पीएम मोदी नें किया नए संसद भवन में अशोक स्तम्भ का उद्घाटन, जानिए इसके इतिहास समेत अन्य महत्वपूर्ण जानकारी 

Ashok Stambh History and Controversy: 11 जुलाई 2022 को देश के माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नें नए संसद भवन की छत पर अशोक स्तम्भ का उद्घाटन किया। उद्घाटन के बाद से ही इसकी मूल संरचना से भिन्न होने के कारण ये विवादों में घिरा हुआ है। जहां एक ओर सम्राट अशोक द्वारा बनवाए गए सारनाथ के अशोक स्तम्भ में सिंहों की आभा शांत एवं सुंदर प्रतीत होती थी, वहीं दूसरी ओर संसद भवन में बनाए गए स्तम्भ में सिंहों की आभा गर्जना करते हुए दिखाई गई है। स्तम्भ में हुए इस बदलाव को लेकर लगातार ही लोगों की अलग-अलग प्रतिक्रियाएँ देखने को मिल रही है। 

जानें नए बने अशोक स्तम्भ के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य 

प्रधानमंत्री द्वारा 11 जुलाई 2022 को नए संसद भवन की छत पर 6.5 मीटर ऊंचे अशोक स्तम्भ का उद्घाटन किया गया। इस स्तम्भ को कांस्य धातु से बनाया गया है। बता दें, इस स्तम्भ का कुल वजन 9500 किलोग्राम है, तथा इसे सपोर्ट देने के लिए इसके नीचे 6500 किलोग्राम भार वाली एक स्टील की सहायक आकृति बनाई गई। इस स्तम्भ में प्रदर्शित सिंहों की आभा शक्तिपूर्ण तथा गर्जना करते हुए नजर आ रही है, जो इस समय सुर्खियों का कारण बनी हुई है। 

कब अपनाया गया अशोक स्तम्भ को राष्ट्रीय चिन्ह के रूप में? यहाँ जानें 

26 जनवरी वर्ष 1950 को स्वतंत्र भारत में संविधान को लागू किया गया, इसी दिन अशोक स्तम्भ को देश के राष्ट्रीय चिन्ह के रूप में अपनाया गया। यह स्तम्भ सारनाथ में सम्राट अशोक द्वारा निर्मित अशोक स्तम्भ से लिए गया है। स्तम्भ में बनें चारों सिंह क्रमशः शक्ति, गर्व, साहस तथा आत्मविश्वास के प्रतीक मानें जाते हैं। राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तम्भ का आदर्श वाक्य ‘सत्यमेव जयते’ है। यह भी जानने योग्य है, कि यह वाक्य ‘मुंडकोपनिषद’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है “सत्य की सदैव जीत होती है”। 

Original India national emblem image

जानें क्या है अशोक स्तम्भ का इतिहास 

273 ईसा पूर्व के समय भारत पर मौर्य वंश के तीसरे शासक सम्राट अशोक का शासन था। उस समय अशोक को एक क्रूर शासक माना जाता था। किन्तु कलिंग युद्ध में हुए नरसंहार को देख सम्राट का हृदय परिवर्तित हो गया। अशोक नें कलिंग युद्ध के बाद राजपाठ त्याग कर बौद्ध धर्म को अपना लिया। 

चूंकि अशोक नें बौद्ध धर्म को अपनाया था, उन्होनें बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए पूरे देश में चारों ओर सिंहों की गर्जना करते हुए आकृति बनवाई, जिसे बौद्ध धर्म का प्रतीक भी माना जाता है। स्तम्भ में केवल सिंहों को लिया गया चूंकि भगवान बुद्ध को सिंहों का पर्याय माना जाता था तथा बुद्ध द्वारा सारनाथ में दिये धर्मोपदेश का नाम भी ‘सिंह गर्जना’ था। चूंकि स्तम्भ ने निर्माण का श्रेय सम्राट अशोक को जाता है, उन्हीं के नाम पर स्तम्भ का नाम अशोक स्तम्भ रखा गया। 

आपको बता दें, चारों ओर सिंहों की गर्जना करते हुए आकृति के नीचे की ओर स्तम्भ में एक साँड, एक अश्व तथा एक गज भी दिखाई पड़ते हैं। अश्व तथा साँड के मध्य में बना चक्र ‘अशोक चक्र’ हमारे राष्ट्रीय ध्वज ‘तिरंगा’ का राष्ट्रीय चिन्ह है। अशोक चक्र में कुल 24 तीलियाँ बनी हैं। जिनमें पहली 12 तीलियाँ बुद्ध द्वारा बताए 12 कारणों को प्रदर्शित करती हैं तथा अन्य 12 तीलियाँ “नो कॉज़ नो इफैक्ट” को प्रदर्शित करती हैं। 

कौन कर सकता है अशोक स्तम्भ का उपयोग 

अशोक स्तम्भ के अपयोग की अनुमति केवल संवेधानिक पदों पर पदस्थ अधिकारियों को है। इनके अतिरिक्त आम नागरिक जन अशोक स्तम्भ का उपयोग नहीं कर सकते। सेवानिवृत्त अधिकारियों को भी अशोक स्तम्भ के उपयोग की अनुमति नहीं है।

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