भाषा शिक्षण के उपागम (Bhasha Shikshan Ke Upagam Hindi Mein)
- शिक्षण की प्रणाली को ही उपागम कहते हैं, उपागम को अंग्रेजी में एप्रोच कहते हैं।
- शिक्षण विधियां शिक्षण उपागम पर आधारित होती है।
- एक उपागम शिक्षण विधियों को जन्म देता है।
- कुछ सीखने का तरीका जो सीखने वालों की मदद करने के लिए कक्षा की गतिविधियों, तकनीको का उपभोग करता है, वह उपागम की श्रेणी में आता है।
किसी भी भाषा शिक्षण उपागम को समझाना एक सैद्धांतिक दृष्टिकोण है की भाषा क्या है? और इसे कैसे सीखा जा सकता है? जैसे किसी भी पाठ को पढ़ने के लिए एक पाठ योजना बनाते हैं, और इस पाठ योजना में हम बच्चों को पाठ समझाने के दृष्टिकोण से अनेक शिक्षण विधियों का प्रयोग करते हैं, तो यहां पाठ योजना एक उपागम है, एवं जिन तरीकों से हम शिक्षण करवाते हैं। वह शिक्षण विधियां हैं। भाषिक तत्वों, ध्वनि शब्द और वाक्य के क्रियात्मक व प्रयोगात्मक शिक्षण के दो प्रमुख उपागम है।
1. पाठ संसर्ग उपागम
2. रचना शिक्षण उपागम
(1) पाठ संसर्ग उपागम
इसका तात्पर्य है कि पाठ्य पुस्तक के पाठ को पढ़ाते समय यथासंभव भाषा के तत्वों की शिक्षा प्रदान करना।
पाठ में प्रयुक्त शब्दों का वाक्यों के आधार पर उच्चारण शब्दार्थ, शब्द रचना और वाक्य संरचना से संबंधित दक्षताओं को विकसित करना। इसमें भाषिक तत्वों के ज्ञान व प्रयोग की क्रियात्मक प्रासंगिक व जीवंत शिक्षा प्रदान की जाती है।
छात्र सिद्धांतों व नियमों के चक्कर से परे प्रत्यक्ष उदाहरण द्वारा प्रयोग व व्यवहार की दक्षता विकसित करते हैं। इससे उनमें भाषा दक्षता प्राप्त करने की रुचि बनी रहती है।
- पाठ संसर्ग उपागम में पाठ पढ़ाते समय सस्वर वाचन के माध्यम से उच्चारण शिक्षण का अच्छा अवसर मिलता है। लेकिन वर्तनी शिक्षण का अवसर कम मिलता है।
- यह उपागम शब्द शिक्षण की दृष्टि से विशेष उपयोगी है, क्योंकि पाठ पढ़ाते समय स्वाभाविक रूप से शब्द शिक्षण के अनेक अवसर मिलते हैं।
- शब्दों के अर्थ बोध रचना व विशिष्ट शब्दों का ज्ञान कराया जाता है।
- निबंधात्मक पाठों के शिक्षण में वाक्य शिक्षण के भी यथेष्ट अवसर मिलते हैं।
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(2) रचना शिक्षण उपागम
इसमें भाषिक तत्वों के ज्ञान व प्रयोग का प्रचुर अवसर मिलता है। रचना शिक्षण वस्तुतः अर्जित ज्ञान के प्रयोगात्मक अभ्यास का उपागम है।
रचना के दो रूप होते हैं।
1 मौखिक
2 लिखित
मौखिक रचना में उच्चारण शिक्षण का अधिक अवसर मिलता है। वाले खेत रचना में वर्तनी शिक्षण का।
♦ मौखिक रचना के रूप में – वार्तालाप, वर्णन, भाषण, संवाद, वाद विवाद, समाचार दर्शन, कविता, सुपाठ, विचार गोष्ठी आदि।
♦ लिखित रचना के रूप में – व्याख्या सार, संक्षिप्तीकरण पत्र लेखन. निबंध, कहानी आदि।
»»Hindi pedagogy Notes (भाषा कौशल)
चोमस्की के अनुसार – ” बच्चे भाषा सीखने की जन्मजात क्षमता के साथ उत्पन्न होते हैं।”
वाइगोत्सकी के अनुसार – ” बच्चों के भाषाई विकास में समाज की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।”
स्किनर के अनुसार – “बच्चे अनुकरण द्वारा भाषा सीखते हैं।”
जीन पियाजे के अनुसार – ” भाषा अधिगम मूलतः संज्ञानात्मक विकास का ही एक अंग है।”
भाषा शिक्षण के प्रमुख उद्देश्य
1. ज्ञानात्मक उद्देश्य – भाषा ज्ञान की कथा राशि तक पहुंचाने का महत्वपूर्ण साधन है।
2. कौशलात्मक उद्देश्य – भाषा के चारों कौशलों का ज्ञान प्राप्त करना।
3. रसात्मक उद्देश्य – साहित्य को संचित ज्ञान भारत का स्त्रोत कहा गया है। अतः विभिन्न साहित्य विधाओं के रसास्वादन के लिए भाषा शिक्षण आवश्यक है।
4. सृजनात्मकता के प्रकटीकरण का उद्देश्य – भाषा शिक्षण द्वारा लेखन की मौलिकता का विकास होता है। विचारों को प्रभावपूर्ण तरीके से व्यक्त करने की क्षमता विकसित होती है।
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