जाने! क्रियात्मक अनुसंधान के सोपान || महत्वपूण बिन्दु व्याख्या सहित

क्रियात्मक अनुसंधान के सोपान (kriyatmak anusandhan ke sopan)

 एंडरसन के अनुसार क्रियात्मक अनुसंधान की प्रणाली में 7 सोपानों का होना अनिवार्य है। क्रियात्मक अनुसंधान के सोपान

(kriyatmak anusandhan ke sopan) इस प्रकार हैं। 

(1)  समस्या का ज्ञान

(2)  कार्य के प्रति प्रस्तावों पर विचार विमर्श

(3)  योजना का चयन व उपकल्पना का निर्माण

(4)  तथ्य- संग्रह करने की विधियों का निर्माण

(5)  योजना का कार्यान्वयन एवं  प्रमाण का संकलन

(6) तथ्यों पर आधारित निष्कर्ष

(7)  दूसरों को परिणामों की सूचना

kriyatmak anusandhan ke sopan

1.  समस्या का ज्ञान 

 क्रियात्मक अनुसंधान का पहला सोपान- विद्यालय में उपस्थित होने वाली समस्या को अच्छी तरह से समझना।  यह तभी संभव हो सकता है।  जब विद्यालय के शिक्षक, प्रधानाचार्य इत्यादि उसके संबंध में अपने विचार व्यक्त करें।  इस तरह करके ही वास्तविक समस्या को समझ कर अपने कार्य को आगे बढ़ा सकते हैं। 

2.  कार्य के लिए प्रस्तावों पर विचार विमर्श

 क्रियात्मक अनुसंधान का दूसरा सोपान है-  समस्या को अच्छी तरह समझने के बाद इस बात पर विचार करना कि उसके कारण क्या है, तथा उसका निराकरण करने के लिए कौन से कार्य किए जा सकते हैं? शिक्षक, प्रधानाचार्य, प्रबंधक इत्यादि इन कार्यों के संबंध में अपने अपने प्रस्ताव या सुझाव देते हैं।  उसके बाद भी अपने विश्वासों, सामाजिक मूल्यों, विद्यालयों के उद्देश्यों इत्यादि को ध्यान में रखकर उन पर विचार विमर्श करते हैं। 

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3. योजना का चयन एवं उपकल्पना का निर्माण

 यह क्रियात्मक अनुसंधान का तीसरा सोपान कहलाता है इसके अनुसार विचार विमर्श के फल स्वरुप समस्या का निराकरण करने के लिए एक योजना का चुनाव तथा उपकल्पना का निर्माण करना। इसके लिए विचार विमर्श करने वाले सब व्यक्ति संयुक्त रूप से उत्तरदाई होते हैं। 

 उक्त कल्पना में तीन बातों का सविस्तार वर्णन किया गया है।

1.  समस्या का निराकरण करने के लिए अपनाई जाने वाली योजना

2.  योजना का परीक्षण

3.  योजना द्वारा प्राप्त किए जाने वाला उद्देश्य 

उदाहरणार्थ, उपकल्पना इस प्रकार की हो सकती है

 यदि प्रत्येक कक्षा में विभिन्न प्रकार की शिक्षण सामग्री का प्रयोग किया जाए, तो बालकों को अधिक और अच्छी शिक्षा दी जा सकती है। 

4. तथ्य संग्रह करने की विधियों का निर्माण

 यह क्रियात्मक अनुसंधान का चौथा सोपान कहलाता है।  योजना को कार्यान्वित करने के बाद तथ्यों या परमाणु का संग्रह करने की विधियां निश्चित करना।  इन विधियों की सहायता से जो तथ्य संग्रह किए जाते हैं, उनमें यह अनुमान लगाया जाता है कि योजना का क्या प्रभाव पड़ रहा है? उदाहरण के लिए विभिन्न प्रकार की शिक्षण सामग्री का प्रयोग किए जाने के समय निम्न चार विधियों का प्रयोग करके यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि पढ़ाई पहले से अधिक तथा हो रही है या नहीं-

  •  शिक्षक द्वारा प्रत्येक घंटे में पढ़ाई जाने वाली विषय सामग्री का लेखा रखा जाना। 
  •  प्रश्नावली का प्रयोग करके छात्रों से उत्तर प्राप्त करना। 
  •  विभिन्न ने छात्रों से साक्षात्कार करना।
  •  विभिन्न कक्षाओं के छात्रों का मत संग्रह करना। 

5.  योजना का कार्यान्वयन व प्रमाण का संकलन

 क्रियात्मक अनुसंधान का पांचवा सोपान कहलाता है।  निश्चित की गई योजना को कार्यान्वित करना तथा उसकी सफलता या असफलता के संबंध में परमाणुओं का संकलन करना।  योजना से संबंधित व्यक्ति चौथे में निश्चित की गई विधियों की सहायता से तथ्यों का संग्रह करते हैं।  वह समय-समय पर एकत्र होकर के विषय में विचार विमर्श करते हैं।  इसके आधार पर भी योजना के स्वरूप में परिवर्तन करते हैं, ताकि उद्देश्य की प्राप्ति संभव हो सके।   उदाहरण के लिए  प्रत्येक कक्षा में प्रयोग की जाने वाली शिक्षण सामग्री को कम, अधिक या परिवर्तित कर सकते हैं। 

6. तथ्यों पर आधारित निष्कर्ष

 यह क्रियात्मक अनुसंधान का छठवां सोपान कहलाता है – योजना की समाप्ति के बाद संग्रह किए हुए तथ्यों या   प्रमाणों से निष्कर्ष निकालना।  उदाहरणार्थ, प्रत्येक कक्षा में विभिन्न प्रकार की शिक्षण सामग्री का प्रयोग करने से बालकों को अधिक तथा अच्छी शिक्षा दी गई या नहीं।  इस तरह निकाले जाने वाले निष्कर्ष उसी विद्यालय के होते हैं, जहां क्रियात्मक अनुसंधान किया जाता है।  कुछ निष्कर्ष इस तरह से होते हैं, जिनकी कल्पना भी नहीं की  जाती है।  उक्त उदाहरण में एक निष्कर्ष यह भी हो सकता है कि एक विशेष प्रकार की शिक्षण सामग्री अधिक तथा अच्छी शिक्षा देने में विशेष उपयोगी सिद्ध हुई है। 

 7.  दूसरों के परिणामों की सूचना

 यह क्रियात्मक अनुसंधान का सातवा एवं अंतिम सोपान कहलाता है।  दूसरे व्यक्ति को योजना के परिणामों की सूचना देना।  उदाहरणार्थ अगर उक्त योजना, विद्यालय के कुछ भी शिक्षकों द्वारा निर्मित तथा कार्यान्वित की गई है, तो उसके परिणामों की सूचना विद्यालय के शिक्षकों को दी जानी आवश्यक होती है।  इन परिणामों से दूसरे विद्यालय के शिक्षकों को भी अवगत कराया जाना चाहिए।  इसकी आवश्यकता बताते हुए एंडरसन ने कहा है कि ‘ विद्यालय के लोगों को इस बात में रुचि होती है कि अनुसंधान किस प्रकार किया जाता है और उसके क्या परिणाम है? परिणाम तथा जो व्यक्ति क्रियात्मक अनुसंधान करते हैं, उन पर उसकी सूचना देने का उत्तरदायित्व है।’

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