REET Hindi Notes PDF: – राजस्थान पात्रता परीक्षा (REET) का आयोजन माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, राजस्थान द्वारा किया जाता है। इस साल भर्ती बोर्ड ने REET 2021 के लिए अधिसूचना जारी कर दी है। परीक्षा 25 अप्रैल 2021 को 31000 रिक्तियों के लिए आयोजित की जाएगी।
REET परीक्षा में लेवल 1 एवं लेवल 2 में हिंदी भाषा के अंतर्गत 30 अंकों के प्रश्न पूछे जाने हैं। जिसमें 15 प्रश्न हिंदी शिक्षण विधियों के अंतर्गत पूछे जाएंगे एवं 15 प्रश्न हिंदी व्याकरण से संबंधित होंगे। इस आर्टिकल हम हिन्दी भाषा के नोट्स (REET Hindi Notes PDF)
आपके साथ शेयर कर रहे है। जो की REET level 1 ओर level 2 दोनों के लिए उपयोगी है।
‘मूल्यांकन’ शब्द ‘मूल्य+ अंकन’ के योग से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है। ‘मूल्यों को मापना’ अर्थात पाठ्यक्रम में निर्धारित उद्देश्य और मूल्यों की और छात्रों की प्रवृत्ति एवं प्रकृति का आकलन करना ही मूल्यांकन कहलाता है।
परीक्षा का मूल्यांकन में अंतर
परीक्षा- किसी भी विषय विशेष अथवा समस्त विषयों में अर्जित ज्ञान को अंकों के माध्यम से जांचने की प्रक्रिया ‘ परीक्षा’ कहलाती है। यह केवल छात्रों के ज्ञानात्मक क्षेत्र का परीक्षण करती है।
मूल्यांकन – छात्र के ज्ञानात्मक, भावनात्मक, क्रियात्मक इत्यादि सभी क्षेत्रों का परीक्षण जिस प्रक्रिया से किया जाता है, उसे ही मूल्यांकन कहते हैं।
मूल्यांकन का क्षेत्र परीक्षा से व्यापक होता है। जिस छात्र की स्थिति के कारणों एवं उनको सुधारने के उपायों पर भी विचार किया जाता है।
शिक्षण प्रक्रिया का सतत चक्र
शिक्षण प्रक्रिया निरंतर चलने वाली प्रक्रिया मानी जाती है। डॉक्टर बैजामिन एम. ब्लूम ने संपूर्ण शिक्षा के लिए निर्धारित मूल्यांकन प्रक्रिया को त्रिभुजी या त्रिकोण रूप में प्रस्तुत किया है। इसमें निम्नलिखित तीन बातों को शामिल किया जाता है।
(1) शैक्षणिक उद्देश्य
(2) अधिगम अनुभव\ शिक्षण प्रक्रिया
(3) मूल्यांकन ( व्यवहार गत परिवर्तन)
मूल्यांकन शिक्षण आयाम के प्रतिपादक:- “डॉ. बैजामिन एम. ब्लूम”
मूल्यांकन के उद्देश्य – मनोवैज्ञानिकों के अनुसार एक श्रेष्ठ मूल्यांकन के प्रमुख तथा निम्न तीन उद्देश्य माने गए हैं।
गुणवत्ता पर नियंत्रण
उच्च कक्षा में प्रवेश
अन्य क्षेत्रों के चयन में सहायता
मूल्यांकन की परिभाषाएं
(1) C.E. बीबी के अनुसार (1977) – “मूल्यांकन उस साक्ष्य का क्रमबद्ध संग्रह और उसका परिणाम निकालना है जो कि मूल्यों की जांच की प्रक्रिया के द्वारा कुछ करने के लिए प्रेरित करता है।”
(2) राधाकृष्ण आयोग के अनुसार (1949) – “यदि हम विश्व विद्यालयी शिक्षा में कोई एक सुझाव दें तो वह केवल परीक्षाओं के सुधार के संबंध में ही हो सकता है।”
(3) B.M.ब्लूम के अनुसार- ” मूल्यांकन योग्यता नियंत्रण की व्यवस्था है, जिसमें शिक्षण एवं अधिगम प्रक्रिया को प्रभावशीलता की जांच की जाती है।”
(4) राइस स्टोन के अनुसार – “मूल्यांकनवह नवीन प्राविधिक पद है जो मापन के व्यापक प्रत्यय को प्रस्तुत करता है।”
(5) कोठारी आयोग के अनुसार- ” मूल्यांकन एक सतत प्रक्रिया है, जो शिक्षा का अभिन्न अंग है एवं उसका शिक्षण उद्देश्यों के साथ घनिष्ठ संबंध है।”
(6) M.N.डाडेकर के अनुसार – “मूल्यांकन की परिभाषा एक व्यवस्थित रूप में की जा सकती है, जो इस बात को निश्चित करती है, कि विद्यार्थी किस सीमा तक उद्देश्य प्राप्त करने में सफल रहा है।”
(7) क्विलिन एवं हन्ना के अनुसार – “छात्रों के व्यवहार में विद्यालय द्वारा लाए गए परिवर्तनों के विषय में प्रमाणों के संकलन और उसकी व्याख्या करने की प्रक्रिया ही मूल्यांकन है।”
(8) ब्रेडफील्ड एवं मोरडेक के अनुसार – “मूल्यांकन किसी सामाजिक, सांस्कृतिक तथा वैज्ञानिक मानदंड के संदर्भ में किसी घटना को प्रतीकआवंटित करना है, जिससे उस घटना का महत्व अथवा मूल्य ज्ञात किया जा सके।”
(9) रेमर्स एवं गेज के अनुसार – ” मूल्यांकन में व्यक्ति अथवा समाज दोनों की सृष्टि से जो उत्तम एवं वांछनीय होता है, उसी का प्रयोग किया जाता है।”
(10) मोफात के अनुसार – ” मूल्यांकन निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है, जो विद्यार्थियों के औपचारिक,शैक्षणिक उपलब्धियों की उपेक्षा करती है।”
(1) वैधता – ‘वैधता’ का शाब्दिक अर्थ होता है। ‘अभिप्राय सापेक्षता’ अर्थात जिस मूल्यांकन द्वारा अभीष्ट लक्ष्य या उद्देश्य का मापन होता है, वह वैध मूल्यांकन कहलाता है।
(2) विश्वसनीयता – ‘ विश्वसनीयता’ का शाब्दिक अर्थ होता है। ‘ विचलन’ या ‘अचलता’ अर्थात जिस मूल्यांकन में बालकों द्वारा प्राप्त किए जाने वाले अंक सदैव एक जैसे होते हैं। तथा पुनः मूल्यांकन के पश्चात भी अंक समान रहते हैं, तो विश्वसनीयता मूल्यांकन कहलाता है।
(3) वस्तुनिष्ठता – जिस परीक्षण में परीक्षा लेने वाले व्यक्तित्व, उसकी रुचियो, भावनाओं तथा पक्षपातों के लिए कोई स्थान नहीं होता है, निष्पक्ष भाव से छात्रों का मूल्यांकन होता है।वस्तुनिष्ठता मूल्यांकन कहलाता है।
(4) विभेदकारिता – जिस मूल्यांकन में उच्च एवं निम्न योग्यता वाले छात्रों में भेद करने का सामर्थ्य होता है, वह वह विभेदकारी मूल्यांकन कहलाता है।
(5) व्यापतकता – जिस मूल्यांकन में संपूर्ण पाठ्यक्रम की विषय वस्तु का समावेश होता है। वह व्यापक मूल्यांकन माना जाता है।
(6) व्यवहारिक एवं उपयोगिता – एक अच्छा मूल्यांकन सदैव बालक को के लिए उपयोगी होता है।एवं परिस्थितियों के अनुसार उसमें परिवर्तन भी किया जा सकता है।
(7) क्रमबद्धता – मूल्यांकन विषय वस्तु की क्रम बद्ध ता के अनुसार लिया जाना चाहिए। 8 मितव्ययता – मूल्यांकन में अधिक धन एवं समय खर्च नहीं किया जाना चाहिए।