Hindi pedagogy Notes
इस पोस्ट में हम आपके लिए Hindi pedagogy Notes हिंदी शिक्षा शास्त्र के नोट्स(हिंदी पेडगोगी (शिक्षाशास्त्र)) आप सभी के साथ शेयर कर रहे हैं। अगर आप शिक्षक भर्ती की तैयारी कर रहे हैं ,और अगर उसमें आपने हिंदी लैंग्वेज को चुना है ,तो आपके लिए यह नोट्स बहुत ही मददगार साबित होने वाले हैं Hindi pedagogy विषय के Topic-1 मे भाषा अधिगम और भाषा अर्जन (language learning and language acquisition) Topic-2 मे भाषा शिक्षण के सिद्धांत , Topic-3मे भाषा विकास में सुनने तथा बोलने की भूमिका, Topic-3 मे अधिगम में व्याकरण की भूमिका, Topic-4 मे भाषायी विविधता वाले कक्षा कक्ष की चुनौतियां (Challenges of teaching language in divese classroom),Topic-5 मे भाषा कौशल (Language skill) के नोट्स आप सभी के साथ शेयर कर रहे हैं।
जैसा कि आप सभी को पता होगा कि CTET, UPTET, TGT, & ALL Teachers Exam मैं इससे संबंधित प्रश्न पूछे जाते हैं, तो इसी को ध्यान में रखते हुए हमने इस पोस्ट में Hindi pedagogy Notes को विस्तारपूर्वक बताया गया है।
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(Topic-1) Hindi pedagogy Notes
भाषा अधिगम और भाषा अर्जन
भाषा- “भाषा व साधन है जिसके द्वारा हम अपने विचारों को व्यक्त करते हैं। भाषा मुख से उच्चारित होने वाले शब्दों और वाक्यों आदि का वह समूह है जिनके द्वारा मन की बात बतलाई जाती है। सामान्यता भाषा को वैचारिक आदान-प्रदान का माध्यम कहा जाता है।”
भाषा का आरंभ मानव के जन्म के साथ ही हो जाता है। विभिन्न कौशल जैसे बोलना पढ़ना लिखना को पूरा करते हुए व्यक्ति भाषा में निपुणता प्राप्त करता है। भाषा ग्रहण करने की एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है।
अर्थ- भाषा संस्कृत की “भाष्” धातु से उत्पन्न हुई है, इसका अर्थ “बोलना “ होता है।
भाषा की प्रकृति
- भाषा एक अर्जित संपत्ति है जिसे प्रयोग के माध्यम से ही ग्रहण किया जा सकता है ,और आदान-प्रदान के द्वारा ही इसका विस्तार होता है अर्थात यह पैतृक नहीं है।
- भाषा एक सामाजिक तथा परंपरागत वस्तु है।
- भाषा अनुकरण से सीखी जाती है।
- भाषा में निरंतर परिवर्तन होता है अर्थात यह परिवर्तनशील होती है।
- प्रत्येक भाषा की अपनी व्यवस्था होती है जिससे उसके स्वरूप का पता चलता है, जैसे ध्वनि रूप- वाक्य, तत्व- अर्थ, तत्व- वर्णमाला ,तत्व- शब्द ,रूप- वाक्य, संरचना- सार्थक प्रयोग
- भाषा कठिनता से सफलता की ओर अग्रसर है।
- प्रत्येक भाषा की अपनी लिपि होती है। जैसे हिंदी- देवनागरी , अंग्रेजी- रोमन, उर्दू- फरसी ।
- भाषा संस्कृति और सभ्यता से जुड़ी होती है, साथ ही भाषा में सीमा बध्यता होती है।
भाषा अर्जन प्रक्रिया
अर्जन का अर्थ है – ” अर्जन करना किसी भी भाषा को व्यक्ति स्वयं के प्रयासों द्वारा अर्जित कर सकता है तथा भाषा एक अर्जित संपत्ति है।”
- बालक अपने चारों ओर के वातावरण में जिस प्रकार लोगों को बोलते हुए सुनता है, एवं लिखते हुए देखता है। उसे ही अनुकरण द्वारा सीखने का प्रयत्न करता है। अर्थात भाषा का अर्जन अनुकरण द्वारा होता है।
- भाषाई योग्यता एक कौशल है, जिसे अर्जित किया जाता है। अर्जन की प्रक्रिया बालक के जन्म से ही प्रारंभ हो जाती है।
- भाषा अर्जन में अभ्यास की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
- भाषा अर्जन द्वारा बालक अपनी प्रथम भाषा को सीखता है जो उसकी मातृभाषा होती है।
- चॉमस्की के अनुसार- बच्चे भाषा अपने वातावरण से अर्जित करते हैं उनके अंदर जन्मजात भाषा अर्जन युक्ति होती है।
- भाषा अर्जन एक अवचेतन प्रक्रिया है । भाषा सीखने वाली समानता इस बात से अनभिज्ञ होते हैं की भी भाषा सीख रहे हैं।
- भाषा अर्जन का मतलब है भाषा को अप्रत्यक्ष अनौपचारिक और स्वाभाविक रूप से सीखना।
भाषा अधिगम प्रक्रिया
- अधिगम का अर्थ है सीखना।
- गेट्स के अनुसार – अनवर द्वारा व्यवहार में रूपांतर लाना ही अधिगम है।
- क्रो एवं क्रो के अनुसार- सीखना आदतों ज्ञान एवं अभिवृत्ति यों का अर्जन है।
- पावलोव के अनुसार – अनुकूलित अनुक्रिया के परिणाम स्वरुप आदत का निर्माण ही अधिगम है।
- अधिगम एक मानसिक प्रक्रिया है जो जीवन भर चलती रहती है।
- अधिगम में बालक परिपक्वता की ओर बढ़ता है।
- वुड वर्थ के अनुसार – सीखना विकास की प्रक्रिया है।
- सीखना अनुभव द्वारा व्यवहार में परिवर्तन है।
विशेषताएं
- सीखने की प्रक्रिया आजीवन चलती है।
- सीखना परिवर्तन है- व्यक्ति अपने और दूसरों के अनुभव से सीख कर अपने व्यवहार विचारों इच्छाओं भावनाओं आदि में परिवर्तन करता है।
- सीखना अनुकूलन है सीख कर ही व्यक्ति नई परिस्थितियों से अपना अनुकूलन कर सकता है।
- सीखना सार्वभौमिक (universal) है सभी जीव जंतु सीखते हैं।
- सीखना अनुभवों का संगठन है सीखना नए पुराने अनुभवों का संगठन है।
- सीखना व्यक्तिगत व सामाजिक दोनों है।
- भाषा अधिगम में भाषा का औपचारिक ज्ञान/ प्रत्यक्ष रुप से सीखना शामिल होता है।
Note – भाषा अधिगम में उन छात्रों को कठिनाई नहीं आती जिनका मानसिक स्वास्थ्य ठीक हो यदि उनका स्वभाव संकोची और आत्मविश्वास कम हो तब उन्हें भाषा सीखने में कठिनाई होगी।
हिंदी भाषा शिक्षण की विधियाँ Notes |
भाषा शिक्षण के सिद्धांत (principal of language teaching)
भाषा शिक्षण से संबंधित कुछ सिद्धांत निम्नलिखित हैं
1 अभिप्रेरणा एवं रुचि का सिद्धांत( theory of motivation and interest )
सिद्धांत के अनुसार भाषा तथा उसकी पाठ्य सामग्री के प्रति रुचि उत्पन्न करना आवश्यक है शिक्षण प्रणालियों का चुनाव बच्चों की रुचि एवं आवश्यकताओं के अनुरूप किया जाना चाहिए
2 क्रियाशीलता का सिद्धांत (theory of creativity)
बालक को करके सीखने में आनंद का अनुभव होता है क्या या प्रमुख शिक्षा शास्त्री ने जैसे फ्रोबेल, डिवी, मोंटेसरीने इस सिद्धांत पर बल दिया हैभाषा शिक्षण के समय छात्रों को सतत क्रियाशील रहना आवश्यक होता है इससे छात्रों की अध्ययन में रुचि बढ़ती है जैसे कि प्रश्न पूछना एवं मौखिक व लिखित कार्य करना
3 अभ्यास का सिद्धांत(theory of principal)
इसके अनुसार व्यक्ति जिस कार्य को बार-बार करता है उसे शीघ्र सीख जाता है एवं जिस क्रिया को बहुत समय तक नहीं करता उसे भूलने लगता है अतः भाषा शिक्षण के समय छात्रों को अभ्यास करते रहना चाहिए उदाहरण के लिए नए शब्दों को बोलने का अभ्यास करना चाहिए ।
4 समन्वय का सिद्धांत (theory of coordination)
मनोवैज्ञानिकों ने यह सिद्ध किया है, कि बच्चे उन विषयों एवं क्रियाओं में अधिक रुचि लेते हैं जिसमें उनके वास्तविक जीवन से संबंधित हो अतः शिक्षकों पाठ पढ़ाते समय उसे छात्रों के जीवन से जोड़ने का प्रयास करना चाहिए जिससे छात्र उसे शीघ्र ग्रहण कर पाए।
5 व्यक्तिगत विभिन्नता का सिद्धांत(theory of individual difference)
प्रतीक बालक एक दूसरे से भिन्न होता है कक्षा में छात्रों में व्यक्तिगत विभिन्नता पाई जाती है ,इसीलिए व्यक्तिगत विभिन्नता को ध्यान में रखते हुए भाषा शिक्षण करना चाहिए छात्रों की व्यक्तिगत परेशानियों को ध्यान में रखते हुए उनका निवारण करने का प्रयास करना चाहिए ।
6 क्रम का सिद्धांत(theory of integrated manner)
भाषा शिक्षण का मुख्य उद्देश्य छात्रों को भाषा के सभी कौशलों में निपुण करना चाहिए जैसे की वाचन कौशल, श्रवण कौशल, पठन कौशल, लेखन कौशल इन सभी कौशलों का समुचित ध्यान देना अत्यंत आवश्यक होता है सभी कौशलों को सिखाने का क्रम सही होना चाहिए अर्थात इन्हें क्रम से लिख सिखाना चाहिए इसका क्रम इस प्रकार है क्रम- श्रवण- वाचन- पठन- लेखन ।
7 अनुकरण का सिद्धांत (theory of imitation)
बच्चे अनुकरण द्वारा जल्दी सीखते हैं बच्चे अपने शिक्षक के बोलने,, लिखने स्वर एवं गति आदि का अनुकरण करके वैसे ही सीखने का प्रयत्न करते हैं अतः शिक्षकों को स्वयं अपनी उच्चारण, बोलने की गति, लेखन शुद्ध तथा स्वच्छ रखना चाहिए ।
8 शिक्षण सूत्रों का सिद्धांत (theory of teaching formula)
भाषा शिक्षण के कुछ सूत्र है शिक्षक को भाषा शिक्षण के दौरान इन सूत्रों को ध्यान में रखते हुए शिक्षण कार्य करना चाहिए इससे छात्रों को सीखने में आसानी होती है एवं शिक्षण अधिक प्रभावशाली होता है।
Hindi Pedagogy Notes : शिक्षण अधिगम प्रक्रिया,शिक्षण सूत्र |
सूत्र-
सरल | कठिन |
ज्ञात | अज्ञात |
मूर्त | अमूर्त |
विशिष्ट | सामान्य |
स्थूल | सूक्ष्मा |
आगमन | निगमन |
विश्लेषण | संश्लेषण |
9 बाल केंद्रिता का सिद्धांत (Child centered theory)
भाषा शिक्षण के समय एक शिक्षक को सदैव ध्यान में रखना चाहिए कि शिक्षण का केंद्र बालक है बालक की क्षमता, छमता रुष एवं स्तर आदि का ध्यान रखकर शिक्षण कार्य करना चाहिए ।
(Topic – 3) Hindi pedagogy Notes
भाषा विकास में सुनने और बोलने की भूमिका
भाषा विकास में सुनने तथा बोलने का विशेष महत्व है सुनने और बोलने की क्रिया एक साथ चलती है जब हम बच्चों के सामने कुछ बोलते हैं तो वे सुनते हैं ।
भाषा विकास में सुनने की भूमिका
मनुष्य में भाषा सीखने की प्रवृत्ति स्वाभाविक रूप से विद्यमान रहती है बच्चे शैशवावस्था से ही अनुकरण के द्वारा अपने माता पिता तथा अन्य सदस्यों से ध्वनि ग्रहण करते हैं सुनने को श्रवण कौशल कहा जाता है सुनते सुनते बच्चे भूलना चाहते हैं सुनना भाषा विकास का प्रथम चरण होता है सुनना भाषा विकास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है इस की भूमिका निम्नलिखित रुप से हम समझ सकते हैं ।
1 शुद्ध उच्चारण करने में- इसके माध्यम से बच्चे में शुद्ध उच्चारण करने के कौशल का विकास होता है सुनने के माध्यम से ही बचा बोलने में आने वाली उच्चारण संबंधी अशुद्धियों को दूर करने में सफल होता है ।
2 सोने से पहले बच्चे में अर्थ ग्रहण करने की योग्यता का विकास होता है सुनना ग्रहण कौशल के अंतर्गत आता है ।
3 शब्द भंडारण में वृद्धि- सुनने के माध्यम से ही एक बालक के शब्द कोष में वृद्धि होती है जिससे उसकी भाषा विकास में भी वृद्धि हो ।
4 ध्वनि का विभेदीकरण करने में- सुनना, भाइयों के विभेदीकरण का सबसे अच्छा माध्यम है इसके द्वारा बालक स्वर के उतार-चढ़ाव को सीख जाता है ।
5 छात्रों में भाषा के सीखने व साहित्य के प्रति रुचि पैदा करता है।
6 सुनना अन्य भाषा कौशलों के विकास में भी बहुत सहायक होता है जैसे वाचन कौशल, लेखन कौशल के विकास में
7 दूसरों की अभिवृद्धि ओं को ग्रहण करने में सुनना एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से बालक दूसरे के भावों, विचारों एवं अनुभव जेस्सी अभी व्यक्तियों को ग्रहण करता है यह अभिव्यक्ति या उसके अन्य कौशलों का भी विकास करती है ।
विद्यालय में बच्चों की सुनने की प्रक्रिया को बढ़ाने के लिए उन्हें कहानी, कविताएं एवं विभिन्न घटनाओं को सुनाया जाना चाहिए यदि सुनने की गतिविधि उद्देश्य पूर्ण एवं रोचक और उपयोगी होगी तो छात्र अधिक ध्यान केंद्रित करके सुनेगा ।
भाषा विकास में बोलने की भूमिका
बोलना भाषा विकास का दूसरा चरण होता है बोलने की आवश्यकता जीवन में प्रत्येक क्षेत्र में होती है बोलना भाषा का ही रूप है जिसका सर्वाधिक प्रयोग किया जाता है भाव एवं विचार बोलने की आवश्यक तत्व होते हैं जब हम किसी के सामने अपने भावों तथा विचारों किस रूट से अभिव्यक्त करते हैं तो यह क्रिया बोलना कहलाती है।
महत्व एवं भूमिका
1 बच्चों में सुनकर प्राप्त किए गए ज्ञान का मूल्यांकन करने में बोलने का बहुत महत्व होता है इसके माध्यम से एक शिक्षक बच्चों में भाषा संबंधित त्रुटियों की जांच करता है तथा शिक्षण प्रक्रिया का मूल्यांकन कर सकता है ।
2 भाव, विचार तथा ज्ञान को अभिव्यक्त करने में – बोलने के माध्यम से एक बालक अपने भाव, विचार तथा ज्ञान को अभिव्यक्त करता है जिससे उसमें भाषा का विकास होता है ।
3 बालक को को बोलने से शब्द- ध्वनि का पूर्ण ज्ञान हो जाता है बोलने की गति एवं उतार-चढ़ाव आदि सीख जाता है ।
4 बच्चों की झिझक समाप्त करने में- बोलने की प्रक्रिया द्वारा बच्चों में झिझक को दूर किया जा सकता है यह भाषा विकास में भी सहायक होता है ।
5 विद्यालय आधारित कार्यक्रमों में सक्रिय भूमिका निभाने में- भाषा विकास में बोलने का विशेष महत्व होता है बालक के बोलने की क्षमता ही उसे विद्यालय आधारित विभिन्न कार्यक्रम जैसे की भाषण, वाद विवाद एवं प्रश्नोत्तरी आदि में भूमिका निभाने को प्रेरित करती है ।
6 भाषा प्रवाह को कुशल बनाने में बोलने का विशेष महत्व होता है बोलने से भाषा पर उसकी पकड़ और मजबूत हो जाती है ।
विद्यालय में बच्चों के बोलने की शक्ति का विकास करने के लिए अवसर प्रदान कराने चाहिए जैसे की कविता, भाषण, व, वाद-विवाद, कहानी सुनाना, अंताक्षरी , समूह विचार-विमर्श आदि
भाषा के कार्य
भाषा के बिना मनुष्य पशु के समान है भाषा के कारण ही मनुष्य सर्वश्रेष्ठ प्राणी है मनुष्य के व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवन में भाषा का बहुत महत्वपूर्ण योगदान होता है ।
इसके कार्य निम्नलिखित हैं
1 विचारों के आदान-प्रदान का महत्वपूर्ण साधन है ।
2 भाषा मानव विकास का मूल आधार है – भाषा की शक्ति के माध्यम से ही मनुष्य प्रगति के पथ पर अग्रसर हुआ है भाषा के अभाव में मनुष्य विचार नहीं कर सकता और विचार के अभाव में वह अपने ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति भी नहीं कर सकता है
3 भाषा मानव सभ्यता एवं संस्कृति की पहचान है – जैसे-जैसे मानव समाज ने अपनी भाषा में प्रगति की वैसे वैसे उसकी सभ्यता एवं संस्कृति में विकास हुआ है ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति हुई और श्रेष्ठ साहित्य का भी सृजन हुआ है तब ही किसी जाति समाज व राष्ट्र की सभ्यता एवं संस्कृति का आकलन उसके साहित्य से किया जाता है
शिक्षण विधियाँ एवं उनके प्रतिपादक/मनोविज्ञान की विधियां,सिद्धांत: ( Download pdf)
एम ए पाई के अनुसार – “ भाषा की कहानी वास्तव में सभ्यता की कहानी है”
4 ज्ञान प्राप्ति का प्रमुख साधन है – भाषा के माध्यम से ही पुरानी पीढ़ी को सामाजिक विरासत के रूप में अब तक का समस्त संक्षिप्त ज्ञान भावी पीढ़ी को सौंप दिया है और यही क्रम निरंतर चलता रहता है।
5 भाषा राष्ट्र में एकता की भावना जागृत करने का कार्य करती है समस्त राष्ट्र प्रशासन का संचालन भाषा के माध्यम से ही होता है ।
भाषा को कैसे एक उपकरण के रूप में प्रयोग करते हैं?
- सीखने में- बच्चे भाषा के माध्यम से ही सीखते हैं एवं सोचते हैं बच्चों के लिए भाषा एक उपकरण के रूप में कार्य करती है जो बच्चा जितनी जल्दी बोलना सीखता है वह उतनी ही जल्दी सोचता है।
- क्षमताओं का विकास करने में – बच्चे अपनी क्षमताओं का विकास भाषा के माध्यम से करते हैं विभिन्न प्रकार के विचारों के आदान-प्रदान के द्वारा विभिन्न क्षमताओं का विकास करते हैं ।
- मानव सभ्यता एवं संस्कृति की पहचान करने में – बच्चे भाषा के माध्यम से साहित्य के द्वारा अपनी सभ्यता एवं संस्कृति का ज्ञान प्राप्त करते हैं तथा उसे पहचानते हैं ।
- भाषा से अपना बौद्धिक व मानसिक विकास करने में- विचारों के अभाव में मनुष्य का मानसिक विकास असंभव है क्योंकि विचार और भाषा का अटूट संबंध होता है विचारों से भाषा का जन्म होता है तथा भाषा विचारों को जन्म देती है भौतिक व मानसिक विकास के लिए विचार शक्ति की आवश्यकता होती है ।
- सामाजिक व्यवहार एवं सामाजिक अंत: क्रिया करने में – मानव जीवन में भाषा का बड़ा महत्व है बालक भी समाज के व्यवहार तथा सामाजिक अंतः क्रिया भाषा के माध्यम से ही करता है वह इसके द्वारा स्वयं का सामाजिक विकास करता है ।
(Topic – 4) Hindi pedagogy Notes
अधिगम में व्याकरण की भूमिका
भाषा को शुद्ध रूप से प्रयोग करने के लिए चार कौशलों की आवश्यकता होती है ।
(1) पढ़ना
(2) लिखना
(3) बोलना
(4) सुनना
शुद्ध भाषा सीखने के लिए व्याकरण का ज्ञान एवं प्रयोग आवश्यक होता है, जिसके लिए व्याकरण शिक्षण किया जाता है।
व्याकरण का अर्थ एवं परिभाषा
डॉ. जैगर के अनुसार – “प्रचलित भाषा संबंधी नियमों की व्याख्या ही व्याकरण है।” स्वीट के अनुसार – ” व्याकरण भाषा का व्यवहारिक विश्लेषण अथवा उसका शरीर विज्ञान है।” डॉ. ह्यूम ग्रील्ड के अनुसार – “भाषा के रूप में सार्थक एवं शुद्ध व्यवस्था ही व्याकरण है।” |
व्याकरण की भूमिका
- व्याकरण के नियमों का ज्ञान , छात्रों में” मौलिक” वाक्य संरचना की योग्यता का विकास करता है शुद्ध रूप से लिखिए तथा बोलने के कौशल का विकास करता है ।
- विद्यार्थियों में भाषा की अशुद्धता को समझने की शक्ति का विकास करना ।
- विद्यार्थियों को शुद्ध उच्चारण की शिक्षा प्रदान करना ।
- व्याकरण से भाषा का शुद्ध प्रयोग सीखना तथा भाषा में दक्षता प्राप्त करना ।
- विद्यार्थियों को विभिन्न ध्वनि का ज्ञान देना ।
- छात्रों को वाक्य रचना के नियम एवं विराम चिन्हों का शुद्ध प्रयोग आदि का ज्ञान कराना ।
- व्याकरण के बिना, स्पष्ट संचार असंभव है ।
- व्याकरण विधियों को शुद्ध सूक्ति, लोकोक्ति, मुहावरे आदि का अर्थ निकालने के योग्य बनाता है ।
व्याकरण के द्वारा संप्रेषण तथा लेखन कौशल का विकास
संप्रेषण तथा लेखन कौशल के विकास में व्याकरण की भूमिका का बहुत ही महत्व है बिना व्याकरण के ज्ञान के संप्रेषण तथा लेखन कौशल का विकास संभव नहीं होता है ।
संप्रेषण कौशल के विकास में व्याकरण की भूमिका
- यह बालक को में ऐसी क्षमता का विकास करने में सहायक है, जिससे कि वे अपने भावों को शुद्ध रूप से व्यक्त कर सकें।
- बालकों के अशुद्ध उच्चारण को शुद्ध करने में सहायक।
- इसके ज्ञान से बालक को में ऐसी क्षमता का विकास होता है, कि बालक प्रश्नों का उत्तर प्रवाह पूर्ण तरीके से दे सकें।
- यह बच्चों में भाषा संबंधी अभिव्यक्ति का विकास करने में भी सहायक है।
- व्याकरण शुद्ध एवं सही वाचन का अभ्यास करने में सहायक है।
लेखन कौशल के विकास में व्याकरण का महत्व
- व्याकरण ज्ञान से छात्र पढ़ी तथा सुनी हुई बातों को शुद्ध रूप से तथा विराम चिन्हों का सही प्रयोग करते हुए लेखन कौशल का विकास कर सकते हैं।
- यह छात्रों को लेखन शैली में मुहावरों, लोकोक्तियों का प्रयोग करने का शिक्षण देकर उनके लेखन कौशल में विकास करने में सहायक है।
- व्याकरण से छात्रों में विभिन्न नए नए शब्दों की समझ विकसित हो जाती है जिसका प्रयोग करके भी अपने लेखन कौशल का विकास कर सकते हैं।
- यह छात्रों को गद्य पद्य में अंतर समझा कर उनके लेखन कौशल का विकास करने में सहायक है।
- व्याकरण छात्रों के लेखन में संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया, प्रत्यय, उत्तर, तथा तत्सम शब्द, तद्भव शब्द आदि के प्रयोग से उनके लेखन कौशल में विकास करने में सहायक है
(Topic-5) Hindi pedagogy Notes
भाषायी विविधता वाले कक्षा कक्ष की चुनौतियां (Challenges of teaching language in divese classroom)
भाषायी विविधता –
- भाषायी विविधता को बहुभाषिकता भी कहा जाता है बहुभाषिकता भारत की संस्कृति का अभिन्न अंग है भारत एक बहु भाषी देश है यहां1000 से भी ज्यादा भाषा बोली जाती है।
- इतनी विविधता के बावजूद कई भाषिक व सांस्कृतिक टच को भारत को एक ही भाषिक क्षेत्र के रूप में बांधते हैं।
- बहुभाषिकता पर हुए अध्ययनों से स्पष्ट हुआ है कि बहुभाषिकता समाज में संप्रेषण को बाधित करने के बजाय सहायता प्रदान करती है।
- अतः हमारी शिक्षा व्यवस्था को इसे दबाने के बजाय बनाए रखने और प्रोत्साहित करने का भरपूर प्रयास करना चाहिए। इसी बात को ध्यान में रखते हुए त्रिभाषा सूत्र(1968 राज्य सरकार के शिक्षा मंत्रालय\ शिक्षा आयोग education commission) मैं लागू किया गया था।
शिक्षण में बहुभाषिकता के लाभ एवं आवश्यकताएं
- बहुभाषिकता, भारत के भाषा परिदृश्य का एक विशिष्ट लक्षण भी है उसे कक्षा की कार्य नीति का हिस्सा बनाना रचनात्मक भाषा शिक्षक का कार्य है।
- अलग अलग भाषिक पृष्ठभूमि ओं से होने के कारण बच्चों की शब्दों में उनके उच्चारण में विभिन्नता पाई जाती है भाषिक पृष्ठभूमि के आधार पर ही किसी को पीछे नहीं छोड़ा जा सकता।
- 2 भाषा बोलने वाले बच्चे, ना केवल अन्य भाषाओं पर अच्छा नियंत्रण रखते हैं, बल्कि अकादमिक स्तर पर भी भी ज्यादा रचनात्मकता दिखाते हैं। साथ ही उनमें सामाजिक सहिष्णुता भी अधिक पाई जाती है।
- द्विभाषी बच्चों की वैचारिक क्षमता अन्य बच्चों की तुलना में अच्छी होती है। यह विविध स्तर की परिस्थितियों से जूझने में कुशल होते हैं।
- इससे स्कूल छोड़ने वाले छात्रों की संख्या में कमी, अकादमिक उपलब्धि में सुधार ,विद्यार्थियों के आत्मा सम्मान में वृद्धि जैसे कई फायदे हैं।
- कक्षा कक्षा में छात्रों द्वारा अपनी मातृ भाषाओं का प्रयोग करने से छात्र अपने विचारों को सहजता से रख पाते हैं, जिससे शिक्षण अधिगम प्रक्रिया सुचारु रुप से चलती है
- कक्षा में विभिन्न भाषाओं का प्रयोग करना सांस्कृति आदान प्रदान का भी माध्यम है भिन्न-भिन्न भाषाओं के प्रयोग से सभी छात्रों को एक दूसरे की भाषा समझने का अवसर मिलता है। तथा वह अपनी मातृभाषा का सम्मान करने के साथ ही दूसरों की भाषाओं एवं संस्कृतियों का सम्मान करना भी सीखते हैं।
- बहुभाषिकता, बच्चों की अस्मिता का निर्माण करती है बहुभाषिकता पर हुए अध्ययनों से यह पता चलता है, कि द्विभाषी या बहुभाषिकता क्षमता संज्ञानात्मक वृद्धि, सामाजिक सहिष्णुता, विस्तृत चिंतन एवं बौद्धिक उपलब्धियों के स्तर को बढ़ाती है। इसीलिए भाषाओं को विद्यालयों में एक संसाधन के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
भाषा विविधता वाली कक्षा में भाषा- शिक्षण की कठिनाइयां
1 बच्चों में संप्रेषण कौशल का विकास करने की चुनौती – बच्चों में संप्रेषण कौशल का विकास करने के लिए भाषा पर नियंत्रण एवं इसमें कुशलता आवश्यक है। किंतु क्षेत्रीय भाषाओं के प्रभाव से इस में कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न होती है।
2 छात्रों में भाषाई कौशलों का विकास करने की चुनौती – भाषाई विविधता के कारण छात्रों को विविध भाषायी कौशलों के अधिगम( सुनने, बोलने, पढ़ने एवं लिखने) के विकास में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। क्योंकि क्षेत्रीय भाषा के प्रभाव के कारण भाषायी कौशलों पर भी इसका प्रभाव पड़ सकता है
3 अध्यापक को विभिन्न भाषाओं संबंधी ज्ञान की चुनौती – एक शिक्षक के लिए विभिन्न भाषाओं का ज्ञान होना कठिन है। जो बहुभाषी कक्षा में शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में एक समस्या के रूप में बनी रहती है।
4 भाषा के प्रति छात्रों की रूचि और रुझान का आभाव – भाषा विविधता के कारण भाषा शिक्षण की एक समस्या यह है कि छात्रों में भाषा के प्रति रुचि तथा रुझान का अभाव पाया जाता है। जिस कारण से भाषा शिक्षण का कार्य और अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
समस्याओं का समाधान
- बहुभाषीक कक्षा मैं शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए अध्यापक को समृद्ध भाषिक परिवेश का निर्माण करना चाहिए।
- बच्चे के स्कूल की भाषा और घर एवं पड़ोस की भाषा में समरूपता होनी चाहिए
- बच्चे प्रारंभ से ही बहु भाषिक शिक्षा प्राप्त कर सकें, इसके लिए त्रिभाषा फार्मूला को उसके मूल भाव के साथ लागू किए जाने की जरूरत है।
- बच्चों को प्राथमिक स्तर की विद्यालय शिक्षा उनकी मातृभाषा में दी जाए, जिससे शिक्षण अधिगम प्रक्रिया सरल एवं छात्रों के लिए सहज हो सके।
- बहुभाषी कक्षा में शिक्षण प्रक्रिया के दौरान अध्यापक को सदैव विद्यार्थियों को अपनी मातृभाषा में बोलने के अवसर प्रदान करनी चाहिए।
- शिक्षक को सभी छात्रों को सामान भाव से देखना चाहिए, तथा सबकी भाषा और विचारों को सम्मान देना चाहिए।
- सभी छात्रों को विश शिक्षण प्राप्त करने की प्रक्रिया में समान अवसर देना चाहिए, ताकि कोई भी छात्र अपने आप को कमजोर ना समझे।
बच्चों में भाषा संबंधित त्रुटियां (Language related errors)
बच्चों में भाषा संबंधी बहुत सी त्रुटियां पाई जाती हैं इन्हीं कारणों से कुछ बच्चे कक्षा में पिछड़ जाते हैं तथा भाषा शिक्षण में कम रूचि लेने लगते हैं बच्चों में भाषा संबंधी प्रमुख त्रुटियां इस प्रकार है।
1 उच्चारण संबंधी त्रुटियां
सीखने वाली भाषा के शब्दों का उच्चारण मानक भाषा से थोड़ा भिन्न होता है इसीलिए बच्चे शब्द तथा अक्षरों के उच्चारण में त्रुटियां करते हैं । उदाहरण के लिए कुछ छात्र व तथा ब , स तथा श , ड तथा ढ आधे अक्षरों को सही से उच्चारित नहीं कर पाते हैं।
2 व्याकरण संबंधित त्रुटियां
छात्र अक्सर द्वितीय भाषा सीखते समय व्याकरण संबंधित त्रुटियां करते हैं। व्याकरण अशुद्धियों में लिंग,, वचन, कारक आदि सम्मिलित होते हैं। व्याकरण त्रुटियों से बचने के लिए व्याकरण नियमों का सही ज्ञान होना अत्यंत आवश्यक होता है।
3 पाठन संबंधित त्रुटियां
यह कुछ छात्रों में पढ़ने संबंधी कठिनाई तथा त्रुटि आ पाई जाती है, क्योंकि पूर्व माध्यमिक कक्षाओं में उनका यह कौशल पूर्ण रूप से विकसित नहीं किया गया होता है। जिसके कारण उन्हें पढ़ने में कठिनाई आती है। दुनिया तेज पढ़ना विराम चिन्हों की उपेक्षा, संवादों को भावों अनुसार ना पढ़ पाना, अशुद्ध उच्चारण, सही सुर तथा लय का प्रयोग ना करना आदि पाठन संबंधित त्रुटियां होती है।
4 लेखन संबंधी त्रुटियां
छात्रों में लेखन संबंधित त्रुटियां पाई जाती है मात्राओं की अशुद्धियां, वर्णों को उचित आकार में ना लिख पाना, उल्टे अक्षर लिखना, शिरोरेखा ना लगाना आदि लेखन संबंधित त्रुटियां कहलाती है
5 शब्दावली संबंधित त्रुटियां
छात्रों में शब्दावली संबंधित त्रुटियां पाई जाती हैं।
भाषागत त्रुटियों के प्रकार
भाषागत त्रुटियों को दो श्रेणियों में रखा गया है।
(1) व्यवस्थित त्रुटियां
(2) अव्यवस्थित त्रुटियां
(1) व्यवस्थित त्रुटियां
इसका अभिप्राय भाषा व्यवहार की उन फूलों और अशुद्धियों से है जो किसी व्यक्ति के पारिवारिक और परिवेश गत संस्कारों के चलते उत्पन्न होती है इस प्रकार की अशुद्धियां प्राया स्थाई होती है और इनका उपशमन कठिन होता है इन अशुद्धियों में अनुचित उच्चारण और शब्दों के शुद्ध रूप ओं का प्रयोग साधारण है आमतौर पर इस प्रकार की अशुद्धियां किसी एक व्यक्ति के भाषा व्यवहार में ही ना होकर उस परिवेश के सभी प्रयोक्ता ओं मैं समान रूप से मौजूद होती हैं । शुद्ध भाषा परिवेश और कक्षा में औपचारिक भाषा शिक्षण इस प्रकार की भाषा त्रुटियों के संशोधन का एकमात्र उपाय है
(2) अव्यवस्थित त्रुटियां
इस प्रकार की त्रुटियां/ अशुद्धियां स्थाई ना होकर तात्कालिक कारणों से होती है इन के कारणों में शीघ्रता हर बड़ा हट, क्रोध जैसे आवेग के प्रमुख है, इस प्रकार की त्रुटियां कभी भी एक समान नहीं होती है क्योंकि भाषा प्रयोक्ता सही भाषा की सही रूप से परिचित होता है
इस प्रकार की त्रुटियों से बचने का कोई सुनिश्चित उपाय नहीं है क्योंकि इनके होने की कोई सुनिश्चित परिस्थिति नहीं है।
त्रुटियों के कारण
1 मातृभाषा व्याघात – द्वितीय भाषा सीखने वाले छात्रों पर मातृभाषा का स्पष्ट प्रभाव देखता है, क्योंकि शिक्षार्थी द्वितीय भाषा की ध्वनियों को अपनी पहली सीखी हुई, भाषा की ध्वनियों के संदर्भ में ग्रहण करता है
2 लक्ष्य भाषा की संरचनात्मक जटिलता – भाषा की संरचना भिन्न होने से द्वितीय भाषा सीखने वाले छात्र भाषा के कुछ स्तरों पर अधिकार प्राप्त नहीं कर पाते, और उन्हें कठिनाई होती है तथा भी त्रुटियां करते हैं
3 अच्छे शिक्षकों का अभाव – अच्छे शिक्षकों के अभाव के कारण छात्र भाषा में उच्चारण गत अशुद्धियां करते हैं क्योंकि यदि शिक्षक स्वयं ही किसी वर्ण यहां शब्द को गलत तरह से उपचारित करेगा तो छात्र भी वैसा ही उच्चारण सीखेंगे
- उच्चारण का मानक भाषा( मातृभाषा) सेविंग होना
- छात्रों की मानसिक स्थिति ठीक ना होने के कारण भी कई त्रुटियां हो सकती
- विज्ञान शब्दावली से अपरिचित या उसका ज्ञान ना होने के कारण भी त्रुटियां होती है
भाषागत त्रुटियों को दूर करने के उपाय
- बालकों को सही अक्षर बोध कराना।
- बालकों को विभिन्न अक्षरों की ध्वनियों का बोध कराना।
- उन्हें संयुक्त अक्षरों(ड , ढ\व ,ब \ स ,श ) आदि से अवगत कराना।
- लघु तथा दीर्घ ध्वनि का बोध कराने।
- सही उच्चारण से खाना तथा ज्यादा से ज्यादा अभ्यास कराना।
- बालक ओं को बलाघात का ज्ञान कराना।
- छात्रों को लघु और दीर्घ अक्षरों से परिचित करवाना।
- उच्चारण को सुधारने के लिए पाठ को बोल बोल कर पढ़ने का निर्देश देना चाहिए।
- एक समान त्रुटियां करने वाले विद्यार्थियों का समूह बनाकर दोष सुधार की व्यवस्था की जानी चाहिए।
- अच्छे शिक्षकों का चयन करना चाहिए ।
बच्चों में भाषा संबंधी विकार(Language disorders in children)
बच्चों में भाषा से संबंधित विकार के बारे में नीचे विस्तार पूर्वक बताया गया है
1 डिस्लेक्सिया( पढ़ने संबंधी विकार)
डिस्लेक्सिया शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्द “डस” और ” लेक्सिस”से मिलकर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ है, ” कथन भाषा” यह अधिगम अक्षमता का सबसे सामान्य प्रकार है। यह भाषा के लिखित रूप, मौखिक रूप एवं भाषायी दक्षता को प्रभावित करता है।
लक्षण-
- वर्ल्डमाला अधिगम में कठिनाई होना।
- अक्षरों की ध्वनियों को सीखने में कठिनाई हो ना।
- एकाग्रता में कठिनाई।
- शब्दों को उल्टा या अक्षरों का क्रम इधर-उधर कर पढ़ा जाना, जैसे नाम को मान्या शावक को शक पढ़ना।
- वर्तनी दोष से पीड़ित हो ना।
- स्मरण शक्ति का कम होना।
- समान उच्चारण वाले ध्वनियों को ना पहचान पाना।
- शब्दकोश का अभाव होना।
उपचार- डिस्लेक्सिया का उपचार पूर्ण रूप से असंभव है, लेकिन इसको उच्च शिक्षण अधिगम पद्धति के द्वारा निम्नतम स्तर पर लाया जा सकता है।
2 डिस्ग्राफिया (Discography) लेखन संबंधी विकार
डिस्ग्राफियालेखन क्षमता को प्रभावित करता है। यह वर्तनी संबंधी कठिनाइयां, खराब हस्त लेखन एवं अपने विचारों को लिपिबद्ध करने में कठिनाई के रूप में जाना जाता है।
लक्षण
- लिखते समय स्वयं से बातें करना ।
- अनियमित रूप और आकार वाले अक्षर को लिखना।
- लेखन सामग्री पर कमजोर पकड़, उसे कागज के बहुत पास से पकड़ना।
- पठनीय होने पर भी कॉपी( देख कर लिखने) करने में अत्याधिक श्रम का प्रयोग करना।
- अपठनीय हस्त लेखन ।
- लाइनों के ऊपर नीचे लिखना तथा शब्दों के बीच अनियमित स्थान छोड़ना।
- अपूर्ण अक्षर या शब्द लिखना।
उपचार- इस अधिगम अक्षमता से ग्रसित व्यक्ति को लेखन का ज्यादा से ज्यादा अभ्यास कराया जाना चाहिए
3 डिस्कैकुलिया(Disconculiya) गणितीय कौशल संबंधी विकार
इसके अंतर्गत अंकों, संख्याओं के अर्थ समझने की अयोग्यता से लेकर, अंकगणितीय समस्याओं के समाधान में सूत्रों एवं सिद्धांतों के प्रयोग की योग्यता तथा सभी प्रकार के गणितीय अक्षमता शामिल है।
लक्षण-
- गणितीय चिन्ह को समझने में कठिनाई होना।
- वित्तीय योजना या बजट बनाने में कठिनाई हो ना।
- समय सारणी बनाने में कठिनाई का अनुभव करना।
- दिशा ज्ञान का अभाव होना।
- समय बताने में कठिनाई का अनुभव करना।
उपचार- उचित शिक्षण अधिगम रण नीति अपना कर इसे कम किया जा सकता है।
4 डिस्फैसिया (Dysphasia) वाक् अक्षमता
डिस्फैसियाठीक है जब बच्चे विचार की अभिव्यक्ति व्याख्या के समय कठिनाई महसूस करते हैं। इस अक्षमता के लिए मुख्य रूप से मस्तिष्क क्षति को उत्तरदाई माना जाता है।
5 डिस्प्रेक्सिया(Dyspraxia) लेखन एवं चित्रांकन संबंधी विकार
यह मुख्य रूप से चित्रांकन संबंधी अक्षमता की ओर संकेत करता है। इससे ग्रसित बच्चे लिखने एवं चित्र बनाने में कठिनाई महसूस करते हैं।
(Topic – 6) Hindi pedagogy Notes
भाषा कौशल (Language skill)
- मनुष्य समाज में अन्य व्यक्तियों से संप्रेषण करने के लिए वह बोलकर या लिखकर अपने विचारों को अभिव्यक्त करता है, तथा सुनकर या पढ़कर उनके विचारों को ग्रहण करता है।
- भाषा से संबंधित इन चारों क्रियाओं के प्रयोग करने की क्षमता को भाषा कौशल कहा जाता है।
- इनका विकास एवं इन में दक्षता प्राप्त करना ही भाषा शिक्षण का उद्देश्य है।
- यह चारों कौशल एक दूसरे से अंतः संबंधित होते हैं अर्थात किसी न किसी रूप में एक दूसरे पर निर्भर करते हैं।
- व्यक्ति के सर्वांगीण विकास में भाषा कौशल की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
भाषा कौशल को चार भागो में बांटा गया है
- श्रवण कौशल ( सुनकर अर्थ ग्रहण करने का कौशल)
- वाचन कौशल( बोलने का कौशल)
- पठन कौशल( पढ़कर अर्थ ग्रहण करने का कौशल)
- लेखन कौशल( लिखने का कौशल)
1 श्रवण कौशल
- श्रवण का अर्थ” सुनना” होता है अतः श्रवण कौशल का संबंध “कर्ण” (कान) से है।
- ध्वनियों या उच्चारण को सुनना और सुनकर उसके अर्थ को समझना और उसे ग्रहण करने की योग्यता श्रवण कौशल कहलाता है।
- श्रवण एवं पठन कौशल को ग्रहआत्मक\ ग्राहित कौशल कहते हैं।
- श्रवण कौशल अन्य भाषीय कौशलों को आधार प्रदान करता है।
- छात्र कविता ,कहानी, भाषण, वाद विवाद आदि का ज्ञान सुनकर ही प्राप्त करता है।
- श्रवण कौशल के लिए मस्तिष्क की एकाग्रता एवं इंद्रियों का संयम आवश्यक होता है।
श्रवण कौशल का महत्व
- बच्चा जन्म के बाद ही सुनने लगता है, यह ध्वनिया उसके ज्ञान का आधार बनती है।
- श्रवण कौशल ही अन्य भाषायी हौसलों को विकसित करने का प्रमुख आधार बनता है।
- इससे ध्वनियों के सूक्ष्म अंतर को पहचानने की क्षमता विकसित होती है।
- विभिन्न साहित्यिक व सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्राप्ति में सहायक है।
श्रवण कौशल शिक्षण के उद्देश्य
- श्रुत सामग्री का सारांश ग्रहण करने की योग्यता विकसित करना।
- धैर्य पूर्वक सुनना, सुनने के शिष्टाचार का पालन करना।
- ग्रहण शीलता की मन स्थिति बनाए रखना। शब्दों, मुहावरों बा उक्तियां का अर्थ का भाव समझना।
- छात्रों में भाषा का साहित्य के प्रति रुचि पैदा करना।
- छात्रों का मानसिक एवं बौद्धिक विकास करना।
- भावो, विचारों को ढंग से समझने की शक्ति का विकास करना।
श्रवण कौशल विकसित करने की शिक्षण विधियां
1 कहानी सुनाना – कहानी के द्वारा बच्चों का ध्यान सुनने की तरफ आकर्षित किया जा सकता है
2 प्रश्नोत्तर विधि- कक्षा में शिक्षण के दौरान अध्यापक पठन सामग्री को आधार बनाकर प्रश्न पूछता है छात्र यदि सही से पाठ को सुनेगा तभी उत्तर दे पाएगा। पठित सामग्री के आधार पर प्रश्न पूछने से छात्र कक्षा में पढ़ाई गई बातों को ध्यान पूर्वक सुनेंगे।
3 भाषण विधि- प्रायः यह मौखिक कौशल को विकसित करने का साधन है। किंतु छात्रों को पहले यह बता दिया जाता है, की भाषण को ध्यान से सुने।
5 कविता सुनाना– श्रवण कौशल को विकसित करने के लिए छात्रों को कविता सुनाई जाती है।
श्रवण कौशल के शिक्षण हेतु श्रवण दृश्य सहायक सामग्री
1 | टेप रिकॉर्डर |
2 | रेडियो |
3 | चलचित्र |
4 | ग्रामोफोन |
5 | वीडियो |
6 | कंप्यूटर |
2 वाचन कौशल
- वाचन या बोलना भाषा का वह रूप है जिसका सबसे अधिक प्रयोग होता है।
- भावों और विचारों की अभिव्यक्ति का साधन साधारणतया उच्चारित भाषा ही होती है।
- जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में वाचन\ बोलने की आवश्यकता होती है। व्यक्ति का सबसे बड़ा आभूषण उसकी मधुर वाणी है।
- वाचन एवं लेखन कौशल को अभिव्यंजनात्मक \ उत्पादक कौशल कहते हैं
वाचन कौशल का महत्व
- विचारों के आदान-प्रदान के लिए।
- सरल , स्पष्ट एवं सहज बातचीत के लिए।
- मौखिक भाषा के प्रयोग में कुशल व्यक्ति, अपनी वाणी से जादू जगह सकता है।
- सामाजिक जीवन में सामंजस्य तथा सामाजिक संबंधों के मुद्रण बनाने में वाचन कौशल प्रमुख भूमिका में होती है।
वाचन कौशल के उद्देश्य
- बालकों का उच्चारण शुद्ध होना चाहिए।
- छात्रों को उचित स्वर, उचित गति के साथ बोलना सिखाना।
- छात्रों को सही व्याकरण वाली भाषा का प्रयोग करना सिखाना।
- छात्रों को लिसेन को ठोकर अपने विचार व्यक्त करने के योग्य बनाना।
- बोलने में विराम चिन्हों का ध्यान रखना सिखाना।
- छात्रों को धारा प्रवाह, प्रभावपूर्ण बानी में बोलना सिखाना।
- अवसर अनुकूल भाषा का प्रयोग करना सिखाना।
- सरल सुबोध तथा मुहावरे दार भाषा का प्रयोग सिखाना।
- स्पष्टता वाचन कौशल का एक महत्वपूर्ण गुण होता है। बालकों को स्पष्ट भाषा प्रयोग करना सिखाना।
वाचन कौशल विकसित करने की शिक्षण विधियां
1 वार्तालाप- शिक्षक को चाहिए कि वह प्रत्येक छात्र को वार्तालाप में भाग लेने के लिए प्रेरित करें। वार्तालाप का विषय छात्रों की मानसिक, बौद्धिक स्तर के अनुसार ही होना चाहिए।
2 सस्वर वाचन – पहले शिक्षक को पाठ पढ़ाना चाहिए, बाद में छात्रों से सस्वर वाचन (बोल – बोलकर पढ़ाना) कराना चाहिए।
3 प्रश्नोत्तर- शिक्षक को चाहिए कि वह छात्रों से पढ़ाए गए विषय के संबंध में प्रश्न उत्तर करें।
4 कहानी व कविता सुनाना- शिक्षक को छात्रों को वाचन कौशल के अंतर्गत कहानी एवं कविता सुनानी चाहिए।
5 चित्र वर्णन- छोटी कक्षा के बच्चे चित्र देखने में रुचि देते हैं। चित्र दिखाकर उसके बारे में छात्रों से पूछा जा सकता है।
6 वाद विवाद
7 नाटक प्रयोग
8 भाषण
9 समूह- विचार विमर्श, वर्णमाला विधि, अक्षर विधि
वाचन के प्रकार
1 सस्वर वाचन – बोल बोल कर( स्वर्ग के साथ)\ छोटी कक्षाओं हेतु
2 मौन वाचन- मन- मन में\ बड़ी कक्षा के लिए
आदर्श वाचन- पाठ पढ़ते समय जब शिक्षक स्वयं बोल- बोलकर पढ़ाता है तो उसे आदर्श वाचन कहते हैं।
अनुकरण वाचन- जब छात्र शिक्षक द्वारा पढ़ाए गए पाठ का अनुकरण करके पाठ को बोल कर पढ़ते हैं, तो वह अनुकरण वाचन कहलाता है।
सावधानियां
1 शिक्षक स्वयं सही उच्चारण करें।
2 यदि कोई छात्र प्राकृतिक कारणों से शुद्ध उच्चारण पाता है, तो उसके माता-पिता को सूचित करें तथा उचित चिकित्सा करवाएं।
3 बोलने में कठिनाई अनुभव करने वाले छात्रों को अधिक से अधिक बोलने का अवसर प्रदान कराएं।
4 बालकों में संकोच, झिझक, आदि ना आए।
5 बोलते समय छात्र सही स्वर,लय भावपूर्ण वाणी का ध्यान रखें,यह देखना चाहिए।
3. पठन कौशल
- साधारण अर्थ में पठन कौशल से तात्पर्य है कि लिखित भाषा को पढ़ना।
- भाषा कौशल में पठन कौशल का अर्थ है लिखी हुई भाषा को उच्चारित करना तथा भाग को ग्रहण करना।
- भाषा शिक्षण में पठन कौशल पर सबसे अधिक ध्यान दिया जाता है। पठन ज्ञान प्राप्त करने का सबसे आसान एवं सरल तरीका है।
पठन कौशल के प्रकार
पठन कौशल के दो प्रकार होते हैं जो कि इस प्रकार है।
1 सस्वर पठन
2 मौन पठन
1 सस्वर पठन- स्वर सहित पढ़ते हुए अर्थ ग्रहण करने को सस्वर पठन कहा जाता है वर्णमाला में लिपिबद्ध प्रणव की पहचान सस्वर पठन के द्वारा ही कराई जाती है यह पठान की प्रारंभिक अवस्था होती है।
सस्वर पठन के गुण-
- सस्वर पठन करते समय शुद्धता एवं स्पष्ट ता का ध्यान रखना चाहिए।
- पठान भावानुकूल करना चाहिए।
- विराम चिन्हों का ध्यान रखना चाहिए।
- सस्वर पठन में आत्मविश्वास होना चाहिए।
सस्वर पठन को पुनः दो भागों में बांटा गया है।
1 वैयक्तिक पठान( individual reading)
2 सामूहिक पठन(Group reading)
2 मौन पठन- लिखित सामग्री को चुपचाप बिना आवाज निकाले मन ही मन में पढ़ना मौन पठन कहलाता है।
महत्व एवं गुण-
- थकान कम होती है तथा मन नेत्र एवं मस्तिक से सक्रिय रहते हैं।
- मौन पठन में पाठक एकाग्रता तथा ध्यान केंद्रित करके पड़ता है।
- यह कक्षा में अनुशासन बनाए रखने में सहायक है।
- स्वाध्याय की रुचि जागृत करने में सहायक।
- चिंतन करने तथा गहन अध्ययन करने में भी सहायक है।
मौन पठन के भेद– मौन पठन के दो भेद होते हैं
1 गंभीर पठान(serious)
2 द्रतु पठन (quick)
गंभीर पठन
1 भाषा पर अधिकार करना।
2 केंद्रीय भाव की खोज करना।
3 विषय वस्तु पर अधिर करना।
4 नवीन सूचना एकत्र करना।
द्रतु पठन
1 सीखी हुई भाषा का अभ्यास करना।
2 खाली समय का सदुपयोग करना।
3 आनंद प्राप्त करना।
4 सूचनाएं एकत्रित करना तथा साहित्य का परिचय प्राप्त करना।
पठन कौशल का महत्व
- यह विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास में सहायक है छात्र शुद्ध उच्चारण सीख सकते हैं।
- शब्द भंडार में वृद्धि करने में सहायक होता है।
- व्याकरणिक ज्ञान में वृद्धि करने में सहायक।
- महान व्यक्तियों की जीवनी एवं आत्मकथा ए पढ़कर उनके आदर्श गुणों का आत्मसात कर सकता है।
- नवीन पुस्तकों को बहकर नवीन जानकारी प्राप्त कर सकता है।
- पढ़कर समय का सदुपयोग कर सकता है।
पठन कौशल के उद्देश्य
1 बालकों को सही स्वार्थ तथा भाव के अनुसार पढ़ाना सिखाना तथा भाव को ग्रहण करना चाहिए।
2 शुद्ध पठन सिखाना।
3 पठान के द्वारा छात्र विराम चिन्ह, अर्धविराम आदि चिन्हों का प्रयोग समाज जाता है।
4 पठन से स्वाध्याय की प्रवृत्ति जागृत करना।
5 सही उच्चारण,, ध्वनि, उचित बल आदि पठन से छात्र सीख जाता है।
6 पठन से शब्द भंडार में वृद्धि होती है।
पठन कौशल की शिक्षण विधियां
1 वर्णबोध विधि – इसमें पहले वर्णनो का ज्ञान कराया जाता है। स्वर पहले, व्यंजन बाद में फिर मात्राओं का ज्ञान कराया जाता है।
2 ध्वनि साम्य विधि – इसमें समान उच्चारण वाले शब्दों को साथ साथ सिखाया जाता है।
3 स्वरोच्चारण विधि – इसमें 12 कड़ी को आधार माना जाता है,क ,का ,के ,की ,कि,को इस विधि में अक्षरों एवं शब्दों को उनकी स्वर ध्वनि के अनुसार पढ़ाया जाता है।
4 देखो और कहो विधि- इसमें शब्द से संबंधित चित्र दिखाकर शब्द का ज्ञान कराया जाता है। यह विधि मनोवैज्ञानिक है। कई बार देखने सुनने और बोलने से वर्णो के चित्र मस्तिष्क पर अंकित हो जाते हैं।
5 वाक्य विधि- इस विधि में वाक्य या वाक्यांशों में बालक बोलता है। पहले वाक्य फिर शब्द, फिर वर्ण- इस प्रकार क्रम में बच्चों को पढ़ाना सिखाया जाता है।
6 कहानी विधि- इस विधि में बच्चों को कहानी सुनाई जाती है।
7 अनुकरण विधि- यह विधि “देखो और कहो” विधि का दूसरा स्वरूप है। इसमें अध्यापक एक-एक शब्द बालकों के समक्ष कहता है, और छात्र उसे दोहराते हुए अनुकरण करते हैं। इस प्रकार छात्र शब्द ध्वनि का उच्चारण एवं पढ़ना सीखते हैं।
पठन संबंधित त्रुटियां
1 अटक अटक कर पढ़ना।
2 अनुचित मुद्रा, पुस्तक को आंखों के निकट या दूर रखना।
3 अशुद्ध उच्चारण।
4 अनियमित गति।
5 भाव के अनुसार आरोह- अवरोह का अभाव।
दोस्तों इस पोस्ट में हमने आप के साथ Hindi Pedagogy (Notes) के important notes आपके साथ शेयर किए हैं। अगर आप शिक्षक भर्ती से संबंधित अन्य नोट्स या Study material प्राप्त करना चाहते हैं इसके लिए आप हमारी वेबसाइट Exambaaz.com को बुकमार्क अवश्य कर लें ताकिअन्य सभी महत्वपूर्ण जानकारियों की सूचना आप तक पहुंच सके। आशा है, यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी साबित होगी इस पोस्ट को पढ़ने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद!!!
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