राजस्थान के कलात्मक जल स्त्रोत || राजस्थान की प्रसिद्ध बावड़ियां

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राजस्थान के कलात्मक जल स्त्रोत (Rajasthan ki Pramukh Bavdiya )

राजस्थान में लंबे समय से कुएं एवं बावड़िया पेयजल और सिंचाई स्त्रोत रहे हैं। विशेषकर बाबरी में पानी तक पहुंचने के लिए चारों तरफ आकर्षित सीढ़ियां बनाई जाती हैं।

बाबड़िया जल स्त्रोत के साथ-साथ लोगों की धार्मिक और सामाजिक जरूरतों को भी पूरा करती हैं, तथा प्राचीन कला को भी प्रदर्शित करती हैं।  

राजस्थान की कुछ प्रमुख कलात्मक बावड़िया इस प्रकार है।

(1) आभानेरी की चांद बावड़ी 

  • यह राजस्थान के दौसा में स्थित है।  यह बावड़ी गुर्जर प्रतिहार कालीन कला का एक उत्कृष्ट नमूना है।  
  •  यह बावड़ी 300 फीट लंबी 200 फीट गहरी और 40 फीट चौड़ी है। 
  • यह बावड़ी अपने ” तिलिस्म स्थापत्य”के लिए विश्व प्रसिद्ध है। 
  •  यह विश्व की सबसे गहरी बावड़ी भी मानी जाती है। 
  •  इस बावड़ी की सीढ़ियों को इस तरह से बनाया गया है कि उन्हें बिना नहीं जा सकता एवं कोई व्यक्ति इसकी सीढ़ियों से नीचे उतरता है तो वापस नहीं आ सकता बस शर्त है कि उसे कोई चिन्ह न मिले तब तक।
  •  इस बावड़ी  के आगे बाइक मोहर अंधेरी एवं उजली नामक दो लघु प्रवेश द्वार बनाए गए हैं। 
  •  यहां पर हजारों की संख्या में खंडित पाषाण मूर्तियां है। 
  • यहां की मूर्तिकला, तक्षण कला एवं स्थापत्य कला के साथ-साथ खजुराहो की शैली भी दर्शनीय है। 
  •  इस बावड़ी  के चारों और लाल पत्थर की ऊंची दीवारें हैं। 

(2) रामदेवरा की परचा बावड़ी 

  • यह बावड़ी राजस्थान के जैसलमेर में स्थित है।  
  •  यह मीठे जल की बावड़ी है।
  •   रामदेवरा आने वाले तीर्थयात्री परचा बावड़ी के  पानी को पवित्र जल के रूप में मानते हैं और अपने साथ ले जाते हैं। 
  •  मान्यता के अनुसार इस बावड़ी का निर्माण बाबा रामदेव जी के आदेश अनुसार करवाया गया था। 

(3) रानी जी की बावड़ी

  •   यह बावड़ी राजस्थान के बूंदी शहर में स्थित है। 
  •  बूंदी को ‘बावड़िया का शहर’  भी कहा जाता है। 
  •  यहां पर स्थित रानी जी की बावड़ी एशिया के सर्वश्रेष्ठ पारियों में से एक है।
  •  इस बावड़ी का निर्माण  1999 ईस्वी में रामराजा अनिरुद्ध जी की रानी लाडकंवर नाथावती ने करवाया था। 
  •  इस बावड़ी की 27वी सीढी के दाएं और बाय शिव पार्वती मूर्ति स्थित है। 
  • इस बावड़ी में तीन तोरण द्वार स्थित है। इस बावड़ी की अलंकृत तोरण द्वारों की मेहराबे लगभग 30 मीटर ऊंची है। 

(4) खिन्नी बावड़ी

  • जालौर जिले में स्थित यह बावड़ी कलात्मक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। 
  • 5 मेड़तनी की बावड़ी 
  • 150 फीट गहरी बावड़ी  राजस्थान के झुंझुनू में स्थित है। यह प्राचीन सुंदर और कलात्मक बावड़ी  है।
  •  इसमें झरोखे व बरामदे भी बने हुए हैं। 

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(6) चावला देवी बागड़ी

  •  यह बावड़ी बूंदी में स्थित है। 
  •  इस बावड़ी का निर्माण महाराव भाव सिंह की पत्नी रानी भावल देवी ने करवाया था। 
  •  इस बावड़ी पर बागड़ी को बनाने वाले राऊजी उस्ता और रानी की निजी सेविकाओं के नाम अंकित किए गए हैं। 
  • यह बावड़ी अंग्रेजी के ‘L’ अक्षर के आकार में बनी हुई है।

(7) नौ चौकी बावड़ी

  •  यह उदयपुर में स्थित है।
  •  यह बावड़ी राजसमंद झील की पाल पर नौ चौकी पाल के रूप में स्थित है। 
  •  इस बावड़ी में नौ ग्रहों के अनुरूप 9 अंकों का अधिक प्रयोग किया गया है।  जैसे पाल की लंबाई 999  फीट, चौड़ाई 99  फिट तथा प्रत्येक सीढी 9 इंच चौड़ी और 2 इंच ऊंची। 
  •  इस पर 9 चौकिया भी बनी हुई है जो इसके नाम को दर्शाता है। 
  • यह बावड़ी सफेद संगमरमर से निर्मित छतरियो, विभिन्न दृश्यो की शिल्पकारी, तोरण द्वार पर नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है. 

(8) त्रिमुखी बावड़ी

  • यह बाबरी उदयपुर में स्थित है। 
  •  बावड़ी में तीन ओर से सीढ़ियां बनी हुई है। 
  •  इसके प्रत्येक खंड में 9 सीढ़ियां हैं।  इसकी बनावट नौ चौकी बावड़ी के समान ही है। 
  •  इसमें प्रत्येक दिशा में सीढ़ियां तीन खंडों में बटी हुए हैं।

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(9) काकी जी की बावड़ी  

  • यह बावड़ी जल स्थापत्य कला का अनूठा उदाहरण है। इसका निर्माण सरदार सिंह की पत्नी महारानी आली ने करवाया था। 
  •  यह बावड़ी बूंदी के इंद्रगढ़ में स्थित है। 

(10) वीरू पूरी बावड़ी 

  • यह बावड़ी रानी वीरू और महात्मा पूरी जी के नाम को मिलाकर वीरपुरी बावड़ी कहलाई। 
  • वीरू रानी  ने नाथ बाबा को जमीन दान दी थी, जिस पर इस बावड़ी का निर्माण किया गया।  यह कलात्मक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। 
  •  यह बावड़ी उदयपुर में स्थित है। 

(11)  एक चट्टान बावड़ी

  •   यह सातवीं सदी की सबसे बड़ी बावड़ी है जो जोधपुर मंडोर में स्थित है।
  •  मंडोर पर्वत माला में चट्टान को छोड़कर अंग्रेजी की L अक्षर के आकार में इस बावड़ी को बनाया गया।
  •  चट्टान को काटकर सीढ़ियां बनाई गई।  चट्टान पर  सप्तमातृकाओ  और शिव की आकृतियां अंकित है। 
  •  इसे प्राचीन नाम में ” रावण की छतरी” नाम से पुकारा जाता है।
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