सामाजिक अध्ययन की विषय वस्तु एवं उद्देश्य
(Samajik Adhyan ki Vishay Vastu evam uddeshy)
इस पोस्ट में हम Social Science Pedagogy के अंतर्गत सामाजिक अध्ययन की विषय वस्तु एवं इसका उद्देश्य (Samajik Adhyan ki Vishay Vastu evam uddeshy) से संबंधित जानकारी आप सभी के साथ साझा कर रहे हैं। आशा है यह आपके लिए उपयोगी साबित होगी।
सामाजिक अध्ययन की उत्पत्ति
वैदिक काल मे केवल ईश्वर और प्रकृति के बारे में अध्ययन किया जाता था। इसलिए सबसे पहले प्रकृति विज्ञानों का जन्म हुआ।
- यूनानी दार्शनिक सुकरात ने ई.पू. 5वी सदी मे पहली बार कहा था कि मनुष्य को मनुष्य का अध्ययन करना चाहिए।
- ई.पू. 5वी – 4वी सदी मे सुकरात कि शिष्य प्लेटो ने अपनी पुस्तक रिपब्लिक में लिखा था, कि मनुष्य प्रकृति और ईश्वर एक दूसरे से इस प्रकार बंधे हुए हैं कि उन्हें अलग नहीं किया जा सकता है। इन्होंने ही सबसे पहले आत्मा की अवधारणा दी।
- प्लेटो उनके शिष्य अरस्तु ने ई.पू.चौथी सदी मे आत्मा का अध्ययन शुरू किया। इन्हीं के इस अध्ययन के बाद विभिन्न सामाजिक विज्ञानों का जन्म हुआ। अरस्तू ने ही पहली बार कहा था। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, और समाज में रहना पसंद करता है।
- अरस्तु के काल से लेकर 19 वी सदी के बीच तक कई प्रकार के सामाजिक विज्ञानों का जन्म हुआ। परंतु इन्हें केवल वयस्क लोगों को पढ़ाया जाता था। पहली बार 19 वी सदी में ब्रिटेन से एक विचारधारा आई। जिसमें भूगोल, इतिहास, नागरिक शास्त्र एवं अर्थशास्त्र को सम्मिलित करते हुए सामाजिक अध्ययन नाम दिया गया और विभिन्न देशों में इसके अध्ययन को लेकर परामर्श किया गया।
- पहली बार 1892 ईस्वी में अमेरिका ने इनकी विषय वस्तु को विद्यालयों में पढ़ाना शुरू किया।
- 1911 ईस्वी में ब्रिटेन की कमेटी की सिफारिश के आधार मे सामाजिक अध्ययन में समाजशास्त्र की विषय वस्तु भी सम्मिलित की गई।
- इतिहास व समाजशास्त्र के साथ दर्शन से संबंधित विषय वस्तु का भी सामाजिक अध्ययन में भी आगमन हुआ। इस प्रकार से वर्तमान समय में सामाजिक अध्ययन में 6 मूल विषय है।
- भारत देश में सामाजिक अध्ययन की विषय वस्तु 1916 में अंग्रेजों के जमाने में लाई गई। जिस के विकास का प्रयास 1921 में किया गया, और सबसे सफल प्रयास 1934 में ‘Social Studies commission’ के माध्यम से हुआ।
- स्वतंत्रता के बाद 1952-53 में मुदालियर आयोग\ लक्ष्मण स्वामी आयोग\ माध्यमिक शिक्षा आयोग ने अपनी सिफारिशें दी जिसके आधार पर 1955 ईस्वी में भारत के विद्यालयों में इस को अनिवार्य रूप से पढ़ाया जाने लगा।
(1) भूगोल (Geography)
उच्च प्राथमिक स्तर तक की विषय वस्तु में मानव भौतिक भूगोल की विषय वस्तु सम्मिलित की जाती है। जिसमें पाषाण युगीन आदिमानव की उस जीवन का वर्णन किया जाता है। जिसमें वह केवल भोजन की तलाश में भटकता रहता था, और उसका निवास गुफाएं, कंदराओ या नदी, नालों के किनारे होता था। उसके जीवन की विशेषताओं को आधुनिक समय से तुलना करते हुए पढ़ाया जाता है। तथा भौतिक भूगोल की विषय वस्तु में महाद्वीप, महासागर, पहाड़, नदियां, झरने एवं मरुस्थल जैसी संरचनाओं के साथ ही प्राकृतिक घटनाएं जिनमें रात दिन का बनना, ऋतुओ का बनना, जलवायु चंद्रमा सूर्य ग्रहण, ज्वार भाटा आदि की जानकारियां सम्मिलित करते हैं।
भूगोल की विषय वस्तु का उद्देश्य
1. बालक को भौतिक पर्यावरण की समझ प्रदान करना।
2 . बालक को पर्यावरण सुरक्षा के लिए तैयार करना।
3. प्राकृतिक घटनाओं के महत्व को समझाना।
4. राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय सीमाओं का ज्ञान करवाना।
(2) इतिहास (History)
इतिहास के विषय वस्तु में सभ्यताओं के काल से लेकर आधुनिक काल के बीच के विभिन्न कालों जैसे कि वैदिक काल, मौर्य काल, गुप्त काल, राजपूत काल, मुगल काल एवं आधुनिक काल से जुड़ी हुई उन सभी प्रमुख घटनाओं को सम्मिलित किया जाता है। जो आदर्श घटनाएं थी। साथ ही महान शासकों का जीवन व महापुरुषों का योगदान जैसी विषय वस्तु का समावेश है। हमारी परंपराएं और संस्कृति से संबंधित जानकारियां भी इस की विषय वस्तु में समाहित है।
इतिहास की विषय वस्तु का उद्देश्य
1. विकास किया और कैसे हुआ की अवधारणा को समझाना।
2. इतिहास अपने आप में दोहराता है, और परिवर्तन प्रकृति का नियम है। इस विचार को स्पष्ट करना।
3. हमारी परंपराएं एवं संस्कृति धरोहर से संबंधित संरक्षण विचारों को पैदा करना।
4. इतिहास काल की घटनाओं से सीख लेते हुए दोबारा ऐसी गलती ना हो पाए के विचार पैदा करना।
(3) नागरिक शास्त्र (Civics)
उच्च प्राथमिक स्तर तक की विषय वस्तु में नागरिक शास्त्र के नाम से राजनीति विज्ञान एवं लोक प्रशासन से संबंधित सामान्य विषय वस्तु सम्मिलित की जाती है। जिसमें संविधान की सामान्य जानकारियां, संविधान के अनुसार हमारे अधिकार और कर्तव्य, राष्ट्रीय प्रतीक एवं राष्ट्रीय चिन्हों की जानकारियां। इसके अलावा राज्य व जिला प्रशासन से संबंधित जानकारियां समाहित होती है।
नागरिक शास्त्र की विषय वस्तु के उद्देश्य
1. नागरिक शास्त्र की विषय वस्तु बालक को सुनागरिक के रूप में स्थापित करती है।
2. एक व्यक्ति को देशकाल परिस्थितियों के अनुसार उसके अधिकार और कर्तव्यों का ज्ञान करवाती है।
3. एक बालक को राष्ट्रीय सिखाने के साथ ही राष्ट्र व राज्यों के संबंधों की जानकारी देती है।
4. व्यक्ति को अनुशासित व नियंत्रित बनाती है।
(Samajik Adhyan ki Vishay Vastu evam uddeshy)
(4) अर्थशास्त्र (Economics)
अर्थशास्त्र उच्च प्राथमिक स्तर तक अर्थशास्त्र की विषय वस्तु में विभिन्न प्रकार की आय के संसाधन एवं उसके स्त्रोत जैसे- कृषि, पशु पालन, बागवानी, व्यवसाय, सेवा कार्य, उद्योग एवं सामाजिक क्षेत्र के विभिन्न संसाधन तथा धन के नियोजन से संबंधित जानकारियां जैसे- बीमा, बैंकिंग, बचत आदि की विषय वस्तु सम्मिलित होती है। सामान्य जानकारियों के साथ ही बालक को प्रारंभ से ही राष्ट्रीय और व्यक्तिगत आय की जानकारियां देने वाली विषय वस्तु जोड़ी जाती है।
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अर्थशास्त्र की विषय वस्तु के उद्देश्य
1. बालक को आए के संसाधनों का ज्ञान प्रदान करना।
2. बालक को सामाजिक, आर्थिक संपन्नता प्रदान करना।
3. धन के नियोजन को समझाना।
4. बालक को राष्ट्रीय आय की समझ प्रदान करना।
(5) समाजशास्त्र (Sociology)
समाजशास्त्र की विषय वस्तु में परिवार व समाज से संबंधित सामान्य जानकारियों को सम्मिलित किया जाता है। तथा सामाजिक संबंधों की संरचना के आधार पर प्रस्थिति (समाज में कोई पद) तथा भूमिका ( पद के अनुसार कार्य) से संबंधित जानकारियां संबंधित की जाती है। समाज की अवधारणा को स्पष्ट करने के लिए पारिवारिक व सामाजिक संबंधों का उल्लेख किया जाता है।
समाजशास्त्र की विषय वस्तु के उद्देश्य
1 बालक को सामाजिक प्राणी के रूप में स्थापित करना।
2 सामाजिक संरचना का ज्ञान प्रदान करना।
3 सामाजिक संबंधों को मजबूत बनाने के लिए बालक को प्रारंभ से तैयार करना।
4 समाज मे हमारे कर्तव्यों का क्या महत्व है, इसे स्पष्ट करना।
(6) दर्शनशास्त्र (Philosophy)
उच्च प्राथमिक स्तर तक सामान्य दर्शन की जानकारियां होती हैं, जिसमें जैन दर्शन, बौद्ध दर्शन, गांधी दर्शन,सांख्य दर्शन से संबंधित विचार होते हैं।
दर्शनशास्त्र की विषय वस्तु के उद्देश्य- बाला को को धार्मिक कट्टरवादीता से ऊपर उठाकर तर्कशील चिंतनशील बनाना दर्शनशास्त्र की विषय वस्तु का उद्देश्य है।
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