्वय की गहन आवश्यकता थी — और इस भूमिका को वह आज भी प्रभावी ढंग से निभा रहा है।

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