Sanskrit Bhasha Kaushal Notes For CTET,UTET & All TET Exams

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Sanskrit Bhasha Kaushal Important Notes

इस पोस्ट में हम संस्कृत भाषा कौशल के नोट्स (Sanskrit Bhasha Kaushal Important Notes For CTET,UTET & All TET Exams) आप सभी की समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं।  इसमें आप जानेंगे संस्कृत भाषा कौशल जोकि 4 प्रकार के होते हैं। श्रवण कौशल, पठन कौशल, वाचन कौशल एवं लेखन कौशल इन चारों कौशलों को विस्तार पूर्वक बताया गया है।साथ ही अध्यापन कौशल के बारे में भी महत्वपूर्ण जानकारियां आपको इस पोस्ट में प्राप्त होंगी। तो आइए जाने संस्कृत भाषा कौशल के संबंध में सभी महत्वपूर्ण जानकारियां जो इस प्रकार है।  

Sanskrit language skills (संस्कृत भाषा कौशल)

 संस्कृत भाषा शिक्षण का यही उद्देश्य है कि छात्र को इन चार  भाषायी कौशलों में निपुण बना दिया जाए। जिससे छात्र संस्कृत विषय अबोध तथा स्वयं रचनात्मक कार्य कर सकें। 

संस्कृत में भाषा के चार प्रमुख कौशल होते हैं। जो इस प्रकार है। 

(1)  श्रवण कौशल ( सुनना)

(2)  पठन कौशल ( पढ़ना)

(3) वाचन कौशल ( बोलना)

(4)  लेखन कौशल (लिखना)

(1)  श्रवण कौशल

 श्रवण कौशल प्रथम भाषा कौशल है। जिसका  संबंध कान से होता है, एवं अच्छी तरह से विषय को सुनने के पश्चात ही उसका अनुकरण होता है।  अतएव भाषा शिक्षण विषय में प्राथमिक कार्य श्रवण ही होता है। यही शेष तीनों कौशलों का आधार है।  श्रवण कौशल का प्रमुख तत्व एकाग्रचित्तता एवं ध्यान से विषय को सुनना है। छात्र कहानी, कविता, भाषण, वार्तालाप इत्यादि का ज्ञान सुनकर ही करता है।  उसके बाद उसके अर्थ को ग्रहण करते हुए भाव विनिमय में करता है। 

 श्रवण कौशल संपादन के उपाय

1. मन की एकाग्रचितता

2.   शारीरिक अविकलता 

3 . शुद्ध उच्चारण का ज्ञान

 श्रवण कौशल के साधन

कक्षा कक्ष प्रक्रिया में वार्ता, कहानी, श्लोक इत्यादि सुनना। गुरुमुख, आकाशवाणी, दूरदर्शन, दूरवाणी इत्यादि का श्रवण करना।  

(2) वाचन कौशल

 वाचन वह क्रिया है। जिसमें  प्रतीक, ध्वनि और अर्थ साथ साथ चलते हैं।  अर्थात वाचन एक जटिल अधिगम प्रक्रिया है। जिसमें श्रवण, दृश्य का मस्तिष्क के अधिगम केंद्र से संबंध होता है।  वस्तुतः लेखन में मौखिक भाषा को स्थाई रूप दिया जाता है। किंतु वाचन में इसका उल्टा होता है। वाचन में साधारण रूप से पढ़ने की अपेक्षा शुद्धता, स्पष्टता एवं प्रभावशालिता होती है। 

वाचन कौशल दो प्रकार के होते हैं। 

1.  मौन वाचन – लिखित भाषा का ध्वनि रहित वाचन मौन वाचन होता है। तथा इसमें अर्थ ग्रहण और भाव अनुभूति होती है। 

2.  सस्वर वाचन 

लिखित भाषा के ध्यानात्मक पाठ को सस्वर  वाचन कहा जाता है। जिसमें लिपि प्रतीकों को वाणी प्रदान कर अर्थ ग्रहण किया जाता है।  ईश वंदना, लोक पाठ, समा दूसरों को सुनाना सस्वर वाचन होते हैं।

सस्वर वाचन के दो भेद होते हैं। 

1. व्यक्तिगत वाचन –  यह वाचन अध्यापक, छात्र  के द्वारा होता है। (व्यक्तिगत सस्वर  वाचन दो प्रकार के होते हैं। )

2.  सामूहिक वाचन –  छात्रों द्वारा

काव्य शिक्षण की दृष्टि से  सस्वर वाचन तीन प्रकार का होता है। 

1.  आदर्श वाचन –  शिक्षक द्वारा

2.  अनुकरण वाचन –  छात्र द्वारा

3.  सामूहिक वाचन –   छात्रों के द्वारा

सस्वर  वाचन के उद्देश्य
  • छात्रों को शुद्ध उच्चारण का ज्ञान( अभ्यास) कराना। 
  •  छात्रों को विराम, लय , ताल व गति के साथ उच्चारण का ज्ञान कराना। 
  •  अर्थ ग्रहण की क्षमता का विकास कराना। 
  •  अधिगम में कमजोर छात्रों को व्यक्तिगत रूप से सहायता करना। 
  •  छात्रों को क्रियाशील बनाना। 
  •  आत्मविश्वास उत्पन्न कर आना। 

 वाचन शिक्षण की विधियां 

1.  देखो और कहो विधि

2.  अक्षर बोध विधि\ शब्द  निर्माण विधि

3.  ध्वनि  साम्य विधि\  स्वरोच्चारण विधि

4.   आक्षरिक खंड विधि

5.  यंत्र विधि

6.   संगीत विधि ( मांटेसरी)

7.  अनुध्वनि\ अनुकरण विधि (सुनो और कहो विधि)

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Sanskrit Bhasha Kaushal Notes For CTET

शुद्ध वाचन हेतु अध्यापक के द्वारा किए जाने वाले कार्य

  • छात्र को संस्कृत में वचन व पठन का अधिक अवसर देना। 
  •  अध्यापन का अभ्यास कराना। 
  •   छात्रों को सूक्तियां एवं श्लोक याद करवाना। 
  •  वाद विवाद, कविता पाठ इत्यादि प्रतियोगिताओं का आयोजन करवाना। 
  • विषय का ज्ञान प्रदान करना। 
  •  आदर्श वाचन, अनुकरण वाचन, समवेत वाचन का अधिक प्रयोग करना। 

अशुद्ध उच्चारण के कारण

  • अज्ञान
  •  ध्वनि का लोप  कर देना। 
  •  ध्वनि का अल्प या अति उच्चारण करना। 
  •  दोषपूर्ण श्रवण प्रक्रिया। 
  •  ध्वनि का उल्टा कर देना। 
  •  स्थानीय बोलियों का प्रभाव। 
  •  अध्यापक के निर्देशन का अभाव। 

 उच्चारण सुधार के उपाय

  • अध्यापक स्वयं अपना उच्चारण सुधारें। 
  • छात्रों को शुद्ध उच्चारण के लिए प्रेरित करें। 
  •  अशुद्ध संशोधन करना एवं अभ्यास कराना। 
  •  छात्रों को व्याकरण के नियमों की जानकारी देना। 
  •  प्रतियोगिताओं का आयोजन कराना। 
  •  बाल सभा व प्रार्थना सभा का आयोजन कराना। 
  •   शारीरिक   विकलता हेतु चिकित्सीय परामर्श। 
  •   संस्कृत  के विसर्ग,अनुस्वार, बलाघात, हलंत का ज्ञान कराना। 
  •  श्लोक याद कराना।  

(3) पठन कौशल

किसी लिखित या मुद्रित पाठ्यवस्तु या चित्र को देखकर उसके भाव आशय  को समझना पठन कहलाता है। क्रमवृद्ध एवं विधि पूर्वक बालकों को पठन करने का अभ्यास कराना ही पठन शिक्षण है।  जहां वाचन में लिखित भाषा के वर्णों, लिपि, रूप को पहचान कर उचित विराम, गति, आरोह- अवरोह सहित शुद्ध उच्चारण किया जाता है।  उसमें यह जरूरी नहीं है कि वाचन करने वाला अर्थ समझ रहा हो। लेकिन पठन में अर्थ समझते हुए वाक्य के भावों का अधिगम करते हुए पठन किया जाएगा।  वाचन का विकसित रूप पठन है। 

पठन के अंग

1.  अर्थबोध

2.  पठन गति

3.  शब्द भंडार में वृद्धि

4.  स्पष्ट और सस्वर पठन

Sanskrit Bhasha Kaushal Notes For CTET

पठन में दोष के कारण

1. वाणी संबंधी दोष – हकलाना, तुतलाना या शारीरिक विकलता 

2.  मनोवैज्ञानिक दोष –  डर

3.  ज्ञान संबंधी दोष –  अज्ञानता

4. अभ्यास संबंधी दोष 

संस्कृत का अधम पाठक 

    • गाकर पढ़ने वाला
    •  शीघ्रता से पढ़ने वाला
    •  सिर हिलाते हुए पढ़ने वाला
    •  बिना सोचे समझे पढ़ने वाला
    •  अर्थ ज्ञान किए बिना पढ़ने वाला
    •  अल्प कंठ वाला

शुद्ध उच्चारण हेतु पाणिनी के विचार

“जिस प्रकार बाघिन अपने बच्चों को दांतो से स्पर्श करती है।  किंतु उस बच्चे को मातृत्व कोमलता के कारण दर्द का अनुभव नहीं होता, ठीक उसी प्रकार वर्णों का उच्चारण बड़े ही कोमल भाव से स्पष्ट एवं स्थानादि को ध्यान में रखकर करना चाहिए।”

ये भी पढे : संस्कृत के कवि और उनकी रचनाएँ

(4) लेखन कौशल

 सर्वप्रथम छात्र को बोलना एवं पढ़ना सिखाया जाता है। उसके बाद उसे लिखना सिखाया जाता है। भाषा के स्वरूप के दो पक्ष है। 

1.  मौखिक अभिव्यक्ति

2.  लिखित अभिव्यक्ति

लेखन एक कला है।  सुंदर लेखन का अपना ही एक निजी आकर्षण होता है।  अतः छात्र के लिए कक्षा कक्ष में लेखन कौशल महत्वपूर्ण घटक है। 

 लेखन कौशल के  तकनीकी घटक

  • बैठने एवं लेखनी को पकड़ने का उचित तरीका 
  •  स्पष्ट लेखन सामग्री 
  •  अक्षरों  की सुडौल रचना
  •  अध्यापक का आदर्श रूप
  •  सुलेख प्रतियोगिताओं का आयोजन

 सुलेख के अभ्यास की तीन विधियां है। 

(1)  अनुलेख –  इसमें अध्यापक सुंदर अक्षरों में श्यामपट्ट पर या बालकों की कॉपी में लिखता है।  तथा छात्र उसको बार-बार लिखता है। 

(2) प्रतिलेखन –  इसमें छात्र पुस्तक या पत्र-पत्रिका के निर्धारित अंश को अपनी कॉपी में लिखते हैं। 

(3)  श्रुतलेख –  यह एक उत्कृष्ट क्रिया है।  इसमें तीन वाचन होते हैं। प्रथम वाचन में छात्र सुनते हैं. दूसरे में भी लिखते हैं तथा तृतीय वाचन में मिलान करते हैं। 

 लिखित कार्य संशोधन की विधियां

1. स्वसंशोधन –  छात्र द्वारा

2.  पारस्परिक संशोधन –  छात्रों द्वारा

3.  अध्यापक द्वारा संशोधन

 लेखन कौशल अभिवृद्धि के उपाय

  • वर्णों को सही ढंग से लिखने का ज्ञान एवं अभ्यास कराना। 
  •  शिरोरेखा, समान अंतर, वर्णों की समान मोटाई, मात्रा लेखन का ज्ञान कराना। 
  •  सुलेख, श्रुतलेख, अनुलेख लिखवाना। 
  •  संवाद, पत्र,  प्रश्नोत्तर, अनुच्छेद इत्यादि लिखने हेतु प्रेरित करना। 
  •  अध्यापक का उचित निर्देशन तथा लेखन की प्रतिदिन जांच करना। 

लेखन कौशल की विधियां

1.  मांटेसरी विधि 

 इंद्रियों  के प्रशिक्षण पर जोर, इसके छात्र श्यामपट्ट पर लिखे अक्षरों का अभ्यास करते हैं।  इसके बाद पेंसिल से उन पर आवर्तन करते हुए सीखते हैं। 

2. अनुकरण विधि

 इसमें छात्र निर्धारित अंशु को एवं चित्र आदि का अनुकरण करते हुए लिखते हैं। 

3. जेकटॉट विधि 

 इसमें छात्रों द्वारा ज्ञात शब्दों को श्यामपट्ट पर लिखा जाता है।  शिक्षक पढ़ाते हैं उसके बाद फिर छात्र को उत्तर पुस्तिका में लिखने को कहते हैं। 

4.  चित्र विधि 

 इसमें छात्रों के समक्ष चित्र प्रस्तुत कर उससे संबंधित प्रश्न पूछे जाते हैं। 

5.  प्रश्नोत्तर विधि

 यह विधि प्रश्नोत्तर शैली पर आधारित होती है। 

6.  उद्बोधन विधि

 इसमें शिक्षक छात्र को विषय देते हैं तथा छात्र अपनी कल्पना के आधार पर सृजनात्मक रूप से लेखन कार्य करता है। 

7.  तर्क वितर्क विधि

 इसमें सामाजिक, राजनैतिक एवं शैक्षिक समस्याओं की सीमा का समाधान रचना के आधार पर किया जाता है।  

अध्यापन कौशल

  • शिक्षा कौशल एक विशिष्ट अनुदेशन क्रिया है। जिसे अध्यापक अपनी कक्षा शिक्षण में प्रयोग करता है। 
  • वस्तुतः शिक्षण एक कला है, जिसको सुनियोजित तरीके से संपन्न करने के लिए शिक्षक कुछ महत्वपूर्ण कौशलों का प्रयोग करता है। 
  • एलन  तथा रायण  ने सर्वप्रथम 14 शिक्षण कौशलो की खोज की  जिसमें शिक्षक सहजता से प्रश्नों की संरचना करते हुए अधिगम को  प्रभावी बनाता है। 

 प्रस्तावना प्रश्न 

 शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया में प्रस्तावना प्रश्न महत्वपूर्ण है।  प्रस्तावना प्रश्न सदैव भी छात्रों के पूर्व ज्ञान पर आधारित होने चाहिए। यह ज्ञात से अज्ञात शिक्षण सूत्र पर आधारित होने चाहिए।  इन प्रश्नों की भाषा सरल, संक्षिप्त होनी चाहिए। इनकी संख्या 4 – 5 होनी चाहिए। प्रस्तावना का अंतिम प्रश्न समस्यात्मक होना चाहिए।  किंतु शेष प्रश्न छात्र के पूर्व ज्ञान पर ही आधारित, विषय वस्तु से जुड़े होने चाहिए। प्रश्नों हां अथवा नहीं वाले प्रश्नों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।      

 1. अन्वेषण प्रधान प्रश्न\ खोजपूर्ण प्रश्न 

  इसे  खोजपूर्ण प्रश्न शैली कहते हैं।  जब अध्यापक छात्र से ही प्रश्न का उत्तर निकलवाने की चेष्टा करता है।इस हेतु वह  पुनः प्रश्न करता है। तो वहां खोजपूर्ण प्रश्न शैली का प्रयोग होता है। यदि अध्यापक एक प्रभावशाली अधिगम चाहता है तो छात्रों को सही उत्तर की ओर ले जाने हेतु वह अनेक ऐसे प्रश्नों का सहारा लेता है जो एक के बाद एक ज्ञात पूर्व ज्ञान से नवीन ज्ञान तक ले जाने में सहायक होते हैं। 

इस प्रश्न शैली में प्रश्नों की मूल भाषा भले ही बदल सकती है, किंतु प्रश्न की मूल भावो को नहीं बदला जा सकता।  छात्रों के द्वारा उत्तर नहीं देना, गलत देना, अधूरा देना अथवा आंशिक उत्तर देना इस स्थिति में उसका प्रयोग होता है। 

इसके प्रमुख घटक निम्न है। 

1. अनु बोधन

2. अधिक सूचना प्राप्ति

3. पुन : केंद्रण 

4. पुनः निर्देशन

5. समीक्षात्मक ज्ञान वृद्धि

2. श्यामपट्ट प्रश्न

 कक्षा कक्ष में श्यामपट्ट एक दृश्य साधन के रूप में सबसे अधिक प्रयोग में आता है।  जिसका प्रयोग करके विषय को प्रभावी एवं रोचक बनाया जा सकता है। श्यामपट्ट पर पाठ्य सामग्री का स्पष्ट प्रस्तुतीकरण संभव है।  बशर्त अध्यापक उसका प्रभावी उपयोग करें। 

 इसके प्रमुख घटक इस प्रकार है। 

  • लेख में स्पष्टता
  •  श्यामपट्ट कार्य की स्वच्छता
  •  श्यामपट्ट कार्य की उपयुक्तता
  •  अक्षरों की पर्याप्त मोटाई,शिरोरेखा का प्रयोग, समान दूरी  इत्यादि।  
  •  रंगीन चौक का प्रयोग नहीं करना। 
  •  वर्तनी की शुद्धता होनी चाहिए। 
  •  अध्यापक को श्यामपट्ट  छात्रों के बीच व्यवधान नहीं बनना चाहिए।  

3.  प्रश्नोत्तर विधि

 प्रश्नोत्तर विधि प्राचीन काल से ही शिक्षण की उत्तम विधि मानी जाती है।  यह विधि प्राचीन होते हुए भी काफी महत्वपूर्ण विधि है। वर्तमान में शिक्षण कार्य में इसका व्यापक प्रयोग होता है। इसमें प्रश्नों के द्वारा अध्यापक छात्र से संबंधित कई महत्वपूर्ण सूचनाएं, ज्ञान प्राप्त करता है।  यह सुकरात की विधि है। 

 जैसे-  छात्र को जो कुछ भी पढ़ाया गया वह उसने कितना ग्रहण किया है। शिक्षक इसका ज्ञान प्राप्त करता है।  इसके अलावा छात्र भी पाठ्यवस्तु के विषय में प्रश्न पूछ कर अपनी जिज्ञासा शांत करते हैं।  

 प्रश्न विषय से संदर्भित, संक्षिप्त, स्पष्ट, पाठ्य सामग्री से जुड़े होने चाहिए।  इसमें छात्र को तत्क्षण ही प्रत्युत्तर प्राप्त होता है। 

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