Micro Teaching Notes For CTET, DSSSB, KVS, NVS

Micro Teaching Notes For CTET, DSSSB, KVS

प्रतिपादक-  डी.एलन

    • सूक्ष्म शिक्षण में  अध्यापकों की ऐसी प्रविधि है जिसके माध्यम से अध्यापकों में उचित कौशल का विकास किया जाता है। जिससे अध्यापक बच्चों के समक्ष पाठ्य वस्तु को सरस एवं प्रभावी ढंग से प्रस्तुत कर सकें।
    • यह विधि छात्रों को पढ़ाने की ना होकर स्वयं शिक्षकों को पढ़ाने की विधि मानी जाती है। 
    • इस विधि के अंतर्गत 5 से 10 मिनट की पाठ योजना बनाकर अपने सहपाठियों के समक्ष प्रस्तुत करना होता है। 
    • इस विधि का प्रतिपादन सन 1963 में अमेरिका के स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में  डी.एलन ने किया था।
    •  यह विधि बी.एफ स्किनर का क्रिया प्रसूत सिद्धांत पर आधारित है। 
    • भारत में सूक्ष्म शिक्षण का सर्वप्रथम प्रयोग डी.डी  तिवारी ने1967 ई मे इलाहाबाद में किया था। 

 परिभाषाएं

 डी.एलन  के अनुसार – “सूक्ष्म में शिक्षण विधि में शिक्षण कक्षा के आकार, पाठ की विषय वस्तु समय तथा शिक्षण की जटिलताओं को कम कर संक्षिप्तीकृत कक्षा शिक्षण विधि है।”

रॉबर्ट ब्रुश के अनुसार – “सूक्ष्म में शिक्षण अध्यापन शिक्षण की एक तकनीक है।  जो शिक्षक को भलीभांति शिक्षण कौशल अदाओं को 5 से 10 मिनट की सुमेलित पाठ योजनाओं को व्यवहार में लाने का अवसर प्रदान करती है।”

B.M शोर के अनुसार“सूक्ष्म शिक्षण कम समय, कम विद्यार्थियों एवं कम शिक्षण प्रक्रिया वाली विधि है।  इसमें शिक्षण इकाई 5-10 मिनट की तथा छात्र संख्या 6-10 सीमित होती है।”

सूक्ष्म शिक्षण के उद्देश्य

    •  शिक्षार्थियों में नए कौशल का विकास करना।
    •  एक टीचर प्रशिक्षु को शिक्षण में  विश्वास करने योग्य बनाना।
    •  एक टीचर प्रशिक्षु को कई शिक्षण कौशल में योग्य बनाना।
    •  टीचर  प्रशिक्षु को  सीखने और नए शिक्षण कौशल को नियंत्रित परिस्थितियों में आत्मसात करने योग्य बनाना। 

सूक्ष्म शिक्षण के सोपान

  •  नियोजन
  •  शिक्षण
  •  प्रतिपुष्टि
  •  पुनः नियोजन
  •  पुनः प्रतिपुष्टि 

सूक्ष्म शिक्षण समय आवंटन

  •  इस विधि में किसी एक कौशल का अभ्यास करने के लिए 36 मिनट का समय निर्धारित किया गया है।
  • एक कौशल को प्रस्तुत करने के लिए 5-10  मिनट का समय आवंटित किया जाता है। 
  • छात्र संख्या
  •  इसमें वास्तविक छात्र नहीं होते हैं बल्कि साथी परीक्षार्थियों में आगे की पंक्ति में बैठे5-10  साथी छात्र अध्यापकों को ही छात्र मान लिया जाता है। 

  पर्यवेक्षक – 1-2  पर्यवेक्षक का कार्य भी साथी  छात्र अध्यापकों द्वारा ही किया जाता है। 

सूक्ष्म शिक्षण के सिद्धांत 

 यह विधि निम्न तीन सिद्धांत पर कार्य करती है। 

1. अभ्यास का सिद्धांत

2.  निरंतरता का सिद्धांत

3.  प्रबलन का मूल्यांकन का सिद्धांत 

 सूक्ष्म शिक्षण की अवस्था

(1)  ज्ञानार्जन अवस्था –  पाठ्य पुस्तकों को पढ़कर विभिन्न कौशलों का ज्ञान प्राप्त करना।

(2)  कौशलार्जन अवस्था – अपने साथियों के समक्ष खड़े होकर कौशल का ज्ञान प्राप्त करना।

(3)  अंतरण अवस्था –  वास्तविक शिक्षक बनकर वास्तविक छात्र समूह के समक्ष विभिन्न शिक्षण कौशलों का प्रयोग करना अंतरण अवस्था मानी जाती है। 

सूक्ष्म शिक्षण की आवश्यकता एवं महत्व

    •   छात्र अध्यापकों को वास्तविक शिक्षण हेतु तैयार करना।
    •  शिक्षण का सरलीकरण
    •  सीमित समय व संसाधनों में शिक्षण कार्य अनुभव

इस पोस्ट में हमने सूक्ष्म शिक्षण (Micro Teaching Notes For CTET, DSSSB, KVS, NVS) से संबंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारी आप सभी के साथ शेयर की, ऐसी अन्य महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए आप हमारे फेसबुक पेज को अवश्य लाइक करें धन्यवाद!!!!

Related articles :

Leave a Comment