Skinner Ka Kriya Prasut Siddhant
स्किनर का क्रिया प्रसूत अनुबंधन सिद्धांत
प्रतिपादक- बीएफ स्किनर
प्रयोग वर्ष – 1938 ई.
प्रयोग – चूहे(1930) व कबूतर (1943)
उपनाम\ अन्य नाम
- r-s theory
- कार्यात्मक प्रतिबद्धता का सिद्धांत
- सक्रिय अनुबंधन का सिद्धांत
- अभिक्रमित अनुदेशन सिद्धांत
- नैमित्तिक अनुबंधन का सिद्धांत
इस सिद्धांत के अनुसार- यदि किसी अनुक्रिया के करने से सकारात्मक एवं संतोषजनक परिणाम मिलते हैं, तो प्राणी यह क्रिया बार-बार दोहराता है, असफलता या नकारात्मक परिणाम मिलने पर प्राणी क्रिया को पुनः दोहराने से बचता है, जिससे उद्दीपन अनुक्रिया का संबंध कमजोर हो जाता है।
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स्किनर का क्रिया प्रसूत अनुबंधन सिद्धांत
इस सिद्धांत का प्रतिपादन अमेरिका के हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर बीएफ स्किनर के द्वारा वर्ष 1938 में किया गया यह सिद्धांत थार्नडाइक के द्वारा प्रतिपादित प्रभाव के नियम पर आधारित है इस सिद्धांत को कार्यात्मक प्रतिबद्धता तथा साधक अनुबंध एवं नैमित्तिक वाद के नाम से भी जाना जाता है।
इस सिद्धांत के अंतर्गत स्किनर ने सीखने की व्याख्या दो रूपों में की है, जो इस प्रकार है।
1. प्रतिक्रियात्मक व्यवहार
2. क्रिया प्रसूत व्यवहार
प्रतिक्रियात्मक व्यवहार व्यवहार है, जो किसी उद्दीपक के नियंत्रण में होता है। जबकि क्रिया प्रसूत व्यवहार प्राणी की इच्छा पर निर्भर करता है।
स्किनर का चूहे पर प्रयोग
स्किनर ने एक भूखे चूहे को एक बॉक्स में बंद कर दिया। भूख की तड़प से चूहा इधर-उधर उछलता है, इस दौरान एक बार उछलने से चूहे के पंजे से लीवर दब जाता है, और भोजन के कुछ टुकड़े उसे प्राप्त हो जाते हैं, ऐसा कई बार उछल कूद करने से लीवर के दबने से चूहे को भोजन प्राप्त हो जाता है। इस प्रकार बार-बार भोजन मिलने से चूहा लीवर को दबाकर भोजन प्राप्त करने की कला को सीख जाता है। भोजन चूहे के लिए प्रबलन एवं भूख उसके लिए प्रणोदक का कार्य करती है।
स्किनर का कबूतर पर प्रयोग
- स्किनर ने अपने अन्य प्रयोग में भूखे कबूतर को स्किनर बॉक्स में बंद किया गया।
- बॉक्स में कबूतर शांत बैठा होता है।
- कुछ समय बाद बॉक्स में प्रकाश किया गया, प्रकाश होते ही कबूतर ने जगह-जगह चोंच मारना प्रारंभ कर दिया।
- इस प्रयोग में स्किनर का लक्ष्य रखा की कबूतर दाहिनी ओर घूमकर एक पूरा चक्कर लगाकर एक निश्चित स्थान पर चोंच मारना सीख जाए।
- जब कबूतर ने स्वयं दाहिनी और घूम कर चोंच मारी तो उससे अनाज का दाना प्राप्त हुआ, इस दाने के द्वारा कबूतर को पुनर्बलन प्राप्त हुआ, बार-बार प्रयत्न करने पर वह सही स्थान पर चोंच मारना सीख गया।
क्रिया प्रसूत व्यवहार को स्पष्ट करने के लिए स्किनर ने चूहो तथा कबूतरों पर अनेक प्रयोग किए थे। इस प्रयोग के पश्चात स्किनर ने यह स्पष्ट किया कि यह कोई आवश्यक नहीं है कि जब प्राणी की समझ कोई उद्दीपक प्रस्तुत हो तभी वह प्राणी अनुक्रिया करें। वातावरण में कुछ ऐसे भी प्राणी है जो हमेशा क्रियाशील रहते हैं, और उनकी इसी क्रियाशीलता के फलस्वरूप उन्हें परिणामों या उद्दीपको की प्राप्ति होती है। इस स्किनर के प्रयोजन हमेशा सक्रिय या क्रियाशील रहते हैं। इसी कारण सिद्धांत को क्रियाशीलता का सिद्धांत, सक्रिय अनुबंधन का सिद्धांत भी कहते हैं। इस सिद्धांत को R -S Type Theory भी कहा जाता है। स्किनर ने सीखने के क्षेत्र में पुनर्बलन को विशेष महत्व दिया है। इस स्किनर ने पुनर्बलन को सीखने का राजमार्ग कहा है। स्किनर का यह सिद्धांत अभिक्रमित अनुदेशन पर आधारित है।
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क्रिया प्रसूत सिद्धांत के संबंध में महत्वपूर्ण तथ्य
- इस स्किनर का मत है कि यदि निर्गमित अनुप्रिया को पर गठित कर दिया जाए तो यह बलवती होकर व्यवहार में परिवर्तन लाती है।
- इस स्किनर ने तथा कबूतरों पर प्रयोग किए इन्होंने प्रयोग करने के लिए एक विशेष बॉक्स का प्रयोग किया जिसे ‘क्रिया प्रसूत अनुबंधन कक्षा’ नाम दिया गया परंतु बाद में इस स्किनर के शिष्यों ने स्किनर के सम्मान में से स्किनर बॉक्स नाम दिया।
- स्किनर क्रियाओं पर जोर देते हैं इसलिए इसे क्रिया प्रसूत सिद्धांत कहते हैं।
क्रिया प्रसूत सिद्धांत की विशेषताएं
- पुनर्बलन आवश्यक तत्व है।
- यह सिद्धांत मंदबुद्धि बालकों के अधिगम के लिए बहुत उपयोगी है।
- सीखने की क्रिया में अभ्यास पर अधिक बल दिया जाता है।
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