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EVS Pedagogy Notes (*Topic Wise*) In Hindi For CTET & All TET Exams

Environment Pedagogy In Hindi

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Environment Pedagogy In Hindi(EVS Pedagogy Notes)

दोस्तो आज के इस आर्टिकल में हम आपके लिए पर्यावरण pedagogy (evs pedagogy notes in hindi) के नोट लेकर आए हैं । अगर आप भी किसी भी शिक्षक भर्ती परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं,तो उसमें पर्यावरण अध्ययन (Environment Pedagogy)  एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय हो जाता है । इन्हीं सभी परीक्षाओं को ध्यान में रखते हुए आप के साथ पर्यावरण pedagogy Notes के संपूर्ण नोट्स शेयर कर रहे हैं।  जो कि आप सभी के लिए बहुत ही उपयोगी साबित होने वाले हैं।

इस पोस्ट में हम जानेंगे पर्यावरण अध्ययन से संबंधित निम्न टॉपिक्स-

Topic-1 – पर्यावरण अध्ययन की अवधारणा एवं क्षेत्र (Concept and scopes of Evs)

Topic-2 –  पर्यावरण अध्ययन का महत्व एवं एकीकृत पर्यावरण अध्ययन(Significance of Evs ,Integrated Evs)

Topic- 3 –  पर्यावरण अध्ययन(Environmental studies),पर्यावरण शिक्षा

Topic- 4 –  अधिगम के सिद्धांत (Learning principles)


Concept and scopes of Evs (पर्यावरण अध्ययन की अवधारणा एवं क्षेत्र)

Environment Pedagogy In Hindi

Introduction (परिचय)

पर्यावरण अध्ययन (Environment)का अध्यापन राष्ट्रीय पाठ्यचर्या समिति ने 1975 के नीतिगत दस्तावेज” 10 वर्षीय स्कूल के लिए पाठ्यक्रम: एक रूपरेखा” अर्थात(The curriculum for the 10 year school: a framework)मैं सिफारिश की थी, कि एक एकल विषय पर्यावरण अध्ययन(evs)  प्राथमिक स्तर पर पढ़ाया जाना चाहिए।

पर्यावरण का अर्थ है वाह्य आवरण जो हमें चारों ओर से घेरे हुए हैं।  अतः पर्यावरण से अभिप्राय उन सभी भौतिक दशाएं तथा तथ्यों से लिया जाता है जो हमें चारों ओर से घेरे हुए हैं।

पर्यावरण शिक्षा निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है अतः प्राथमिक स्तर से ही इसका शिक्षण आवश्यक है।

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पर्यावरण अध्ययन की संकल्पना(NCF2005)Concept of environmental studies-

पर्यावरण अध्ययन विषय को बाल केंद्रित एवं एकीकृत करने के लिए इसमें लगभग 6 सामान्य विषयों का समावेश किया गया है जो इस प्रकार है।

1  परिवार और मित्र(Family and friends)

2 भोजन(Food)

3  आश्रय( shelter)

4  पानी( water)

5  यात्रा( travel)

6 चीजें जो हम बनाते हैं और करते हैं (Things we make and do)

पर्यावरण अध्ययन का क्षेत्र

पर्यावरण अध्ययन का क्षेत्र (Scop of EVS)

1 पर्यावरण अध्ययन में हम प्राकृतिक आपदाओं जैसे  बाढ़, भूकंप, भूस्खलन चक्रवात आंधी के कारण एवं परिणाम को समझने एवं प्रदूषण के प्रभाव को कम करने के उपाय का अध्ययन करते हैं।

2  इसमें हम वनस्पति एवं जंतु के प्रकारों एवं  उनकी सुरक्षा के बारे में अध्ययन करते हैं।

3 प्राकृतिक संपदा एवं उनकी समस्याओं का संरक्षण एवं सुरक्षा इसमें जल, मृदा, वन, खनिज, बिजली एवं परिवहन शामिल है।

4  पर्यावरण के अध्ययन क्षेत्र में ना सिर्फ पृथ्वी वरन अंतरिक्ष भी सम्मिलित है

5  मानव पर्यावरण संबंध पर्यावरण मुद्दों से संबंधित नीति एवं कानून का अध्ययन करते हैं ।

6  मौसम संबंधी अनेक कारण जैसे कि तापमान,, पवन, दाब, वर्षा, ओलावृष्टि, हिमपात ,पाला पड़ना भी पर्यावरण के जैविक घटकों को प्रभावित करते हैं जलवायु परिवर्तन के कारण आज अनेकों समस्याएं हमारे सामने प्रगट हो रही हैं, जिन्हें समझने तथा उनके निवारण हेतु मौसम विज्ञान के बारे में हम पर्यावरण अध्ययन में पढ़ते हैं ।

7 पर्यावरण का क्षेत्र काफी व्यापक होता है पर्यावरण अध्ययन को 3:00 व्यापक नियमों के अनुसार संचालित किया जाता है।

8 पर्यावरण अध्ययन का विस्तार पर्यावरण को सीखने के माध्यम  की तरह प्रयोग करने से लेकर, इसकी सुरक्षा एवं संरक्षण के लिए क्या किया जा सकता है इस की विषय वस्तु की व्यवस्था बच्चे के आसपास के परिचित अनुभवों से शुरू होकर बाहरी अपरिचित दुनिया की तरफ चलती है ।

9 पर्यावरण अध्ययन का क्षेत्र सिर्फ बच्चों को अपने पर्यावरण की खोज करके समझा ना ही नहीं बल्कि-

पर्यावरण अध्ययन का महत्व एवं एकीकृत पर्यावरण अध्ययन(Significance of Evs ,Integrated Evs)

पर्यावरण नोट्स pdf

पर्यावरण अध्ययन का महत्व Significance of Evs

1 संपूर्ण शिक्षा का उद्देश्य बच्चों की मानसिक, भावनात्मक, सृजनात्मक, सामाजिक, शारीरिक आदि क्षमताओं का विकास करना है, यह सिर्फ कक्षाओं में रट्टा मार कर पढ़ने से नहीं होता बल्कि पर्यावरण के साथ जुड़ाव तथा अनुभव से होता है।

2  पर्यावरण अध्ययन के मुख्य केंद्र बिंदुओं में से एक है।  बच्चों को वास्तविक संसार जिसमें वह रहते हैं से परिचित कराया जाए पर्यावरण अध्ययन की परिस्थितियां तथा अनुभव उन्हें अपने प्राकृतिक एवं मानव निर्मित प्रति देश की छानबीन करने तथा उससे जुड़ने में सहायता करते हैं।

3 हम अपने अस्तित्व एवं जीवन की निरंतरता के लिए अपने पर्यावरण पर निर्भर हैं।  इस संदर्भ में प्रत्येक व्यक्ति का नैतिक कर्तव्य है कि हम अपने पर्यावरण की रक्षा एवं संरक्षण करें ऐसा  करने के लिए इस बात की समझ अत्यंत आवश्यक है, कि हमारे पर्यावरण की संरचना क्या है, तथा इसका महत्व क्या है पर्यावरण अध्ययन इसमें सहायक  होता है।

4 पर्यावरण अध्ययन बच्चों को पर्यावरण में होने वाली अनेक घटनाओं एवं क्रियाकलापों के बारे में अपनी समाज का विकास करने में सहायता करता है इसके द्वारा इन्हें सीखने के लिए प्रत्यक्ष अनुभव प्रदान किए जाते हैं।

5  पर्यावरण अध्ययन बच्चों को यह समझ प्रदान करता है कि हम किस प्रकार से अपने भौतिक, जैविक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक पर्यावरण के साथ पारस्परिक क्रियाकलाप करते हैं तथा उसके द्वारा प्रभावित होते हैं।

6  पर्यावरण अध्ययन का मुख्य लक्ष्य की बच्चों को इस योग्य बनाना ताकि वह पर्यावरण से संबंधित सभी मुद्दों को जानने समझने और संबंधित समस्याओं को हल करने में सक्षम हो सके।

7 यह बच्चों को कक्षा में सकारात्मक माहौल प्रदान करता है तथा सीखने के लिए प्रेरित करता है।

8  पर्यावरण अध्ययन शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को सरल और सुविधाजनक बनाने में सहायक है क्योंकि यह करके सीखने पर बल देता है।

9  पर्यावरण अध्ययन पाठ्यक्रम में हाथों से काम करने के महत्व और विरासत में प्राप्त शिल्प परंपराओं को प्रोत्साहित करने की जरूरत पर बल दिया गया है।

10 पर्यावरण अध्ययन NCF 2005  की चिंताओं में से एक को कम करने में भी मदद करता है, पाठ्यक्रम के बोझ को घटाना।

11  इसके अध्ययन से बच्चे गहनता से  सोचते एवं सीखते हैं तथा अनुभवों का विश्लेषण करते हैं।

12 इस प्रकार के अनुभव बच्चों में सामूहिक कौशलों का विकास करने में सहायता करते हैं।  यह उन्हें दल के साथ घुलने मिलने के कुछ प्राथमिक कौशलों का विकास करने में सहायता करते हैं, जैसे की दल के साथ काम करना, उनकी बात सुनना तथा उनसे बात करना सीखना आदि।

13 इसी के साथ बच्चों में दूसरों के दृष्टिकोण एवं विश्वासों के प्रति भावनाओं का विकास होता है।  विचारों, अनुभवों लोगो, भोजन, भाषा, पर्यावरण तथा सबसे अधिक सामाजिक-सांस्कृतिक रिवाजों एवं आस्थाओं की कदर करना सीखते हैं।

14 अपने शुरुआती वर्षों में बच्चों के ऐसे अनुभव उन्हें बड़े होकर लोकतांत्रिक देश के अच्छे नागरिक बनने में सहायता करते हैं ।

15 अधिगम इर्द गिर्द के पर्यावरण, प्रकृति, वस्तु एवं लोगों के साथ क्रियाओं एवं भाषा के द्वारा संपर्क बनाने से होता है।  खोजना तथा खुद काम करना, प्रश्न करना सुनना तथा सहक्रिय करना मुख्य क्रियाए हैं जिसके माध्यम से अधिगम होता है, पर्यावरण अध्ययन  इसमें सहायक है । 
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एकीकृत पर्यावरण अध्ययन(Integrated Evs)

1 हमारी राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा( 1975, 1988, 2000, 2005) इस बात को ध्यान में रखकर बनाई गई है कि पर्यावरण की सुरक्षा महत्वपूर्ण है।

2  राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में” पर्यावरण के बचाव” को केंद्र में रखकर ही राष्ट्रीय पाठ्यचर्या के विकास की बात कही गई है अर्थात यह संपूर्ण शिक्षा का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है।

3  राष्ट्रीय स्तर पर N.C.E. R.T द्वारा विकसित सब्जी पाठ्यचर्या में इस पर ध्यान देने पर विशेष बल दिया गया है।

4 1975 की राष्ट्रीय पाठ्यचर्या(NCF 1975) प्राथमिक कक्षाओं में पर्यावरण को एक अलग विषय के रूप में पढ़ाने की थी।  इसमें यह प्रस्तावित किया गया था कि पर्यावरण अध्ययन के रूप में प्राथमिक कक्षाओं में कक्षा 1 और कक्षा दो में प्राकृतिक और सामाजिक दोनों को सम्मिलित पाठ्यक्रम के रूप में पढ़ाया जाना चाहिए एवं कक्षा 3 व 4 तक इसमें दो विषय के रूप में अर्थात पर्यावरणीय अध्ययन 1 ( प्राकृतिक विज्ञान) और पर्यावरण अध्ययन 2 ( सामाजिक विज्ञान) पढ़ाया जाना चाहिए ।

5 राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 तथा राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 1988(NCF 1988) में भी पर्यावरण अध्ययन के बारे में उपयुक्त व्यवस्था को ही मंजूर किया गया था।

बोझ रहित अधिगम ( शिक्षा: राष्ट्रीय सलाहकार समिति की रिपोर्ट 1993)

ईश्वर भाई पटेल समीक्षा समिति 1977,NCERT कार्य समूह( 1984) और शिक्षा के लिए समीक्षा समिति पर राष्ट्रीय नीति(1990) ने सीखने के कार्य को आसान करने के लिए छात्रों पर शैक्षणिक बोझ को कम करने के लिए कई सिफारिशें की लेकिन कम होने के बजाय समस्या और अधिक तीव्र हो गई ,और इसीलिए संसाधन विकास मंत्रालय ने छात्रों पर शैक्षणिक  बोझ बढ़ाने की समस्या की जांच करने के लिए 1992 में एक राष्ट्रीय सलाहकार समिति की स्थापना की( भारत सरकार 1993)

इसके उद्देश्यों में शामिल है-” जीवन भर स्वयं सीखने और कौशल तैयार करने के लिए क्षमता सहित की गुणवत्ता में सुधार करते हुए सभी स्तरों पर छात्रोंप्  पर भार को कम करने के लिए तरीके और साधन सूझाना”

इस समिति ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की( 1993) “ बोझ रहित शिक्षण”  – पर्यावरण शिक्षा पाठ्यक्रम पर निर्णय को काफी हद तक इसके द्वारा निर्देशित किया गया था।

NCF -2000 (राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2000)

NCF -2000  ने पहली बार सुझाव दिया की विभिन्न विषयों के विचारों और अवधारणाओं को एकीकृत किया जाए । जैसे-  भारत की संस्कृति विरासत पर्यावरण की सुरक्षा, परिवार प्रणाली, कानूनी साक्षरता, मानव अधिकार शिक्षा, वैज्ञानिक सोच का पोषण इत्यादि।

NCF -2000 मैं पहली बार पर्यावरण अध्ययन को सामाजिक अध्ययन और विज्ञान के रूप में प्रथक प्रथक ना कर एकीकृत रूप में पढ़ने की सिफारिश की गई थी इसके अनुसार-

NCF -2005 (राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005)

पर्यावरण अध्ययन को एकीकृत करने की आवश्यकता-

ऐसा माना जाता है, कि बच्चा टुकड़े टुकड़े में खंडित बातों की बजाय संपूर्णता मैं बातों को आसानी से समझता है।  जैसे कि बच्चा पेड़ को एक संपूर्ण पेड़ के रूप में पहचानता है। वह पेड़ को घर का पेड़ या बाहर का पेड़ के रूप में पहचानता है।  वह मूर्त बातों को ही देखता हैऐसे में हम यदि उसे अमूर्त और अनुभव से परे की बात बताने लगे तो वह उन्हें अपने अनुभवों से जोड़ नहीं पाएगा और सूचनाओं को रटने लगेगा  अपनी पर्यावरण के प्रति सार्थक समझ विकसित नहीं कर पाएगा।

NCERT  द्वारा कक्षा 3- 5: तक पर्यावरण अध्ययन के पाठ्यक्रम को एकीकृत, स्वरूप प्रदान करने के लिए 6 विषय क्षेत्रों  की पहचान की जिसमें बहु विशेयकता को एकीकृत किया गया इन्हें ”थीम” अर्थात प्रकरण कहां गया।

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  1. परिवार एवं मित्र( संबंध, जानवर, पौधे, कार्य एवं खेल)
  2. भोजन
  3. आश्रय\ आवाज
  4. पानी
  5. यात्रा
  6. चीजें जो हम बनाते और करते हैं

 1 “परिवार एवं मित्र” प्रकरण की भाग के रूप में

 Environmental studies and environmental education (पर्यावरण अध्ययन एवं पर्यावरण शिक्षा)

environmental studies topics For CTET

पर्यावरण अध्ययन(EVS) (Environmental studies)

पर्यावरण अध्ययन परिवेश के सामाजिक और भौतिक घटकों की अंतर क्रियाओं का अध्ययन है।  अतः जब हम अपने परिवेश, अर्थात इर्द-गिर्द उपस्थित उपरोक्त सामाजिक और बौद्धिक घटकों को समझने का प्रयास करते हैं, तो वहीं पर्यावरण अध्ययन कहलाता है।

सामाजिक घटक- भाषा, मूल्य, संस्कृति

भौतिक घटक-  वनस्पति, पशु पक्षी, हवा, पानी

पर्यावरण शिक्षा(environmental education)

पर्यावरण शिक्षा में लोगों को बताया जाता है कि प्राकृतिक पर्यावरण के तरीके पर प्रदूषण मुक्त पर्यावरण को बनाए रखने के लिए परिस्थितिकी तंत्र को कैसे व्यवस्थित रखना चाहिए?

अर्थात पर्यावरण के विविध पक्षों इसके घटकों एवं मानव के साथ अंतः संबंध है । परिस्थितिक तंत्र, प्रदूषण विकास, नगरीकरण, जनसंख्या आदि का पर्यावरण पर प्रभाव आदि की समुचित जानकारी देना। .

उद्देश्य-

शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ज्ञान प्रदान  कराने के साथ साथ जागरूकता पैदा करना, चिंतन का एक दृष्टिकोण पैदा करना और पर्यावरणीय चुनौतियों को नियंत्रित करने के आवश्यक कौशल को प्रदान करना है।

आज के बच्चे आंतरिक खेलों और इलेक्ट्रॉनिक यंत्रों को खेलने में व्यस्त रहते हैं।  जिससे उन्हें अपनी प्राकृतिक दुनिया के बारे में जानने के अवसर नहीं मिलते छात्रों को अपने परिवेश से परिचित कराने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए,  और इसलिए पर्यावरण शिक्षा को पाठ्यक्रम में शामिल करना आवश्यक है।

पर्यावरण अध्ययन के उद्देश्य(NCF 2005) Objectives of environmental studies)

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अधिगम(Learning)

learning principles of evs

अधिगम\ सीखना एक व्यापक सतत एवं जीवन पर्यंत चलने वाली महत्वपूर्ण प्रक्रिया है।  मनुष्य जन्म के उपरांत ही सीखना प्रारंभ कर देता है और जीवन भर कुछ न कुछ सीखता रहता है।  इसे ही अधिगम कहते हैं।

अधिगम के सिद्धांत (Learning principles)

अधिगम के भी कुछ नियम है अधिगम की प्रक्रिया इन्हीं नियमों के अनुसार चलती है कुछ लेखकों ने  इन नियमों को “ सिद्धांतों” ( principles)की संज्ञा दी है।

अधिगम क्रिया को बालक आभास या अनुभूति के फल स्वरुप संपन्न कर पाता है।

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1  थार्नडाइक का सीखने का सिद्धांत(Thorndike’s theory of learning)

इस सिद्धांत को विभिन्न नामों से पुकारा जाता है जो कि इस प्रकार है।

1  थार्नडाइक का संबंध वाद का सिद्धांत(Connectionist theory)

2  उद्दीपन- प्रतिक्रिया सिद्धांत(Stimulus-reaction(R-S) theory)

3   सीखने का संबंध सिद्धांत(Bond theory of learning)

4 प्रयत्न एवं भूल का सिद्धांत (Trial & Error learning )

इस सिद्धांत के अनुसार-  जब व्यक्ति कोई कार्य सीखता है।  तब उसके सामने एक विशेष स्थिति या उद्दीपक होता है, जो एक विशेष प्रकार की प्रतिक्रिया करने के लिए प्रेरित करता है।  इस प्रकार एक विशिष्ट उद्दीपक का एक वशिष्ठ प्रतिक्रिया से संबंध स्थापित हो जाता है। जिससे”उद्दीपक प्रतिक्रिया संबंध”(S-R Bond)द्वारा व्यक्त किया जा सकता है।

थार्नडाइक ने अपने सीखने के सिद्धांत का परीक्षण बिल्ली पर किया थार्नडाइक ने संबंध बाद के सिद्धांत में सीखने के क्षेत्र में प्रयास तथा त्रुटि को विशेष महत्व दिया है उन्होंने कहा है, कि जब हम किसी काम को करने में तृतीय भूल करते हैं,और बार-बार प्रयास करके त्रुटियों की संख्या कम या समाप्त की जाती है, तो यह स्थिति प्रयास एवं त्रुटि द्वारा सीखना कहलाती है।

इस सिद्धांत का शैक्षणिक महत्व

1 थार्नडाइक का अधिगम के नियम(Tharndike’s Lows of  learning)

इन नियमों को 2 वर्गों में विभाजित किया जा सकता है।

1  मुख्य नियम(Primary Lows)
2 गौण नियम (Secondary laws)

थार्नडाइक ने सीखने के लिए पुनर्बलन को आवश्यक माना क्योंकि सीखी गई अनुप्रिया को स्पष्ट रूप से व्यक्त करने के लिए पुनर्बलन आवश्यक होता है।

2 अनुकूलित अनुक्रिया का सिद्धांत(Classical conditioning theory)

इस सिद्धांत के प्रतिपादक रुचि  शरीर शास्त्री “I.P पावलव” थे इन्होंने कुत्ते पर अपना प्रयोग किया था।

इस सिद्धांत का शिक्षा में महत्व

3 स्किनर का सिद्धांत

इस सिद्धांत को निम्न नामों से भी जाना जाता है।

स्किनर ने अपने प्रयोग चूहे एवं कबूतर की क्रियाओं पर किए  हैं।

इस सिद्धांत के अनुसार-  हम वह व्यवहार करना सीख जाते हैं । जिसमें परिणाम सकारात्मक होते हैं, और हम वह व्यवहार करना छोड़ देते हैं, जो हमें नकारात्मक परिणाम देते हैं इस प्रकार के व्यवहार को क्रिया प्रसूत अनुबंधन का सिद्धांत कहते हैं ।

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इस सिद्धांत का शिक्षा में महत्व

4 प्रबलन सिद्धांत (Reinforcement Theory)

प्रतिपादक – सी .एल .हल (अमेरिका)

Book –  principles of behaviour

यह सिद्धांत थार्नडाइक तथा पावलव के सिद्धांत पर आधारित था इस सिद्धांत के अनुसार- ” प्रत्येक मनुष्य अपनी आवश्यकता की पूर्ति करने का प्रयत्न करता है सीखने का आधार की आवश्यकता की पूर्ति की प्रक्रिया है मनुष्य या पशु उसी कार्य को सीखता है जिस कार्य से उसकी इसी आवश्यकता की पूर्ति होती है”

हल का कथन- “सीखना आवश्यकता की पूर्तिकी प्रक्रिया द्वारा होता है”

Ex. 1 बिल्ली  – क्रियाशील     – भोजन प्राप्त

       (भूखी)        भूख( चालक)

      2 बिल्ली की भूख की आवश्यकता संतुष्ट हो जाती है।  परिणाम स्वरूप भूख से चालक शक्ति बंद हो जाती है।

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शैक्षणिक महत्व-

1 यह सिद्धांत इस बात पर बल देता है कि विद्यालय की विभिन्न क्रियाओं में बालकों की आवश्यकताओं पर भी ध्यान दिया जाए।

2  यह सिद्धांत शिक्षा में प्रेरणा को महत्व देता है।

3  यह सिद्धांत कहता है कि कक्षा में पढ़ाई जाने वाले तथ्यों के उद्देश्य को स्पष्ट करना परम आवश्यक है।

4  इस सिद्धांत की प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें बालकों की क्रियाओं और आवश्यकताओं से संबंधित की स्थापना पर विशेष बल दिया जाता है।

5 यह सिद्धांत बताता है कि पाठ्यक्रम का निर्माण बालकों की विभिन्न आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर ही किया जाना चाहिए।

5  सूझ अंतर्दृष्टि का सिद्धांत (Insight Theory)

इस सिद्धांत के प्रतिपादक–  कोहलर

कोहलर का प्रयोग – सूझ   द्वारा सीखने के सिद्धांत का प्रतिपादन करने के लिए कूलर ने 6 वनमानुष ओं की एक कमरे में बंद कर दिया कमरे की छत पर खेलों का एक गुच्छा लटका दिया और कमरे के कोने में एक बॉक्स रख दिया

वनमानुष के समान मनुष्य भी सूझ  के आधार पर सीखते हैं प्रत्येक कार्य  या क्रिया के सीखने में हमें सूझ का प्रयोग करना पड़ता है।  विभिन्न समस्याओं का हल भी सूझ  के माध्यम से होता है। 

सूझ  को प्रभावित करने वाले कारक –  बुद्धि, समस्या की रचना, अनुभव। 

शिक्षा में महत्व-

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इस पोस्ट में हमने पर्यावरण pedagogy Notes (EVS Pedagogy Notes (*Topic Wise*) In Hindi) आप सभी के साथ शेयर किए हैं आशा है यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी साबित होगी!!!

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