कुंभ मेला 2019 प्रयागराज (इलाहाबाद):
कुंभ मेला 2019 का आयोजन प्रयागराज( इलाहाबाद) में किया जा रहा है। यह विश्व का सबसे बड़ा सांस्कृतिक एवं धार्मिक आयोजन है। इस कुंभ मेले का आयोजन 15 जनवरी से 4 मार्च तक चलेगा प्रयागराज में ‘कुम्भ’ कानों में पड़ते ही गंगा, यमुना एवं सरस्वती का पावन सुरम्य त्रिवेणी संगम मानसिक पटल पर चमक उठता है। पवित्र संगम स्थल पर विशाल जन सैलाब हिलोरे लेने लगता है और हृदय भक्ति-भाव से विहवल हो उठता है। श्री अखाड़ों के शाही स्नान से लेकर सन्त पंडालों में धार्मिक मंत्रोच्चार, ज्ञान एवं तत्वमिमांसा के उद्गार, मुग्धकारी संगीत, नादो का समवेत अनहद नाद, ऋषियों द्वारा सत्य संगम में डुबकी से आप्लावित हृदय एवं अनेक देवस्थानो के दिव्य दर्शन प्रयागराज कुम्भ की महिमा भक्तों को निदर्शन कराते हैं।
क्यों मनाया जाता है कुंभ पर्व?(Why is Kumbh festival celebrated?)
कुम्भ पर्व क्यों मनाया जाता है, इसके सम्बन्ध में एक प्रचलित कथा है – समुद्र मंथन के दौरान अंतिम रत्न के रूप में अमृत कलश निकला था । अमृत कलश को सुरक्षित देवलोक तक पहुंचाने का काम इंद्र के पुत्र जयंत को सौंपा गया था। जब जयंत अमृत कलश को राक्षसों से बचाकर भाग रहा था। तो उस वक्त अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी के चार स्थानों पर गिरी थी । और यह 4 स्थान है, वर्तमान में हरिद्वार. प्रयागराज, नासिक व उज्जैन इन्ही चारो स्थान पर कुम्भ पर्व होता है। यद्यपि कुम्भ पर्व का प्रारम्भ कब से हुआ है इसके सम्बन्ध में सही-सही निर्णय करना अत्यंत मुश्किल है। वेदों में कुम्भ पर्व का वर्णन कहीं-कहीं मंत्रो तथा सूत्रों में मिलता है।
कुंभ का आयोजन कितने वर्षों में होता है?
कुंभ पर्व हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु कुंभ पर्व स्थल हरिद्वार, प्रयाग,नासिक और उज्जैन में स्नान करते हैं। इनमें से प्रत्येक स्थान पर प्रति बारहवें वर्ष और प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ भी होता है। 2013 का कुम्भ प्रयाग में हुआ था।इसके बाद अब 2019 में प्रयागराज में अर्ध कुंभ मेले का आयोजन हो रहा है।
कुंभ मेला 2019 से जुडे कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
- कुंभ मेला 2019 का आयोजन स्थल प्रयागराज( इलाहाबाद) है मेले का आयोजन 15 जनवरी 2019 से 4 मार्च 2019 तक गंगा यमुना सरस्वती संगम पर संपन्न होगा।
- 2019 कुंभ मेले में दुनिया के 192 देशों को न्योता दिया गया है,इसके अलावा देश की सभी गांव को भी इस मेले में आने के लिए न्योता भेजा गया है।
- कुंभ का अर्थ कलश ( घड़ा) होता है यहां पर कलश का मतलब अमृत कलश से है ज्योतिष शास्त्र में कुंभ राशि का भी चिन्ह कलश को ही माना गया है।
- कुंभ मेला चंद्र, सूर्य और बृहस्पति की स्थिति के अनुसार अलग-अलग जगह पर होता है।
- कुंभ 2019 को दुनिया का सबसे बड़ा सांस्कृतिक कार्यक्रम कहा गया है।
- कुंभ का आयोजन भारत में चार स्थानों पर किया जाता है। 1.प्रयागराज में संगम के किनारे,2 हरिद्वार में गंगा नदी के किनारे,3 उज्जैन में शिप्रा नदी के किनारे,4 नासिक में गोदावरी के किनारे।
- पूर्ण कुंभ का आयोजन 12 वर्षों के बाद होता है एवं अर्ध कुंभ 6 वर्ष बाद होता है हरिद्वार और प्रयाग राज में दो को मेले के बीच में 6 वर्ष के अंतराल पर लगता है।
- जब सिंह राशि में बृहस्पति और मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होता है तब सिंहस्थ कुंभ उज्जैन में लगता है।
- सिंह राशि में बृहस्पति ग्रह का प्रवेश होने पर कुंभ का आयोजन गोदावरी नदी के किनारे नासिक में होता है जिसे महाकुंभ भी कहा जाता है, यह योग 12 वर्षों में एक बार होता है।
- प्रयागराज में लगने वाला मेला सभी मेलों में से सबसे ज्यादा महत्व रखता है ऐसी मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा ने ब्रह्मांड की रचना से पहले यहीं पर यज्ञ किया था। अश्वमेघ घाटवा ब्रह्मेश्वर मंदिर को इस यज्ञ का प्रतीक चिन्ह माना जाता है जो कि आज भी यहां पर मौजूद है।
- कुंभ मेला 2019 के डिजिटल पार्टनर पंजाब नेशनल बैंक है, डिजिटल पार्टनर होने के नाते इस बैंक का काम है कि मेले में आने वाले सभी श्रद्धालुओं को जगह-जगह पर एटीएम बूथ उपलब्ध कराना।
- कुंभ मेला 2019 का थीम सोंग है- “जहां शंख प्राण तक गूंज उठे, जहां भक्ति लहर उठ कर बोले, जहां पुण्य की गहराई से और श्रद्धा भी आंखें खोलें….”।
- कुंभ मेले के इस थीम सॉन्ग को आवाज दी है ,शंकर महादेवन ने और प्रसून जोशी के द्वारा इसे लिखा गया है इस गाने की धुन तैयार की है शंकर – एहसान -लॉय ने।
- कुंभ मेले में बिछड़ने वाले लोगों की मदद के लिए “Lost and Found Center” खोला गया है ।
- इस कुंभ मेले में कुल 14 अखाड़े शामिल होंगे इस कुंभ मेले में 14वा नया अखाड़ा किन्नर अखाड़ा है. इस अखाड़े की महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी है ।
- इस कुंभ मेला 2019 में कुल 6 शाही स्नान होंगे पहला शाही स्नान 15 जनवरी को, दूसरा 21 जनवरी को, मिश्रा 4 फरवरी को, चौथा 10 फरवरी को, पांचवा 19 फरवरी को और अंतिम भाग छठा शाही स्नान 4 मार्च को महाशिवरात्रि के दिन होगा।
- मेले में सबसे पहले शाही स्नान नागा साधु करते हैं।
- इस कुंभ मेले को यूनेस्को ने अंतरराष्ट्रीय संस्था कुंभ मेले को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर का दर्जा दिया है . यूनेस्को ने यह दर्जा 2017 में दक्षिण कोरिया में संपन्न हुई बैठक में दिया था। इसके पहले योग्य नवरोज को भी यह दर्जा दिया जा चुका है।
- इस बार कुंभ मेले में अक्षय बट और सरस्वती कूप के लिए 450 वर्ष बाद खोला गया है। अक्षय वट का प्राचीन व्रक्ष यमुना नदी के किनारे मुगल सम्राट अकबर के किले में बंद था । एक मान्यता के अनुसार मुगल शासकों ने अक्षय वट को कई बार काट कर जलाया, लेकिन कुछ समय बाद यह फिर से हरा हो जाता था। आखिर में उन्होंने इसे बंद करने का फैसला किया था। इसके अलावा मेले में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए सरस्वती कूप के दर्शन भी कर सकेंगे। प्राचीन मान्यता के अनुसार यह पृथ्वी का सबसे प्राचीन कुआं है।
- कुंभ के इतिहास के संबंध में आता है कि देवासुर संग्राम के बाद देवता व राक्षस समुद्र मंथन के लिए राजी हुए थे समुद्र मंथन के लिए मंदराचल पर्वत मथनी बना था । जबकि बासुकी नाग उसकी नेती बना था।
- समुद्र मंथन के दौरान क्षीरसागर समुद्र का मंथन किया गया था। जिसे आज हम हिंद महासागर के नाम से जानते हैं इस समुद्र मंथन में कुल 14 रत्न मिले थे।
- पौराणिक मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान पहला रत्न हलाहल विष था । इस विष की ज्वाला बहुत तेज थी देवताओं की प्रार्थना पर यह विष भगवान शिव ने किया ,लेकिन को भी इसे अपने कंठ से नीचे नहीं उतार सके जिसके कारण उनका कंठ नीला पड़ गया और उन्हें तभी से नीलकंठ कहा जाने लगा।
- समुद्र मंथन के दौरान अंतिम रत्न के रूप में अमृत कलश निकला था इसी कलश के बंटवारे को लेकर देवताओं और राक्षसों में युद्ध शुरू हो गया इस युद्ध को शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया था।
- अमृत कलश को सुरक्षित देवलोक तक पहुंचाने का काम इंद्र के पुत्र जयंत को सौंपा गया था। जब जयंत अमृत कलश को राक्षसों से बचाकर भाग रहा था । तो उस वक्त अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी के चार स्थानों पर गिरी थी, और यह 4 स्थान है वर्तमान में हरिद्वार. प्रयागराज, नासिक व उज्जैन है।
- जयंत को अमृत कलश देवलोक तक पहुंचाने में 12 दिनों का समय लगा था। मान्यताओं के अनुसार देवताओं का एक दिन पृथ्वी की 1 साल के बराबर होता है और पृथ्वी के हिसाब से यह 12 वर्ष हो गया यही कारण है कि कुंभ का मेला भी 12 वर्षों में एक बार लगता है।