शिक्षण अधिगम प्रक्रिया, शिक्षण सूत्र(Hindi Pedagogy)
आज की इस पोस्ट में हम आपके लिए hindi pedagogy के अंतर्गत आने वाले बहुत ही महत्वपूर्ण Topic शिक्षण अधिगम प्रक्रिया (Shikshan adhigam prakriya) आप के साथ शेयर कर रहे हैं। इस पोस्ट में हमने शिक्षण अधिगम प्रक्रिया (Shikshan adhigam prakriya) को बहुत ही विस्तार से समझाया है। इस पोस्ट में हम जानेगे hindi pedagogy के अंतर्गत शिक्षण अधिगम प्रक्रिया, शिक्षण सूत्र, अच्छे शिक्षक तथा पाठ्यक्रम की विशेषताएं के बारे में विस्तार पूर्वक सभी महत्वपूर्ण जानकारी है।
शिक्षण अधिगम प्रक्रिया (Shikshan adhigam prakriya) से विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में जैसे कि CTET,UPTET,REET,MPTET,HTET,2nd grade में इससे संबंधित प्रश्न पूछे जाते हैं। इन सभी परीक्षाओं की दृष्टि से यह बहुत ही महत्वपूर्ण विषय होता है। आशा है, यह पोस्ट आप सभी के लिए उपयोगी सिद्ध होगी ।आगामी प्रतियोगिताओं के लिए आप सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं !!!
शिक्षण अधिगम प्रक्रिया(Shikshan adhigam prakriya)
शिक्षण की परिभाषाएं( Shikshan ki paribhasha)
हफ एवं डंकन के अनुसार : “शिक्षण चार चरणों वाली प्रक्रिया है। योजना, निर्देशन, मापन एवं मूल्यांकन।”
बटर्न के अनुसार : “शिक्षण अधिगम हेतु प्रेरणा, पथ प्रदर्शन व प्रोत्साहन है।”
शिक्षण की विशेषताएं( Shikshan ki visheshtayen)
1 शिक्षण एक भाषाई प्रक्रिया है।
2 शिक्षण एक कला है।
3 इसे विकास की प्रक्रिया कहा जाता है।
4 शिक्षण एक त्रि – ध्रुवीय की प्रक्रिया है।
5 यह( शिक्षण) एक सामाजिक प्रक्रिया है।
6 शिक्षण एक अंतः क्रिया है।
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शिक्षण सूत्र( Shikshan Sutra)
(1) ज्ञात से अज्ञात की ओर
पढ़ने से पहले अध्यापक को प्रश्न करके पता कर लेना चाहिए कि बच्चों को इस पाठ के प्रति कितना ज्ञान है। इससे यह पता लग जाता है कि, बच्चों को क्या और कहां तक पढ़ाना है।
(2) सरल से कठिन की ओर
पहले अध्यापक को सरल रचनाएं प्रस्तुत करनी चाहिए। इसके बाद उससे थोड़ा सा ऊपर का स्तर तथा बिल्कुल अंत में मुश्किल रचनाएं प्रस्तुत करवानी चाहिए।
(3) विशिष्ट से सामान्य की ओर
अध्यापक को सबसे पहले पाठ का विशिष्ट रूप प्रस्तुत करना चाहिए। उसके बाद उसका सामान्य रूप क्योंकि बच्चे को विशेष रूप पर ज्यादा ध्यान देने की आदत होती है।
(4) मूर्त से अमूर्त\ स्थूल से सूक्ष्म की ओर
बच्चा उन चीजों के ऊपर तार्किक रूप से नहीं सोच सकता, जो उससे पहले नहीं देखी हुई है। अतः पहले बच्चों को बस में दिखानी चाहिए बाद में उनको हटा कर उन पर ध्यान केंद्रित करने के लिए बोलना चाहिए।
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(5) विश्लेषण से संश्लेषण की ओर
विश्लेषण का अर्थ होता है। टुकड़ों में तोड़ ना ऑल संश्लेषण का अर्थ होता है जोड़ना। उदाहरण के लिए- जब हम किसी कविता का अनुवाद करते हैं, तो एक एक शब्द को तोड़कर लिखते हैं, और जब हम उसके निष्कर्ष को देते हैं। तो पूरी कविता का निचोड़ बतलाते हैं।
(6) बाल केंद्रित के अनुसार
अध्यापक को बाल केंद्रित शिक्षा को ध्यान में रखकर शिक्षा देनी चाहिए। बच्चों की रुचि हो तथा व्यवहार को ध्यान में रखकर शिक्षण विधियों का प्रयोग करना चाहिए।
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(7) पूर्ण से अंश की ओर
अध्यापक को पहले पूरे भाग की जानकारी देनी चाहिए। बाद में उसके छोटे-छोटे भागों की जानकारी देनी चाहिए। जैसे कि पहले वाक्य क्या होता है बताए फिर उसके भागों के बारे में बताएं।
(8) मनोविज्ञान से तार्किक की ओर
अध्यापक को पहले बच्चों को मनोविज्ञान के अंतर्गत समझाना चाहिए इसके पश्चात तार्किक से संबंधित ज्ञान देना चाहिए।
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पाठ्यक्रम की विशेषताएं(NCF-2005)
- पाठ्यक्रम लचीला होना चाहिए।
- पाठ्यक्रम पूर्ण ज्ञान पर आधारित होना चाहिए।
- मानसिक स्तर के अनुसार पाठ्यक्रम होना चाहिए।
- पाठ्यक्रम सामाजिक आवश्यकताएं के अनुसार होना चाहिए।
- इसे( पाठ्यक्रम) को नैतिक मूल्यों पर आधारित होना चाहिए।
- पाठ्यक्रम दैनिक जीवन को जोड़ने वाला होना चाहिए।
- इसे अभ्यास पर आधारित होना चाहिए।
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अच्छे शिक्षक की विशेषताएं
- अपने विषय वस्तु का संपूर्ण ज्ञान होना।
- अच्छे कक्षा प्रबंधन कौशल का ज्ञान होना।
- ज्यादा से ज्यादा शिक्षण विधियों का ज्ञान।
- प्रभावी अनुशासन कौशल में योग्य होना।
- माता पिता के साथ अच्छे से बच्चों के विषय में बात करने में योग्य।
- छात्रों के साथ मजबूत संबंध बनाने में योग्य होना।
- व्यक्तिगत विभिन्नता के अनुसार पढ़ाने में योग्य।
- छात्रों का सम्मान करने वाला।
- एक अच्छा शिक्षक छात्रों की सभी उम्मीदों को पूरा करता है।
- अच्छे शिक्षक का व्यवहार छात्रों के प्रति सदैव उच्च कोटि का होता है उसके व्यवहार में सहानुभूति, सहयोग, समाज, मृदुभाषी एवं संयम आदि के गुण विद्यमान होते हैं।
इस पोस्ट में हमने शिक्षण अधिगम प्रक्रिया (Shikshan adhigam prakriya) आप सभी के साथ शेयर किए हैं आशा है यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी साबित होगी!!!
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