Yashpal Committee Report 1992-93
इस पोस्ट में हम आपके साथ प्रोफेसर यशपाल समिति 1992-93 (Yashpal Committee Report Important Questions) से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी साझा कर रहे हैं। साथ ही परीक्षा में इससे संबंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर भी आपके साथ साझा कर रहे हैं।
प्रोफ़ेसर यशपाल कमेटी का गठन सन 1992 में हुआ था। इस कमेटी के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर यशपाल थे। तो आइए जानते हैं प्रोफेसर यशपाल कमेटी 1992 से संबंधित अति महत्वपूर्ण बिंदु जो इस प्रकार है।
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प्रोफेसर यशपाल कमीटी 1992-93
एक परिचय- भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने वर्ष 1992 में एक राष्ट्रीय सलाहकार समिति बनाई। इस समिति में देश के 8 शिक्षाविदों को शामिल किया गया। जिसके अध्यक्ष जाने-माने वैज्ञानिक व शिक्षाविद प्रोफेसर यशपाल को बनाया गया।
प्रोफेसर यशपाल समिति का उद्देश्य (aims and objectives of yashpal committee)
- शिक्षा के सभी स्तरों पर विद्यार्थियों विशेषकर छोटी कक्षा के विद्यार्थियों, पर पढ़ाई के दौरान पड़ने वाले बोझ को कम किया जाए? साथ ही शिक्षा की गुणवत्ता में कैसे सुधार लाया जाए?
- प्राप्त मत, विचार, सुझाव आदि के आधार पर समिति ने 15 जुलाई 1993 में सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी। समिति ने लिखा कि “बच्चों के लिए स्कूली बस्ते के बोझ से ज्यादा बुरा है, ना समझ पाने का बोझ। ”
अन्य बिंदु- बाद में वर्ष 2005 में प्रोफ़ेसर यशपाल की अध्यक्षता में ही ” राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा” बनाने हेतु एक राष्ट्रीय संचालन समिति का गठन हुआ।
{ नोट- वर्ष 1994 में “चकमक” के सितंबर अंक में ” पढ़ाई का बोझ” शीर्षक से एक लेख प्रकाशित हुआ। इस लेख में ” यशपाल समिति” की सिफारिशों का सार दिया गया था। }
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यशपाल समिति रिपोर्ट का टाइटल\ टैग लाइन
” शिक्षा बिना बोझ के” (Learning Without Burden)
समिति ने कहा कि ”भारी बस्ता सिर्फ एक बोझ है।”
यशपाल समिति के मुख्य सुझाव एवं रिपोर्ट:
1. पब्लिक स्कूलों की प्राथमिक कक्षाओं में बच्चों के स्कूल बस्ते का औसतन भार 4 किलोग्राम के लगभग हो।
2. प्राथमिक स्तर पर विज्ञान की पुस्तके ना हो।
3. भाषा को जीवन से जोड़कर पढ़ाना।
4. गणित को रटने के बजाय समझाना।
5. कक्षा छठवीं से कक्षा आठवीं तक स्वतंत्रता बात का इतिहास पढ़ाया जाए।
6. बच्चों को रोज की दिनचर्या में अपनी सहज क्षमताओं को दिखाने का अवसर नहीं मिलता है। उन्हें खेलने, साधारण आनंद लेने, सोचने समझने और विश्व को जानने का समय नहीं मिलता है।
7. पाठ्यक्रम को पूरा कराना ही अपने आप में लक्ष्य बन गया है। इसका शिक्षा के दार्शनिक व सामाजिक लक्ष्यों से कोई सरोकार नहीं रहा है।
8. अत्याधिक बड़ी कक्षाओं, भारी पाठ्यक्रम, कठिन पुस्तकों आदि के कारण बच्चों के समग्र व्यक्तित्व का विकास नहीं हो पाता है।
9. स्कूली ज्ञान में जीवंतता नहीं होती, तथा वह उत्तरोत्तर,नीरज, बोझिल व अप्रासंगिक बनता जाता है।
10. पाठ्यक्रम पुस्तकों में किसी वस्तु का अवलोकन कराने के स्थान पर उस वस्तु के चित्र का अवलोकन कराने को कहा जाता है। अनुभव के स्थान पर चित्रों का प्रयोग करना पाठ्य देखन में 1 दिन चिंता बनकर उभरेगी।
11 स्कूलों की अत्यंत खराब हालत, शिक्षकों की अनुपस्थिति पाठ्यक्रम का बोझ शहर से ग्रामीण भारत तक फैला है।
12 स्कूल जाने वाले अधिकतर बच्चों के लिए स्कूली शिक्षा नीरस,बोझिल,अरुचिकर,कटु अनुभव प्रदान करने वाली प्रतीत होती है।
विशेष:
- प्राथमिक स्तर पर छात्र शिक्षक अनुपात 1: 40 से घटाकर 1:30 इसी समिति की रिपोर्ट पर हुआ।
- राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (NCF) तैयार करने हेतु 38 सदस्य समिति के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर यशपाल ही थे।
- यशपाल समिति का अन्य नाम “राष्ट्रीय सलाहकार समिति” था।
- ‘ ज्ञान विस्फोट’ की अवधारणा यशपाल समिति से ही समृद्ध है।
यशपाल समिति रिपोर्ट 1992-93 से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर (yashpal committee report important questions in hindi)
प्रश्न1 यशपाल समिति रिपोर्ट का टाइटल क्या था?
उत्तर– शिक्षा बिना बोझ के
प्रश्न2 यशपाल समिति किस वर्ष बनी थी?
उत्तर- 1992
प्रश्न3 यशपाल समिति ने ‘ मानव संसाधन विकास मंत्रालय’ को अपनी रिपोर्ट कब सौंपी थी?
उत्तर- 15 जुलाई 1993 में
प्रश्न4 यशपाल कमिटी रिपोर्ट के अनुसार कहा गया है?
उत्तर- भारी बस्ता सिर्फ एक बोझ है।
प्रश्न5 प्राथमिक स्तर पर छात्र शिक्षक अनुपात1:40 से कर दिया गया?
उत्तर- 1 : 30
प्रश्न6 राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 तैयार करने के लिए 38 सदस्य समिति के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर- प्रोफेसर यशपाल
प्रश्न7 यशपाल समिति को अन्य किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर- राष्ट्रीय सलाहकार समिति
प्रश्न8 कौन सी समिति ” ज्ञान विस्फोट” की धारणा से जुड़ी है?
उत्तर- यशपाल समिति
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