संस्कृत में आचार्य चाणक्य: पर निबंध || Sanskrit Essay on Chanakya

Sanskrit Essay on Chanakya: आर्टिकल में हम संस्कृत भाषा में आचार्य चाणक्य पर निबंध आपके साथ शेयर कर रहे हैं  जो इस प्रकार है। चाणक्य के विषय में इतिहास में ज्यादा प्रमाण नहीं मिलाता है, कुछ विद्वान इनके नाम के पीछे भी अपनी राय रखते है, क्योंकि इनका नाम कौटिल्य भी था. कुछ लोग मानते है। कुटल गोत्र होने के कारण इनका नाम कौटिल्य पड़ा। भारत में आज भी चाणक्य को चाणक्य और कौटिल्य आदि नामो से ही जाना जाता है ।

♦ आचार्य चाणक्य के बारे में  महत्वपूर्ण  जानकारी ♦

नाम (Name) चाणक्य
जन्म (Birthday) 350 ईसा पूर्व (अनुमानित स्पष्ट नहीं है)
मृत्यु की तिथि (Death) 275 ईसा पूर्व, पाटलिपुत्र, (आधुनिक पटना में) भारत
पिता (Father Name) ऋषि कानाक या चैनिन (जैन ग्रंथों के अनुसार)
माता (Mother Name) चनेश्वरी (जैन ग्रंथों के अनुसार)
शैक्षिक योग्यता (Education) समाजशास्त्र, राजनीति, अर्थशास्त्र, दर्शन, आदि का अध्ययन।
वैवाहिक स्थिति विवाहित

आचार्य चाणक्य के जन्म के बारे में अलग-अलग मतभेद हैं। वहीं कुछ विद्धान उन्हें कुटिल वंश का मानते हैं इसलिए कहा जाता है कि कुटिल वंश में जन्म लेने की वजह से उन्हें कौटिल्य के नाम से जाना गया। जबकि कुछ विद्धानों की माने तो वे अपने उग्र और गूढ़ स्वभाव की वजह सेत ‘कौटिल्य’ के नाम से जाने गए।

महात्मा गांधी का निबंध संस्कृत में

संस्कृत निबंध:स्वामी विवेकानन्दः

Sanskrit Essay on Chanakya (संस्कृत में आचार्य चाणक्य: पर निबंध)

चाणक्यः मौर्यवंशप्रथमराज्ञः चंद्रगुप्तस्य मन्त्रीसहायक: च आसीत् । सः कौटिल्यः वा विष्णुगुप्तः इति नामभ्याम् अपि प्रसिद्धः आसीत् । सः प्राचीनभारतस्यप्रसिद्धतम: कूटनीतिज्ञोऽभवत् । तस्य साहाय्येन एव चन्द्रगुप्तेन नन्दराज्यम् अवस्थापितम् मौर्यवंशं:स्थापित:च । चाणक्य: अर्थशास्त्रम् इति पुस्तकस्य लेखको आसीत् । राजनीत्यां तस्य नीतिः चाणक्यनीति: इति नाम्ना प्रसिद्धा अस्ति ।चाणक्यस्य पिता चणकः कश्चनब्राह्मणः आसीत् । बाल्ये चाणक्यः सर्वान् वेदान् शास्त्राणि च अपठत्। परं सः नीतिशास्त्रम् एव इच्छति स्म । सः यौवने तक्षशीलायाम् अवसत्। एकदा सः मगधस्य राज्ञा धननन्देन लङ्घितः आसीत् । अतः चाणक्यः धनानन्दम् प्रति प्रतीकारम् ऐच्छत् । चाणक्यः धीरेण चन्द्रगुप्तमौर्येण मिलित्वा तं सिंहासने स्थापयितुम् अचिन्तयत् । एका माता स्वपुत्राय अक्रुध्यत्। सा उवाच ” पुत्र! त्वम् किमर्थम् एतद् उष्णम् अपूपम् मध्यभागात् अखादत् । अपूपम् तस्य कोणात् खाद” इति । तस्याः वचनानि श्रुत्वा चाणक्यः उपायम् अकरोत्। सः नन्दराज्यस्य सीमाः प्रथमम् अजयत् । ततः सः चन्द्रगुप्तमौर्यं सिंहासने स्थापयित्वा तम् अरक्षत् । विशाखदत्तस्य नाटकम् मुद्रराक्षसं चाणक्यस्य चरितं कथयति ।

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