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Adhigam Complete Notes For CTET & All Teachers Exams

Adhigam Complete Notes

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Adhigam Complete Notes For CTET Exam

आज के इस पोस्ट में हम शिक्षक भर्ती परीक्षा में आने वाले एक बहुत ही महत्वपूर्ण टॉपिक (Adhigam Complete Notes For CTET Exam) अधिगम के बारे में संपूर्ण जानकारी आपको इस पोस्ट में प्राप्त होगी। जैसे कि अधिगम का अर्थ, अधिगम की परिभाषा, अधिगम के प्रकार, अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक, विभिन्न विद्वानों के द्वारा दी गई परिभाषाएं, थार्नडाइक का संबंध वादी सिद्धांत, अधिगम के वक्र एवं पठार तथा अधिगम का स्थानांतरण  इन सभी के बारे में विस्तृत जानकारी आपको प्राप्त होंगी।

अधिगम का अर्थ (Meaning of learning) 

अधिगम का संकुचित अर्थ सीखना होता है। यदि इसके व्यापक अर्थ की बात की जाए तो “अनुभव ज्ञान का प्रशिक्षण\ प्रयास से व्यवहार में हुए परिवर्तन को अधिगम कहते हैं।”

 बुडवर्थ के अनुसार – “सीखना विकास की प्रक्रिया है।”

 अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक इस प्रकार है। 

1.  परिपक्वता

2.  संवेग

3.  मादक पदार्थों  का सेवन

4.  थकान

5.  बीमारी

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अधिगम की परिभाषाएं (Learning definitions)

learning definition

वी.एफ स्किनर के अनुसार अधिगम की निम्न परिभाषाएं हैं। 

(1)  प्रगतिशील व्यवहार व्यवस्थापन की प्रक्रिया को अधिगम कहते हैं। 

(2)  अधिगम व्यवहार में उत्तर उत्तर अनुकूलन की प्रक्रिया है। 

 जे.पी गिलफोर्ड के अनुसार अधिगम की परिभाषाएं। 

 व्यवहार के कारण व्यवहार में हुए परिवर्तन को अधिगम कहते हैं। 

 क्रो एंड क्रो के अनुसार – “आदतों, ज्ञान तथा अभिवृत्तियो का अर्जन ही अधिगम है।”

गेट्स व अन्य के अनुसार – “अनुभव तथा प्रशिक्षण के द्वारा व्यवहार का उन्नयन अधिगम कहलाता है।”

 एडमिन रे गुथरी के अनुसार – “अधिगम किसी परिस्थिति में  भिंन्न ढंग से कार्य करने की क्षमता है, जो की परिस्थिति के अनुसार पूर्व अनुभवों के कारण आती है।”

 अधिगम की विशेषताएं (Learning features)

 मेककॉव के अनुसार अधिगम की  निम्न विशेषताएं है। 




 योकम तथा  सिम्पसन के अनुसार अधिगम की विशेषताएं

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अधिगम के प्रकार (Types of learning)

 अधिगम किए जाने वाले कार्य के प्रकृति के आधार पर निम्न प्रकार के होते हैं। 

(1)  शाब्दिक अधिगम 

(2) गत्यात्मक अधिगम

(3) समस्या समाधान अधिगम

 शैक्षिक उद्देश्यों की दृष्टि से अधिगम के निम्न तीन क्षेत्र होते हैं जो इस प्रकार है। 

1.  ज्ञानात्मक –  ज्ञान,  बोध, अनुप्रयोग, विश्लेषण, संश्लेषण, मूल्यांकन

2.  भावात्मक – व्यक्ति के दृष्टिकोण, मूल्य संगठन, संवेदना। 

3.  क्रियात्मक –  कार्यकुशलता,जटिल  बाह्य व्यवहार। 



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शिक्षा स्तर के आधार पर अधिगम के तीन स्तर होते हैं। 

चिंतन स्तर – ज्ञान+ समझ+ तार्किक क्षमता (घटनाओं समस्याओं इत्यादि के विषय में अधिक समझ)
अबोध स्तर – ज्ञान समझ (अनेक सूचनाओं तथा तथ्यों के बीच संबंधों को समझने का प्रयत्न)
स्मृति  स्तर –  रटने पर आधारित ( विचार हीनता)

आर.ए.गैने नामक मनोवैज्ञानिक ने अधिगम के 8 सोपान बतलाए हैं। 

(1)  सांकेतिक सीखना –  पॉवलव 

(2)  उद्दीपन- अनुक्रिया सीखना –  क्रिया प्रसूति

(3)  सरल श्रंखला सीखना –  अधिगम सामग्री को क्रम से सीखना

(4)  शाब्दिक साहचर्य सीखना –  शाब्दिक व्यवहार में परिवर्तन

(5)  विभेदीकरण सीखना –  इक्षित उद्दीपक की पहचान तथा फिर अनुक्रिया

(6)  संप्रत्यय सीखना –  विभिन्न घटनाओं तथा व्यक्तियों के बारे में समझ

(7)  नियम सीखना –  गेस्टाल्ट अधिगम

(8)  समस्या समाधान सीखना –  अवलोकन, विश्लेषण, संश्लेषण, तर्क एवं चिंतन 

(Adhigam Complete Notes For CTET Exam)

अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक इस प्रकार हैं। 

1. पूर्व अधिगम

2. विषय वस्तु

3. शारीरिक स्वास्थ्य व परिपक्वता

4. अधिगम की इच्छा

5. थकान

6. वातावरण

7. सीखने की विधि

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अधिगम की विधियां (Learning methods)

learning methods

1. करके सीखना

2.  निरीक्षण करके सीखना

3.  परीक्षण करके सीखना

4.  वाद विवाद विधि

5.  वाचन विधि

6.  अनुकरण विधि

7.  प्रयास एवं त्रुटि विधि

8.  सतत विधि

9.  पूर्ण विधि

10.  अंश विधि

11.  अंतराल विधि

(Adhigam Complete Notes For CTET)

अधिगम के सिद्धांत (Learning principles)

 अधिगम के सिद्धांत को दो अलग-अलग भागों में व्यक्त किया गया है. 

(1)  व्यवहारवादी (वाटसन, बुडवर्थ,मैक्डूगल)
(2) गेस्टाल्टवादी

(1) थार्नडाइक का संबंधवाद का सिद्धांत

Thorndike’s theory of relativism In Hindi
 थार्नडाइक के संबंध बाद अधिगम सिद्धांत की प्रमुख  सैद्धांतिक बिंदु इस प्रकार हैं। 

1.  अधिगम में प्रयास एवं त्रुटि समाहित होती है। 

2.  अधिगम संबंधी या बंधनों के बनने का परिणाम है। 

3.  अधिगम संज्ञान  पर आधारित ना हो पर प्रत्यक्ष होता है। 

4.  अधिगम सूज युक्त ना होकर उत्तरोत्तर होती है। 

 थार्नडाइक में अपने प्रयोग के आधार पर तीन मुख्य नियम एवं पांच गौण नियमों का प्रतिपादन किया जो इस प्रकार हैं। 

(Adhigam Complete Notes For CTET Exam)
मुख्य तीन नियम  इस प्रकार है।

(1)  अभ्यास का नियम

(2)  प्रभाव का नियम

(3)  तत्परता का नियम



1. अभ्यास का नियम 

 यह नियम  इस तथ्य पर आधारित है।  कि अभ्यास से व्यक्ति में पूर्णता आती है।  अभ्यास का नियम यह बतलाता है कि अभ्यास करने से उद्दीपक तथा अनुक्रिया का संबंध मजबूत होता है।  और अभ्यास रोक देने से संबंध कमजोर पड़ जाता है। तथा पाठ्यवस्तु विस्मृति हो जाती है। 

 अभ्यास के नियम को दो भागों में बांटा गया है। 

मनुष्य जिस कार्य को बार-बार दोहराता है। उसे शीघ्र ही सीख जाता है। जब हम किसी पार्ट या विषय को दोहराना बंद कर देते हैं, तो उसे धीरे-धीरे भूलना प्रारंभ कर देते हैं। 

 थार्नडाइक ने अपने प्रयोगों के आधार पर बताया कि “सीखने की प्रक्रिया क्रमिक प्रक्रिया है।”

थार्नडाइक ने बताया कि सीखने के लिए दो बातें अनिवार्य है। 

1 बिल्ली भूखी होनी चाहिए।  अर्थात सीखने के लिए अभिप्रेरणा आवश्यक है। 

2  भूख की संतुष्टि के लिए भोजन का होना जरूरी है।  अर्थात पुनर्बलन होना जरूरी है। 

 अभ्यास के नियम का  शैक्षणिक महत्व
 2. प्रभाव का नियम 

इस नियम को संतोष संतोष का नियम भी कहते हैं। जिन कार्यों को करने से व्यक्ति को संतोष मिलता है।  उसे वह बार-बार करता है। जिन कार्यों से असंतोष मिलता है, उन्हें वह नहीं करना चाहता है।उन्हें वह नहीं करना चाहता है। 

संतोषप्रद परिणाम व्यक्ति के लिए शक्ति वर्धक होते हैं।  तथा कष्टदायक असंतोषप्रद परिणाम अनुक्रिया के बंधन को कमजोर बना देते हैं। 

 हिलगार्ड तथा बॉअर ने इस सिद्धांत की व्याख्या करते हुए कहा – “प्रभाव के नियम में किसी उद्दीपक व अनुक्रिया का संबंध उसके प्रभाव के आधार पर मजबूत या कमजोर होता है।  यह संबंध ऐसा होता है कि उससे जब व्यक्ति में संतोषजनक प्रभाव होता है, तो इसमें संबंध की शक्ति बढ़ जाती है। और जब संबंध ऐसा होता है, कि उससे व्यक्ति में असंतोष जनक प्रभाव होता है, तो उसकी शक्ति स्वत: ही कम होती जाती है।”

(Adhigam Complete Notes For CTET Exam)
प्रभाव के नियम का शैक्षणिक महत्व
3. तत्परता का नियम

इस नियम का तात्पर्य यह है कि जब प्राणी किसी कार्य को करने के लिए तैयार होता है, तो वह प्रक्रिया है:-  यदि वह कार्य करता है, जो उसे आनंद देता है तथा कार्य नहीं करता है। तो कष्ट व तनाव उत्पन्न करती है। जब वह सीखने को तैयार नहीं होता है अथवा उसे अधिगम हेतु बाहय किया जाता है तो वह झुझुलाहट अनुभव करता है।  रुचिकर कार्य करने में प्राणी को आनंद की अनुभूति होती है। और अरुचि कर कार्य सीखने में असंतोष का अनुभव करता है। 

 थार्नडाइक के द्वारा इस नियम के अंतर्गत निम्न बातों की व्याख्या की गई है जो इस प्रकार है। 
 तत्परता का नियम और कक्षा शिक्षण

1. नवीन ज्ञान देने से पूर्व छात्रों को मानसिक रूप से नए ज्ञान को ग्रहण करने के लिए तैयार करना चाहिए। 

2.  इसमें छात्रों की  वैयक्तिक भिन्नता को भी ध्यान में रखना चाहिए। 

3.  अध्यापक को छात्रों को अधिगम के लिए बाध्य नहीं करना चाहिए।  क्योंकि ऐसा करने से छात्रों का भावनात्मक दमन होगा और उनकी ऊर्जा का दुरुपयोग होगा। 

4.  छात्रों में मानसिक तत्परता के लिए अध्यापक को नवीन शिक्षण विधियों का प्रयोग करना चाहिए।  जिससे कि छात्रों में अधिगम के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न हो सके। 

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 सीखने के  गौण नियम इस प्रकार है। 

(1)  बहु अनुक्रिया का नियम

 जब व्यक्ति के सामने कोई भी समस्या आती है तो वह उसे सुलझाने के लिए अनेक प्रकार की अनुक्रियाएं करता है।  और अनुक्रियाओ के करने का क्रम तब तक चलता रहता है। जब तक वह सही अनुक्रिया के रूप में समस्या का समाधान नहीं कर लेता है।  इस प्रकार अपनी समस्या को सुलझाने पर व्यक्ति संतोष का अनुभव करता है। 

(2)  मानसिक स्थिति का नियम

किसी भी प्राणी के सीखने की योग्यता उसकी अभिवृत्ति तथा मनोवृति द्वारा निर्देशित होती है। यदि व्यक्ति की किसी कार्य को सीखने में रुचि व तत्परता है, तो वह उसे शीघ्र ही सीख लेता है।  किंतु यदि प्राणी मानसिक रूप से किसी कार्य को सीखने के लिए तत्पर नहीं है तो वह उस क्रिया को या तो सीख ही नहीं पाएगा अथवा फिर उसी कठिनाई से जूझना पड़ेगा। 

(3)  आंशिक क्रिया का नियम

यह नियम इस बात पर बल देता है कि कोई क्रिया संपूर्ण स्थिति के प्रति नहीं होती है।  यह केवल संपूर्ण स्थिति के कुछ पक्षियों तथा अंशों के प्रति ही होती है। अर्थात यह नियम बताता है कि कार्य को अंशिता विभाजित  करके करने से वह कार्य जल्दी सीख लिया जाता है। 

(4)  सादृश्य अनुक्रिया का नियम

इस नियम का आधार पूर्ण अनुभव है।  प्राणी किसी नवीन परिस्थिति या समस्या की उपस्थित होने पर उससे मिलती-जुलती अन्य परिस्थिति क्या समस्या का अनुसरण करता है।  जिसे वह पहले ही अनुभव कर चुका हो। वह उसके प्रति वैसी ही प्रतिक्रिया करेगा जैसा उसने पहली परिस्थिति या समस्या के साथ की थी।  समान तत्वों के आधार पर नवीन ज्ञान का पुराने अनुभवों से समानता करने पर सीखने में सरलता तथा शीघ्रता होती है। 

(2) साहचर्यात्मक स्थानांतरण

 इस नियम के अनुसार जो अनुक्रिया किसी एक उद्दीपक के प्रति होती है। वही अनुक्रिया बाद में उस उद्दीपक से संबंधित किसी अन्य उद्दीपक के प्रति भी होने लगती है। 

 थार्नडाइक ने अनुकूलित अनुक्रिया को ही साहचर्यात्मक स्थानांतरण के रूप में व्यक्त किया है।

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(3) अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धांत

इस सिद्धांत का प्रतिपादन रूसी शरीर शास्त्री इवान पी पावलव ने किया।  इस सिद्धांत के अनुसार जब प्राणी के समक्ष कोई स्वाभाविक उद्दीपक प्रस्तुत होता है।  तो वह प्राणी उस उद्दीपक के प्रति स्वाभाविक अनुक्रिया करता है। यदि इस स्वाभाविक उद्दीपक के साथ प्राणी की समझ को अस्वाभाविक उद्दीपक भी बार-बार प्रस्तुत किया  जाए तो वह अस्वाभाविक उद्दीपक स्वाभाविक उद्दीपक की भांति प्रभावशाली हो जाता है। और प्राणी जो अनुक्रिया स्वाभाविक उद्दीपक के प्रति करता है। वही अनुक्रिया अस्वाभाविक उद्दीपक के प्रति करने लगता है। 

इस सिद्धांत  प्रतिपादन हेतु पाललाव  ने एक कुत्ते पर प्रयोग किया था।  इस सिद्धांत का प्रयोग बच्चों में अच्छी आदतों तथा अच्छे स्वभाव के विकास के लिए किया जा सकता है।  इस सिद्धांत को शास्त्रीय अनुबंध सिद्धांत पारंपरिक अनुबंध सिद्धांत तथा सबंध प्रत्यावर्तन का सिद्धांत या संबंध प्रतिक्रिया का सिद्धांत  के नामों से भी जाना जाता है। 




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 (4) क्रिया प्रसूत अनुबंधन सिद्धांत

इस सिद्धांत का प्रतिपादन अमेरिकी वैज्ञानिक वी.एफ स्किनर ने किया था।  इस सिद्धांत के अंतर्गत स्किनर ने सीखने की व्याख्या दो रूपों में की है, जो इस प्रकार है। 

1.  प्रतिक्रियात्मक व्यवहार

2.  क्रिया प्रसूत व्यवहार

 प्रतिक्रियात्मक व्यवहार व्यवहार है, जो किसी उद्दीपक के नियंत्रण में होता है।  जबकि क्रिया प्रसूत व्यवहार प्राणी की इच्छा पर निर्भर करता है। 

 क्रिया प्रसूत व्यवहार को स्पष्ट करने के लिए स्किनर ने  चूहो तथा कबूतरों पर अनेक प्रयोग किए थे। इस प्रयोग के पश्चात स्किनर ने यह स्पष्ट किया कि यह कोई आवश्यक नहीं है कि जब प्राणी की समझ कोई उद्दीपक प्रस्तुत हो तभी वह प्राणी अनुक्रिया करें।  वातावरण में कुछ ऐसे भी प्राणी है जो हमेशा क्रियाशील रहते हैं, और उनकी इसी क्रियाशीलता के फलस्वरूप उन्हें परिणामों या उद्दीपको की प्राप्ति होती है। 

                                      इस स्किनर के प्रयोजन  हमेशा सक्रिय या क्रियाशील  रहते हैं। इसी कारण सिद्धांत को क्रियाशीलता का सिद्धांत, सक्रिय अनुबंधन का सिद्धांत भी कहते हैं।  इस सिद्धांत को R -S Type Theory भी कहा जाता है। स्किनर ने सीखने के क्षेत्र में पुनर्बलन को विशेष महत्व दिया है।  इस किन्नर ने पुनर्बलन को सीखने का राजमार्ग कहा है। स्किनर का यह सिद्धांत अभिक्रमित अनुदेशन पर आधारित है। 

(5) गेस्टाल्टवाद का सिद्धांत

इस सिद्धांत में मैक्सवर्दीमर, कुर्ट कोफ्का ,कुर्ट लेविन, कोहलर । 

 गेस्टाल्ट शब्द जर्मनी भाषा का शब्द है।  इससे आशय समग्रता,संपूर्णता तथा पूर्णाकार से लगाया जाता है.गेस्टाल्ट सिद्धांत का जनक  मैक्सवर्दीमर को माना जाता है। गेस्टाल्टवादियों में  कोहलर सबसे प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक है। इन्होंने अंतर्दृष्टि एवं सुक्ष के सिद्धांत  का प्रतिपादन किया है। इस सिद्धांत के प्रतिपादक हेतु के कोहलर ने सुल्तान नामक चिंपैंजी ( वनमानुष)  पर कई प्रयोग किए थे। इस प्रयोग के पश्चात कोहलर ने यह स्पष्ट किया था कि व्यक्ति अपनी समस्या का समाधान  सूझबूझ एवं अनुभव के द्वारा करता है। सीखने के क्षेत्र में सूझ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम कोहलर ने किया था। 

गेस्टाल्टवादियों का मानना है कि सीखने की प्रक्रिया धीरे-धीरे ना होकर अचानक होती है।  बुद्धिमान प्राणी को किसी बात की जानकारी अचानक ही हो जाती है। गेस्टाल्ट वादियों के अनुसार कक्षा शिक्षण के दौरान बालकों के समक्ष समस्याओं को अचानक प्रस्तुत करना चाहिए।  यह सिद्धांत पूर्ण से अंश की ओर शिक्षण सूत्र पर आधारित है।

(Adhigam Complete Notes For CTET Exam)

अधिगम अंतरण\ स्थानांतरण (Transfer of Learning)

जब किसी विषय या क्षेत्र में प्राप्त किया गया अनुभव किसी दूसरे विषय के क्षेत्र में सीखने को प्रभावित करता है।  तो उसे अधिगम अंतरण कहते हैं। यह मुख्यतः तीन प्रकार का होता है। 

1.  सकारात्मक अंतरण

2.  नकारात्मक अंतरण

3.    शुन्य  या उदासीन अंतरण

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1.  सकारात्मक अंतरण 

जब किसी एक विषय क्षेत्र में प्राप्त किया गया अनुभव किसी दूसरे विषय क्षेत्र में सीखने में सहायता पहुंच जाए तो उसे सकारात्मक अंतरण कहते हैं।  यह मुख्यतः तीन प्रकार का होता है। 

(a)   क्षैतिज अंतरण – जब किसी एक विषय क्षेत्र में प्राप्त किया गया अनुभव उसी के समान दूसरे विषय क्षेत्र में सीखने में सहायता  पहुंचाता है तो उसे क्षैतिज अंतरण कहते हैं। 

 जैसे-  गणित, भौतिक विज्ञान

(b)   उर्ध्व अंतरण –  जब किसी निम्न क्षेत्र में प्राप्त अनुभव किसी क्षेत्र में सीखने में सहायता पहुंचाए तो उससे  उर्ध्व अंतरण कहते हैं। 

 जैसे-  साइकिल चलाना, फिर मोटरसाइकिल चलाना

(c) द्विपार्श्विक अंतरण –  जब शरीर के किसी एक भाग को दिया गया प्रशिक्षण शरीर के दूसरे भाग में स्थानांतरित हो जाए तो उसे  द्विपार्श्विक अंतरण कहते हैं। 

 जैसे-  हाथ  की सिलाई मशीन, पैर की सिलाई मशीन, दाएं हाथ से लिखना, बाएं हाथ से लिखना। 

2.  नकारात्मक अंतराल

 जब किसी एक विषय क्षेत्र में प्राप्त अनुभव किसी दूसरे विषय क्षेत्र में सीखने में बाधा पहुंचाए या भ्रांति उत्पन्न कर दे तो उसे नकारात्मक अंतरण कहते हैं। 

 जैसे- PUT,BUT

3.  शुन्य या उदासीन अंतरण

 जब किसी एक विषय क्षेत्र में प्राप्त अनुभव किसी दूसरे विषय क्षेत्र में सीखने में ना हो तो बाधा पहुंचाये न ही सहायता पहुंचये तो उसे शुन्य या उदासीन अंतरण कहते हैं। 

 जैसे-  गणित  संस्कृत, कला  अंग्रेजी 




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(Adhigam Complete Notes For CTET Exam)

अधिगम के वक्र तथा पठार

(Learning curve)

अधिगम के चार प्रकार के वक्र होते हैं।  

स्पिनर “अधिगम वक्र किसी दी हुई क्रिया में व्यक्ति की उन्नति का वर्गीकरण  कागज पर प्रदर्शन है।”

(1) सरल रेखीय वक्र

(2)  नतोदर वक्र

(3)  उन्नतोदर वक्र

(4)  सीढ़ीदार वक्र

1.  सरल रेखीय वक्र (Straight line Curve)

यह वक्र सामान्य रूप से बहुत कम या ना के बराबर देखने को मिलता है। यह तब बनता है जब अधिगम बिना रुके लगातार तीव्र गति से बहता जाए।

2. नतोदर वक्र (Concave Curve)

यह वक्त तब बनता है जब प्रारंभ में सीखने की गति धीमी हो और बाद में तीव्र हो जाए।

3.उन्नतोदर वक्र (Convex Curve)

यह वक्र तब बनता है जब सीखने की गति शुरू में तीव्र हो लेकिन धीरे-धीरे कम हो जाए।

4. सीढ़ीदार वक्र (Terraced Curve)

यह वक्त तब बनता है जब अधिगम की गति अनियमित रूप से कभी तीव्र तो कभी मंद होती रहती है।

अधिगम में पठार

जब किसी कारणवश प्रयास करने के पश्चात भी अधिगम की मात्रा में किसी प्रकार की वृद्धि नहीं होती है। अधिगम की मात्रा एक ही जगह स्थिर रहती है तो इस स्थिरता या रुकावट को अधिगम में पठार उत्पन्न होना कहा जाता है। इसके लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदाई हो सकते हैं।

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