Maths Pedagogy Important Notes In Hindi
इस पोस्ट में हम आपके साथ Maths Pedagogy Notes on Diagnostic and Remedial Teaching in Hindi (निदानात्मक एवं उपचारात्मक शिक्षण ) के नोट्स शेयर कर रहे हैं इस पोस्ट में निदानात्मक परीक्षण के प्रकार, निदानात्मक शिक्षण में नैदानिक परीक्षण के उद्देश्य (उपचारात्मक शिक्षण,उपचारात्मक शिक्षण के सिद्धांत,गणित शिक्षण की समस्याएं(Math teaching problems) के complete notes आपके साथ शेयर किए हैं।
जो भी अभ्यार्थी किसी भी शिक्षक भर्ती की तैयारी कर रहे हैं उन सभी के लिए यह बहुत ही महत्वपूर्ण टॉपिक हो जाता है। जैसा कि आप सभी को पता होगा कि Sikshak Bharti ,CTET, UPTET, TGT, & ALL Teachers Exam मैं इससे संबंधित प्रश्न पूछे जाते हैं, तो इसी को ध्यान में रखते हुए हमने इस पोस्ट में Maths Pedagogy Notes on Diagnostic and Remedial Teaching in Hindi (निदानात्मक एवं उपचारात्मक शिक्षण ) को विस्तारपूर्वक बताया गया है।
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निदानात्मक एवं उपचारात्मक शिक्षण (diagnostic and Remedial Teaching)
जैसा एक डॉक्टर जोगी का उपचार करने से पहले उसकी बीमारी की प्रकृति, प्रकार तथा लक्ष्मण का निदान करता है। ठीक उसी प्रकार गणित शिक्षक छात्रों को गणित के अध्ययन में क्या क्या कठिनाई है। वह कहां गलतियां करते हैं, किस प्रकार की गलती करते हैं, तथा क्यों करते हैं आदि का पता लगाने के लिए निदानात्मक परीक्षण करते हैं।
निदान का अर्थ होता है- जानना या पता लगाना शिक्षक पहले निदानात्मक शिक्षण द्वारा छात्रों की कठिनाइयां का निदान करते हैं तदोपरांत इनको अपनी व्यक्तिगत कठिनाइयों से मुक्त करने के लिए उपचारात्मक शिक्षण( remedial teaching ) का प्रयोग करते हैं
योकम व सिंपसन – “उपचारात्मक शिक्षण उचित रूप से निदानात्मक शिक्षण के बाद आता है.”
अतः प्रभावी शिक्षण तथा शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए निदानात्मक शिक्षण तथा उपचारात्मक शिक्षण बहुत जरूरी है।
नैदानिक परीक्षण में निम्नलिखित बिंदुओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
- उन विद्यार्थियों को खोजना, जिन्हें सहायता चाहिए
- त्रुटियां कहां हो रही है?
- त्रुटि क्यों हो रही है?
निदानात्मक परीक्षण का मुख्य उद्देश विश्लेषण करना है ना कि आकलन करना निदानात्मक परीक्षण गुणात्मक होते हैं ना कि मात्रात्मक।
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निदानात्मक परीक्षण के प्रकार (Types of diagnostic tests)
(1) शैक्षिक निदानात्मक परीक्षण (Educational diagnostic test)
(2) शारीरिक निदानात्मक परीक्षण (Physical diagnostic test)
निदानात्मक शिक्षण में नैदानिक परीक्षण के उद्देश्य (Objectives of diagnostic testing in diagnostic education)
1. गणित संबंधी कमजोरियों एवं विशिष्टता का पता लगाना।
2. पिछड़े बालकों की पहचान करना।
3. गणित विषय की अध्ययन- अध्यापन प्रक्रिया में सुधार करना।
4. उपचारात्मक शिक्षण की व्यवस्था करना।
5. गणित के पाठ्यक्रम में परिवर्तन लाना तथा बाल केंद्रित बनाना।
6. मूल्यांकन प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाने हेतु मूल्यांकन पद्धतियों में परिवर्तन करना।
7. छात्रों की कमियों एवं अच्छाइयों के आधार पर शैक्षणिक निर्देशन देना तथा उचित शिक्षण विधियों का प्रयोग करना।
नैदानिक परीक्षण के चरण (Steps of diagnostic testing)
शैक्षणिक निदान की मुख्य रूप से पांच चरण माने जाते हैं जिनके आधार पर प्रक्रिया को बनाया जाता है।
1. यह पता करना कि वह कौन से छात्र है जो कठिनाई का सामना कर रहे हैं अर्थात समस्यात्मक बालक की पहचान करना।
2. यह जानना कि बालक से त्रुटि कहां हो रही है।
3. कठिनाई/ त्रुटि की प्रकृति को जानने के बाद यह जानना की त्रुटियों के कारण क्या है।
- बच्चे में ध्यान ना दिया हो
- अनियमित उपस्थिति
- बीमारी
- विषय की कठिनाई
- समझ का स्तर
4. कारण पता हो जाने के बाद उस पर विचार किया जाता है, कि उपचार क्या किया जाए उपचार समस्या की प्रकृति पर निर्भर करता है।
5. उपचार देने के बाद ही यह क्रिया समाप्त नहीं हो जाती, बल्कि इस बात पर ध्यान दिया जाता है कि यह समस्या उत्पन्न ही ना हो.।
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उपचारात्मक शिक्षण (Remedial Teaching)
उपचारात्मक शिक्षण( remedial teaching ) के द्वारा एक शिक्षक अपने छात्रों के अधिगम संबंधी दोहे तथा कठिनाइयों को दूर करके उनकी गति के पद को प्रशस्त करने का प्रयास करता है। जिस प्रकार एक डॉक्टर व्यक्तियों के विभिन्न रोगों का उपचार करके उनको उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करने की चेष्टा करता है। उसी प्रकार शिक्षक छात्रों को अधिगम संबंधी 200 एवं कठिनाइयों से मुक्त करके उनको ज्ञान अर्जन की उचित दिशा की ओर मोड़ने का प्रयास करते हैं।
योकम व सिंपसन -“उपचारात्मक शिक्षण मैं इस विधि को खोजने का प्रयास करता है ,जो छात्र को अपनी कुशलता या विचार की त्रुटियों को दूर करने में सफलता प्रदान करें। “
प्लेयर, जॉन व सिंपसन – ” उपचारात्मक शिक्षण वास्तव में उत्तम शिक्षण है।जो छात्रों को अपनी वास्तविक स्थिति का ज्ञान प्रदान करता है और जो तू प्रेरित क्रियाओं द्वारा उसको अपनी कमजोरियों के क्षेत्रों में अधिक योग्यता की दिशा मे अग्रसर करता है। “
उपचारात्मक शिक्षण के सिद्धांत (principles of Remedial Teaching )
1. सुधारात्मक सामग्री को छात्र की कठिनाइयों को दूर करने के अनुसार डिजाइन करना चाहिए।
2. उपचारात्मक शिक्षण छात्रों की आयु, रुचि, योग्यता एवं अनुभवों के अनुकूल होना चाहिए।
3 .अध्यापक को निदानात्मक परीक्षण के निर्माण में दक्ष होना चाहिए।
4. उपचारात्मक शिक्षण के दौरान बालकों की रूचि को बनाए रखने के लिए उन्हें पर्याप्त प्रोत्साहन देते रहना चाहिए।
5. प्रक्रिया के समय छात्र को ज्यादा से ज्यादा सक्रिय रहना चाहिए।
6.. छात्र को अपनी सफलता के संबंध में शीघ्र परिणाम मिलने चाहिए।
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उपचारात्मक शिक्षण के उद्देश्य (Objectives/ Aim of Remedial Teaching )
1. छात्रों की अधिगम संबंधी कठिनाइयां, दोष तथा त्रुटियों का अंत करना।
2. छात्रों के अधिगम संबंधी दोष तथा त्रुटियों को इस प्रकार से दूर करना कि छात्र उन्हें भविष्य में पुनः दोहराए ही नहीं।
3. छात्रों की दोषपूर्ण आदतों एवं मनोवृति को समाप्त करना।
4. छात्रों में उन आवश्यक आदतों को संस्थाओं को दिखाना जो उनके द्वारा सीखी नहीं गई है।
5. योकम व सिंपसन – ” उपचारात्मक शिक्षण का उद्देश्य सब प्रकार की अधिगम संबंधी त्रुटियों को शुद्ध करने के लिए प्रभावशाली विधियों का विकास करना है।”
बालकों के लिए उपचारात्मक शिक्षण की प्रक्रिया (process of Remedial Teaching for children)
- गणित में कमजोर छात्रों को आगे बैठाना चाहिए।
- कक्षा में उदाहरणों का चरण विषय वस्तु एवं कठिनाई के स्तर को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए।
- छात्रों को कक्षा में तर्क तथा सोचने के अवसर देने चाहिए।
- प्रत्येक छात्र के 200 एवं बूटियों का व्यक्तिगत रूप से अध्ययन करके उसे उनको दूर करने के उपाय बताना चाहिए।
- छात्रों को छोटे-छोटे समूहों में विभाजित करके उनकी आवश्यकताओं के अनुसार शिक्षा प्रदान करना चाहिए।
- छात्रों को क्रियाशील रखने के लिए प्रश्नोत्तर विधि का प्रयोग करना चाहिए।
- अभी कमजोर छात्रों को कक्षा के बाद आवश्यकता अनुसार परामर्श देकर गणित सीखने में सहायता करनी चाहिए।
- समस्याओं को हल करते समय स्पष्ट तथा सरल भाषा का प्रयोग करना चाहिए।
- अंक गणित तथा बीजगणित के आधारभूत उप विषयों को पढ़ाते समय पूरी सावधानी बरतनी चाहिए जैसे कि दशमलव, प्रतिशत, अनुपात, समीकरण आदि.
- श्यामपट्ट पर लिखी हुई सामग्री व्यवस्थित स्पष्ट एवं उपयोगी होनी चाहिए।
- कमजोर छात्रों को कक्षा में पर्याप्त अभ्यास कराना चाहिए।
- ऐसे छात्रों को हतोत्साहित नहीं करना चाहिए.।
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गणित शिक्षण की समस्याएं (Math teaching problems)
अधिकांश विद्यार्थी गणित विषय में उतने निपुण नहीं है जितने कि उनसे आशा की जाती है। जिस के मुख्य कारण निम्नलिखित है।
(1) प्राथमिक स्तर पर छात्रों की गणितीय नीव का कमजोर होना
माध्यमिक स्तर पर गणित शिक्षण की एक प्रमुख समस्या यह भी है, कि छात्रों का प्राथमिक स्तर पर गणित शिक्षण बहुत कमजोर रूप से होता है। जिस कारण माध्यमिक स्तर पर छात्र गणित शिक्षण को ठीक से नहीं समझ पाते तथा इसी कारण से गणित शिक्षण के प्रति उनकी रुचि कम हो जाती है।
(2) गणित शिक्षक की शिक्षण विधि
शिक्षण विधि का सीधा संबंध अधिगम प्रक्रिया से होता है। सभी छात्र एक ही विधि से नहीं सीख पाते शिक्षण की विधि जितनी अधिक वैज्ञानिक एवं प्रभावशाली होगी उतनी ही सीखने की प्रक्रिया सरल एवं लाभप्रद होगी । बच्चों के लिए खेल विधि, करके सीखना, निरीक्षण विधि, योजना विधि, खोज विधि आदि का अपना अलग अलग महत्व होता है,लेकिन शिक्षक छात्रों की रूचि के अनुसार उन्हें शिक्षा ना देकर पुरानी विधियों पर ही निर्भर रहते हैं।
(3) शिक्षक का व्यवहार
शिक्षक का व्यवहार छात्रों की सीखने को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है। शिक्षक में एक आदर्श शिक्षक के सभी गुण होने चाहिए जैसे सहयोग,मृदुभाषी, संयम, शिक्षण कला में निपुण आदि तब ही छात्र सहज रूप से सब कुछ सीख सकेंगे, लेकिन यदि शिक्षक का व्यवहार अत्यंत कठोर हो तो छात्र उसकी कक्षा में पढ़ना पसंद नहीं करेंगे।
(4) छात्रों का शारीरिक स्वास्थ्य एवं मानसिक स्वास्थ्य
गणित शिक्षण के लिए छात्रों का मानसिक एवं शारीरिक रूप से स्वस्थ होना अत्यंत आवश्यक होता है, क्योंकि बालक के ध्यान रुचि व एकाग्रता पर उसका प्रभाव पड़ता है।
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(5) गणित शिक्षण का समय
यदि छात्र अधिक देर तक किसी क्रिया को करता रहता है, तो वह थकान का अनुभव करने लगता है। जो सीखने की प्रक्रिया में बाधा डालती है। विद्यालय में समय चक्र बनाते समय गणित जैसे कठिन विषयों को पहले तथा सरल विषयों को बाद में पढ़ाने की व्यवस्था बनाई जानी चाहिए, कक्षा की समय अवधि का ध्यान रखना चाहिए।
(6) अध्यापक का विषय के प्रति सही ज्ञान ना होना
यदि किसी अध्यापक को अपनी विषय की गहन जानकारी नहीं है। तो वह छात्रों को बहुत कुछ नहीं दे पाएगा। यदि अध्यापक को अपने विषय का पूर्ण ज्ञान होगा तो वह आत्मविश्वास के साथ छात्रों को नवीन ज्ञान देने में समर्थ होगा।
(7) व्यक्तिगत भेदो के ज्ञान की समस्या
प्रत्येक छात्र की बुद्धि, रुचि, योग्यता, क्षमता आदि अलग अलग होती है एक कक्षा में अध्यापक को तीन प्रकार के छात्रों का सामना करना होता है । मेधावी, सामान्य तथा पिछड़े हुए छात्र अतः शिक्षक को सभी प्रकार के छात्रों की समस्या को समझने वाला तथा हल करने वाला होना चाहिए, ज्यादातर शिक्षकों में यह गुण नहीं होता है।
(8) अभ्यास के उचित विभाजन की व्यवस्था ना होना
अभ्यास, गणित शिक्षण का एक महत्वपूर्ण अंग है । अभ्यास उतना होना चाहिए जितना छात्र उसे बिना थकावट का अनुभव किए कर सके तथा यह प्रक्रिया निरंतर होनी चाहिए आवश्यकता से अधिक अभ्यास कराने से सीखने की क्षमता का हास्य में होता है। ॰
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(9) पाठ्यक्रम की संरचना की समस्या
गणित शिक्षण में पाठ्यक्रम की संरचना का बड़ा महत्व है। पाठ्यक्रम सरल से कठिन की ओर,बाल केंद्रित तथा जीवन से संबंधित सिद्धांत पर आधारित होना चाहिए। लेकिन माध्यमिक स्तर पर पाठ्यक्रम की संरचना का व्यवस्थित ना होना भी एक समस्या है।
(10) गणित शिक्षण के लिए उचित वातावरण का ना होना
विद्यालयों में गणित शिक्षण के लिए उचित वातावरण की समस्या आज गणित शिक्षण की एक प्रमुख समस्या बन गई है. गणित शिक्षण के लिए गणित कक्षा, गणित प्रयोगशाला, पुस्तकालय तथा कक्षा कक्ष में प्रकाश आदि बहुत प्रमुख है ,जिसका प्रबंध अधिकांश विद्यालयों में नहीं होता है।
दोस्तों इस पोस्ट में हमने आप के साथ Maths Pedagogy Notes on Diagnostic and Remedial Teaching in Hindi(निदानात्मक एवं उपचारात्मक शिक्षण ) के important notes आपके साथ शेयर किए हैं। अगर आप शिक्षक भर्ती से संबंधित अन्य नोट्स या Study material प्राप्त करना चाहते हैं तो नीचे कमेंट बॉक्स में कमेंट करके अवश्य बताएं आशा है यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी साबित होगी इस पोस्ट को पढ़ने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद!!!
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