मध्य प्रदेश के प्रमुख लोकगीत (Madhya Pradesh ke lok geet)
इस पोस्ट मे हम मध्य प्रदेश के प्रमुख लोकगीत (Madhya Pradesh ke lok geet) आप के साथ शेयर कर रहे है। मध्य प्रदेश, देश के हृदय रूप में देश के केंद्र में स्थित है। इसकी भूभाग पर कृष्ण ने उज्जैन के सांदीपनि आश्रम में शिक्षा पाई, तो कालिदास ने यही अनेक कालजयी रचनाओं को रचा। मध्य प्रदेश अपने आंचल में एक समृद्ध संस्कृति को धारण करता है। विभिन्न चित्रकलाएं, भित्ति चित्र, लोक कलाएं, लोकगीत, लोक नृत्य से परिपूर्ण है यह राज्य अपने आप में निराला है।
MP ke pramukh lok geet
(1) निरगुणिया गायन शैली
- क्षेत्र – यह लोकगीत संपूर्ण निर्माण एवं मालवा अंचल में प्रसिद्ध है।
- गायन शैली- एकल एवं समूह शैली
- अवसर – यह लोकगीत किसी भी समय पर साधु एवं भिक्षुको के द्वारा गाया जाता है।
- विषय वस्तु – कबीर, मीरा, रैदस,दादू आदि संतों के भक्ति पदों का गायन।
(2) कलगी तुर्रा
- क्षेत्र – संपूर्ण निमाड़ अंचल में
- गायन शैली – कलगी तुर्रा की प्रतिस्पर्धात्मक लोक गायन शैली है।
- अवसर- यह शक्ति एवं शिव की आराधना में रात के समय गाए जाने वाले लोकगीत है।
- विषय वस्तु – आंसू कविता के साथ-साथ महाभारत की कथाओं, पौराणिक आख्यान ओं से लेकर वर्तमान प्रसंगों का गायन।
(3) संत सिंगाजी भजन
- क्षेत्र- समूची निर्माण एवं माला के कुछ हिस्सों
- अवसर- किसी भी अवसर पर
- विषय वस्तु- खेती एवं गृहस्ती संबंधी प्रतीकों के साथ आध्यात्मिक भजन गायन।
- गायन शैली- उच्च स्वर में एकल एवं समूह गायन शैली
(4) फाग गायन
- क्षेत्र- निमाड़, बुंदेलखंड एवं बघेलखंड में
- अवसर- होली के अवसर पर
- गायन शैली- ऊंचे स्वर में सामूहिक गायन शैली
- विषय वस्तु – राधा और कृष्ण की लीलाओं से संबंधित
(5) गरबा गीत
- क्षेत्र- निमाड़ अंचल में स्त्री परक लोक गायन
- अवसर- नवरात्रि में
- विषय वस्तु – देवी के भक्ति गीत
- गायन शैली- नृत्य सहित द्रुत सामूहिक गायन शैली
(6) गरबी गीत
- क्षेत्र- निमाड़ अंचल में पुरुष परक लोक गायन
- अवसर- नवरात्रि के अवसर पर
- विषय वस्तु- गरबी की विषय वस्तु भक्ति, श्रृंगार और हास्य परक से परख होती है।
(7) नागपंथी गायन
- क्षेत्र- निमाड़ अंचल में पुरुषों द्वारा गायन
- अवसर – अधिकतर पर्व त्योहार के अवसर पर
- विषय वस्तु- मूलतः कृष्ण की रास लीलाओं से संबंधित
- गायन शैली – मृदंग एवं ढोल पर एकल एवं सामूहिक गायन शैली
(8) संजा गीत
- क्षेत्र – मालवा अंचल में
- अवसर – पित्र पक्ष में शाम के समय
- गायन शैली – वाद्य रहित सामूहिक गायन शैली
- विषय वस्तु – गोबर एवं फूल पत्तियों से दीवार पर संजा बनाकर उससे संबंधित बाल्यावस्था की कोमल भावनाओं के गीत
(9) हीड गायन
- क्षेत्र – मालवा अंचल में
- अफसर- श्रावण के महीने में
- विषय वस्तु – ग्यारस माता की कथा तथा कृषि संस्कृति का सूक्ष्म वर्णन
- गायन शैली – प्रतिस्पर्धात्मक लाभ शैली
(10) बरसाती बारता
- क्षेत्र- मालवा अंचल
- अवसर – बरसात के समय रात में
- विषय वस्तु – ऋतु कथा गीत एवं बारहमासा गीत गाए जाते हैं।
- गायन शैली – चंपू काव्य की सामूहिक गायन शैली
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(11) लावनी
- क्षेत्र – मालवा एवं निमाड़ अंचल में
- अवसर – प्रायः सुबह
- विषय वस्तु – निर्गुणी दार्शनिक गीत
- गायन शैली – सामूहिक द्रुत गायन शैली
(12) आल्हा गायन
- क्षेत्र – बुंदेलखंड में मुख्य रूप से
- अवसर – प्रायः वर्षा ऋतु में रात के समय
- विषय वस्तु – महोबा के आल्हा एवं उदल की वीर गाथा
- गायन शैली – एकल एवं सामूहिक गायन शैली उच्च स्वर सहित
(13) भोला या लमटेरा गीत
- क्षेत्र- बुंदेलखंड में
- अवसर – शिवरात्रि, बसंत पंचमी एवं मकर सक्रांति के समय
- विषय वस्तु – शिव एवं शक्ति की भक्ति से संबंधित भजन गीत
- गायन शैली – विना वाद्य यंत्र के स्त्री-पुरुष में प्रश्नोत्तर शैली में
(14 ) बेरायता गायन
- क्षेत्र- बुंदेलखंड में
- अवसर – धार्मिक त्योहारों के अवसर पर रात के समय गाया जाता है।
- विषय वस्तु – महाभारत की कथाएं, लोक नायकों की कथा तथा ऐतिहासिक चरित्र का गायन।
- गायन शैली – संवाद युक्त कथा गायन शैली
(15) देवासी गायक
- क्षेत्र- बुंदेलखंड
- अवसर – दीपावली के अवसर पर अहीर, गवली ग्वालो द्वारा
- विषय वस्तु – कृष्ण राधा प्रेम प्रसंग, वीर रस युक्त दोहे
- गायन शैली – द्रुत नृत्य सहित दोहा गायन शैली
(16) जगदेव का पुरावा
- क्षेत्र- बुंदेलखंड में
- अवसर – चैत्र और क्वार महीने में
- विषय वस्तु – देवी की स्तुति से संबंधित भजन
- गायन शैली – सामूहिक भजन शैली
(17) बसदेवा गायन
- क्षेत्र- बुंदेलखंड में
- अवसर – हरबोले जाति द्वारा अपने यजमान के समक्ष दिन में गाया जाता है।
- विषय वस्तु – श्रवण कुमार की कथा, रामायण कथा, कर्ण कथा आदि
- गायन शैली – सामूहिक गाथा गायन शैली
(18) बिरहा गायक
- क्षेत्र- बुंदेलखंड में
- अवसर – किसी भी समय, सुनसान राहों में गोंड एवं बेगा आदिवासी विवाह एवं दीपावली के अवसर पर।
- विषय वस्तु – श्रृंगार परक विरह गीत
- गायन शैली – ऊंची टेर सहित सवाल-जवाब गायन शैली
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(19) विदेशिया गायन
- क्षेत्र- बुंदेलखंड में
- अवसर- रात के समय प्रायः जंगल एवं सुनसान जगहों पर
- विषय वस्तु – लोकनायक एवं नायिका के विछोह एवं मिलन की अभिलाषा के गीत
- गायन शैली – लंबे राग सहित गंभीर एकल तथा सामूहिक गायन शैली
(20) ढोला मारू गीत\ लोकनाट्य
- क्षेत्र – मालवा, निमाड़ तथा बुंदेलखंड में
- अवसर – ढोला मारू गीत का गायन रात के समय ढोला-मारू नाटक के साथ साथ किया जाता है।
- विषय वस्तु – ढोला एवं मारू की प्रेम कथा का गायन किया जाता है
- गायन शैली – उच्च स्वर सहित लोक गायन शैली
(21) पंडवानी गीत\ लोकनाट्य
- क्षेत्र- शहडोल, अनूपपुर एवं बालाघाट
- अवसर – अधिकतर शाम के समय आयोजित किया जाता है।
- विषय वस्तु – पांडवों की कथा का वर्णन किया जाता है।
- गायन शैली – उच्च स्वर सहित कि कल कथा गायन शैली
(22) बांस गीत
- क्षेत्र – छत्तीसगढ़ से जुड़े जिलों में
- अवसर – रात के समय
- विषय वस्तु – मोरध्वज एवं करने की कथाएं
- गायन शैली – उच्च स्वर में कथा गायन शैली
(23) लोरिक चंदा गीत
- क्षेत्र- उत्तर भारत
- अवसर – शाम के समय
- विषय वस्तु – लोरिक चंदा की प्रेम कथा
- गायन शैली – उच्च स्वर सहित गाथात्मक गायन शैली
(24) घोटूल पाटा गीत
- क्षेत्र – मुड़िया आदिवासी क्षेत्रों में
- अवसर – मृत्यु के अवसर पर
- विषय वस्तु – राजा जो लोग साय की कथा के साथ प्रकृति के जटिल रहस्यों का वर्णन
- गायन शैली – बुजुर्गों द्वारा सामूहिक कथा गायन शैली
(25) ददरिया गीत\ लोक नृत्य`
- क्षेत्र – बैगा आदिवासी क्षेत्रों में
- अवसर – किसी भी अवसर पर
- विषय वस्तु – लोक जीवन एवं साहित्य की प्रेम कथाओं का गायन
- गायन शैली – सामूहिक सवाल-जवाब गायन शैल
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