संस्कृत भाषा शिक्षण के सिद्धांत | संस्कृत पेडॉगोजी Notes

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Sanskrit Bhasha Shikshan Ke Siddhant

इस पोस्ट में हम संस्कृत भाषा शिक्षण के सिद्धांत (Sanskrit Bhasha Shikshan Ke Siddhant) आप सभी के साथ शेयर कर रहे हैं। संस्कृत पेडॉगोजी के अंतर्गत पूछे जाने वाले महत्वपूर्ण टॉपिक संस्कृत भाषा शिक्षण के सिद्धांत से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदुओं को इस पोस्ट में प्रस्तुत किया गया है। सिद्धांत अर्थात उस भाषा को पढ़ाने का तरीका तथा उस भाषा को रुचिकर बनाने का उपाय भाषा शिक्षण सिद्धांत कहलाता है। 

संस्कृत भाषा शिक्षण के सिद्धांत

(1) स्वाभाविकता का सिद्धांत 

स्वाभाविकता का अर्थ होता है किसी भी भाषा को बिना किसी दबाव के स्वाभाविक रूप से घर के वातावरण में सीखना। जब बालक घर में भाषा को सीखता है तो वह भाषा को स्वाभाविक रूप से सीखता है। अर्थात उस भाषा को बोलने वाले लोग उसके आसपास मौजूद होते हैं और वह उन सब की बातों को सुन सुनकर बिना किसी व्याकरण ज्ञान की सहजता से ही उस भाषा को सीख लेता है।   इस सिद्धांत के अंतर्गत कुछ महत्वपूर्ण बिंदु इस प्रकार हैं। 
  •  इस सिद्धांत के अंतर्गत भाषा स्वभाव से ही सीखी जाती है। 
  • अध्यापक संस्कृत भाषा में व्यवहार करें। 
  •  संस्कृत श्लोक एवं बाल गीतों का आयोजन हो। 
  •  शुद्ध उच्चारण का अभ्यास कराएं। 
  •  इसमें बालक भय रहित एवं  कृत्रिमता से रहित अधिगम करता है। 
  •  महत्वपूर्ण श्लोको एवं सूक्तियां को कक्षा में लगाएं। 
  •  संभाषण शिविर का आयोजन। 

2 रुचि का सिद्धांत

  • पिन्सेट  ने “द प्रिंसिपल ऑफ टीचिंग मेथड”  पुस्तक में इस सिद्धांत को स्पष्ट किया है। 
  • जिस विषय में बालक की रुचि होती है,  वह उस विषय को शीघ्रता से सीख लेता है।
  •  अतः इस हेतु शिक्षक दृश्य श्रव्य उपकरणों का प्रयोग करें। 
  •  कथा  विविधता प्रसंगों के माध्यम से शिक्षण कराएं।  
  •  क्रीड़ा माध्यम से शब्द धातु रूप का ज्ञान कराएं, पूर्व ज्ञान को नवीन ज्ञान से जुड़े। 
  •  पाठ्य सहगामी क्रियाओं का आयोजन जैसे अंताक्षरी,वाद विवाद, भाषण, निबंध लेखन,सस्वर वाचन आदि का आयोजन करें। 

3 क्रियाशीलता या अभ्यास का सिद्धांत

  •  बालक करके सीखता है, अतः बार-बार कार्य को करवाना चाहिए। 
  •  कठिन शब्दों एवं ध्वनियों के उच्चारण का अभ्यास कराना  चाहिए। 
  •  संस्कृत भाषा में विचार अभिव्यक्ति। 
  •  व्याकरण के विभिन्न अंगों में सिद्धांताहस्ता। 
  •  संस्कृत को संस्कृत के माध्यम से पढ़ाना। 
  •  संस्कृत अनुच्छेदों का गति, प्रवाह शुद्धता पूर्वक जोर-जोर से पढ़ाना।
  •  मौन वाचन अभ्यास हेतु पतंजलि के तीन बिंदुओं का अनुकरण करावाना जो इस प्रकार हैं।1 रुचि अर्थात रुचि पूर्वक अभ्यास 2  निरंतरता- सतत अभ्यास 3  वैराग्य अर्थात अभ्यास के बाधक तत्व से दूरी 
  •  थार्नडाइक का प्रयत्न एवं त्रुटि का सिद्धांत एवं उसके प्रभाव के तीन नियम इसी सिद्धांत पर आधारित है  

4 मौखिक कार्य सिद्धांत

  •  छात्र को अधिकाधिक बोलने का अवसर देना। 
  •  संस्कृत शब्दावली एवं व्याकरण की विभिन्न रूप मौखिक रूप से सीखे जा सकते हैं। 
  •  लिखित कार्य का आधार मौखिक अभिव्यक्ति है।
  •  सर्वप्रथम मौखिक तत्पश्चात लिखित कार्य करवाएं।इससे बालक सक्रिय रहता है। तथा ज्ञान चिरस्थाई रहता है।
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5 अनुपात क्रम का सिद्धांत

  •  अनुपात का एक उद्देश्य ज्ञानात्मक, भावनात्मक एवं क्रियात्मक उद्देश्य के उचित अनुपात से है। 
  •  अतः उद्देश्यों  पर क्रमानुसार बल देना चाहिए जैसे कि  ग्रहण- श्रवण एवं पठन के पश्चात अभिव्यक्ति- भाषण और लेखन पर  बल।
  •  प्राथमिक स्तर पर मौखिक कार्य, माध्यमिक स्तर पर पाठ्यपुस्तक आधारित व्याकरण ज्ञान, उच्च स्तर पर अनुवाद रचना आदि। 
  •  संक्षेप में कहें तो  पढ़ने से पहले बोलना, नेत्रों से पहले कान , आवृत्ति से पहले प्राप्ति के सिद्धांत का उपयोग, स्वतंत्र  कार्य से पूर्व अभ्यास एवं व्यक्तिगत से पूर्व सामूहिक।

6 वैयक्तिक भिन्नता का सिद्धांत

  •  शिक्षक का छात्र छात्र एवं बुद्धि के अनुसार बालक को को अवसर प्रदान करना।
  •  सभी छात्र अलग-अलग जैसे कुछ कुशाग्र, कुछ सामान्य, कुछ मंदबुद्धि होते हैं।  अतः इनके आधार पर शिक्षण करवाना।
  •  अलग-अलग छात्रों के अनुसार अपने शिक्षण का स्तर रखना।
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7 समवाय सिद्धांत

  • समवाय अर्थात साथ में ही ( पाठ के साथ में ही) अपेक्षित अंशो का ज्ञान प्रदान करना। 
  •  पाठ्यपुस्तक के साथ ही व्याकरण आदि का ज्ञान प्रदान करना।
  • पाठ को दृश्य श्रव्य उपकरणों के साथ पढ़ाना। 
  •  श्लोक पाठ के समय ही उससे संबंधित ग्रंथ कवि इत्यादि का नाम बताना। 

8 चयन एवं विभाजन का सिद्धांत

  •  पुस्तक के पाठों को पढ़ाने हेतु पाठो का चयन पूर्व,उत्साह, मुख्य दिवस, रितु आदि के आधार पर करना।
  •  जैसे कि स्वतंत्रता दिवस पाठ को 15 अगस्त के आसपास पढ़ाना, होली, दीपोत्सव इत्यादि पाठो  को इन त्योहारों के आसपास पढ़ाना आदि।
  • ऐसा करने से छात्रों को इन विशेष दिवसों का ज्ञान अच्छी प्रकार से प्रत्येक तरीके से हो जाता है।

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