पर्यावरण अध्ययन की शिक्षण विधियां (Evs Pedagogy)
दोस्तों exambaaz.com में आपका स्वागत है, आज के इस आर्टिकल में हम आपके लिए पर्यावरण अध्ययन की शिक्षण अधिगम की विधियां(environment teaching method in hindi)(Teaching Methods of EVS) शेयर कर रहे हैं। इस आर्टिकल में आपको पर्यावरण अध्ययन की सभी विधियों के बारे में संपूर्ण जानकारी विस्तार पूर्वक प्राप्त होगी पर्यावरण पेडगॉजी (Evs Pedagogy Notes) के अंतर्गत पर्यावरण अध्ययन की शिक्षण विधियों से भी प्रश्न पूछे जाते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए इस आर्टिकल में हमने पर्यावरण अध्ययन की विधियां जैसे प्रक्षेण विधि, खेल विधि, कहानी विधि, अन्वेषण विधि, समस्या समाधान विधि ,परियोजना विधि इन सभी विधियों के बारे में विस्तार पूर्वक इस आर्टिकल में बताया गया है।
Evs Pedagogy Notes का यह छठवां टॉपिक है । इससे पहले के टॉपिक की लिंक नीचे दी गई है । अगर आप उन टॉपिक्स को पढ़ना चाहते हैं तो नीचे दी गई लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं।
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Teaching Methods of Evs
Topic-6
1. प्रेक्षण विधि (observation method)
- मनुष्य हमेशा अपने चारों और होने वाली भौतिक एवं सामाजिक घटनाओं को लगातार देखते हैं। यह परीक्षण की प्रक्रिया ही थी जिसने संसार को कुछ महान वैज्ञानिक दिए।
- N.C.E.R. T द्वारा प्रकाशित पर्यावरण की पुस्तकों का शीर्षक आसपास देखना काफी उपयुक्त है। यह इस तरफ इशारा करता है कि पर्यावरण अध्ययन आसपास के संसार को प्रेक्षण, खोज को खोजने से संबंधित है।
- शिक्षण अधिगम उद्देश्यों की प्राप्ति बहुत हद तक शिक्षण अधिगम के उपयोग पर ही आधारित होती है। इस प्रकार शिक्षण विधियां कक्षा में हो रही क्रियाओं की विधियां ही है।
- प्रत्येक विधि की अपनी अपनी उपयोगिता एवं सीमाएं है। पर्यावरण अध्ययन में अनेक विधियां बच्चों की शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाने में सहायक होती है।
- ऐसा कहा जाता है कि शिशु जिन तरीकों से सीखते हैंउनमें से एक प्रेक्षण है। आसपास की वस्तुएं देखना, उनका विश्लेषण करना तथा उस प्रेक्षण से कुछ सीखना, अपने अनुभवों पर आधारित ज्ञान के निर्माण एवं पुनर्निर्माण का मूल है।
( पर्यावरण अध्ययन में) प्रेक्षण विधि के उदाहरण
(1) जीवन का वृक्ष
उद्देश्य- बच्चों को इस बात से अवगत कराना कि पेड़ एक भरपूर एवं जटिल जीवन जीते हैं।
विधि- प्रत्येक बच्चे से कहें कि वह अपने लिए एक पेड़ चुने तथा उसका भली-भांति प्रेक्षण करें।
(2) बादल
उद्देश्य- आकाश में बादलों की आकृतियों का प्रेक्षण करना।
विधि- जिस दिन आकाश में बादल घिर आए, बच्चों को बाहर ले जाओ तथा बादल देखने को कहो।
शिक्षण अधिगम की उचित विधि का चयन करना
शिक्षण अधिगम की उचित विधि का चयन दो मुख्य घटकों पर आधारित होता है जो निम्नलिखित है।
1. कक्षा में पढ़ाई जाने वाली विषय वस्तु की प्रकृति।
2. दूसरा मुख्य घटक है जो, आपको ध्यान रखना है। आपको विद्यार्थी की वरीय अधिगम शैली, सभी शिक्षार्थियों की बौद्धिक योग्यता एविन होती है। अलग-अलग प्रकार से सोचते वा सीखते हैं।
किसी एक ही शिक्षण विधि पर जोर ना दे।
प्रेक्षण विधि का उपयोग कराना
(1) प्रेक्षण के लिए योजना बनाना
” प्रेक्षण” के माध्यम से किस प्रकार की स्थितियां, क्रियाएं या पर्यावरण से जुड़े हुए विश्लेषकों का निर्धारण करता है।
(2) वास्तविक परीक्षण
उद्देश्य तथा संसाधनों की उपलब्धि एवं पर्यावरणीय परिस्थितियों पर आधारित परीक्षण हेतु सभी को एवं तकनीक का प्रयोग करना।
(3) विश्लेषण एवं व्याख्या
जो भी प्रेक्षण करके रिकॉर्ड किया गया है। उस का गहन विश्लेषण किया जाता है, ताकि आवश्यक व्याख्या की जा सके।
(4)परिणामों का सामान्यकरण
व्याख्या तथा परिणाम देखने के बाद उन्हें सामान्यकृत विचारों ,तथ्यों तथा नियमों को स्थापित करने के लिए प्रयोग किया जाता है। प्रेक्षण करने के लिए साधन कार्य पत्र, सूचियां, चेक लिस्ट, रेटिंग स्केल, तथा अंक कांड होते हैं।
प्रेक्षण विधि की उपयोगिता-
- बच्चों को अपना पर्यावरण खोजने के लिए प्रोत्साहित करती है।
- प्रेक्षण के कौशलों का विकास होता है।
- इस विधि के माध्यम से बच्चों को देखने सोचने तथा कड़ियां स्थापित करने के लिए प्रोत्साहन मिलता है।
- बच्चों में जिज्ञासा का विकास एवं संतुष्टि की प्राप्ति होती है।
- इस विधि के माध्यम से प्राप्त ज्ञान वास्तविक वस्तुओं एवं स्थूल स्थितियों से प्राप्त होता है।
- बच्चे समानताएं एवं विभिन्नताएं समझ पाते हैं।
2. कहानी विधि (Story method)
कहानी विधि के माध्यम से विद्यालयों में विस्तृत पाठ्यक्रम वाले विषयों का शिक्षण कराने के लिए यह विधि बहुत ही महत्वपूर्ण है इस विधि के माध्यम से छोटे बच्चों के शिक्षण को और अधिक प्रभावशाली बनाया जाता है।
कहानी का चुनाव- कहानी का चुनाव करने के लिए निम्न बातों को ध्यान में रखना होता है।
(1) कहानी विषय वस्तु पर आधारित होनी चाहिए।
(2) कहानी बच्चों की मानसिक आयु के अनुकूल भी होनी चाहिए।
(3) कहानी सुनते समय प्रयास करना चाहिए की कहानी छात्र के वास्तविक जीवन से जुड़ सके।
(4) कम उम्र के विद्यार्थियों के लिए जिस कहानी का चुनाव किया जाए, वह अत्यंत स्पष्ट तथा छोटे-छोटे बच्चों में होनी चाहिए।
(5) कहानी सुनाते समय शिक्षक को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि घटना चित्र बालकों के मस्तिष्क पर अंकित हो जाए।
(6) कहानी कहने के बाद कथानक से संबंधित प्रश्न करने चाहिए।
कहानी शिक्षण की विशेषताएं
- छोटे स्तर के शिक्षण हेतु अधिक उपयोगी शिक्षण विधि है। इस विधि मेंछात्रों का मनोरंजन अधिक होता है।
- इस विधि में छात्रों का ध्यान केंद्रित रहता है।
- कल्पना शक्ति का विकास होता है एवं संवेग ओं का प्रशिक्षण किया जाता है।
- बालकों को अपने पर्यावरण के बारे में जानकारी मिलती है।
- इस विधि के माध्यम से बालकों के चरित्र का विकास होता है।
3. खेल विधि(Game method)
इस विधि के प्रतिपादक” फ्रोबेल” माने जाते हैं। इस विधि के द्वारा प्राथमिक स्तर के छात्र मनोरंजन या खेल द्वारा शीघ्र ही अपने पाठ में रुचि लेने लगते हैं। तथा सीखते हैं, इसीलिए इस स्तर पर खेल विधि बहुत अधिक महत्वपूर्ण होती है। खेल खेल में छात्र जो सीख जाते हैं वह कभी नहीं भूलते हैं।
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खेल विधि का प्रयोग
- शिक्षक को खेल विधि की पूर्ण जानकारी होनी चाहिए खेल की पूर्ण तैयारी होने पर बालकों को खेल के स्थान पर ले जाना चाहिए।
- खेलने का स्थान किसी पार्क, बाग विद्यालय प्रांगण में निर्धारित किया जाना चाहिए।
- खेल की सामग्री का चयन बालक की मानसिक, बौद्धिक एवं शारीरिक विकास के स्तर की विभिन्नताओ को ध्यान में रखते हुए करना चाहिए।
खेल विधि का महत्व
- खेल विधि के माध्यम से स्वतंत्रता का वातावरण मिलता है।
- इस विधि के द्वारा व्यक्तित्व का विकास होता है साथ ही छात्र के मानसिक, शारीरिक एवं सामाजिक शक्तियों का भी विकास होता है।
- सहयोग एवं प्रेम का वातावरण मिलता है।
- छात्र करके सीखते हैं जो स्थाई ज्ञान प्रदान करता है छात्रों को क्रियाशीलता प्रदान करता है।
- खेल द्वारा प्राप्त स्थाई ज्ञान बालक में आत्मविश्वास जागृत करता है। शिक्षण प्रक्रिया तीव्र हो जाती है। एवं शिक्षण में रोचकता एवं आनंद का समावेश हो जाता है।
4. समस्या समाधान विधि (Problem solving method)
इस विधि में मानसिक क्रियाओं पर बल दिया जाता है। अध्यापक द्वारा विद्यार्थियों के सम्मुख समस्या प्रस्तुत की जाती है। जिसका समाधान विद्यार्थी अपने सीखे हुए नियम एवं सिद्धांत व प्रत्ययो की सहायता से करते हैं। कठिनाइयां कि स्तर का ध्यान रखकर समस्याओं का चयन किया जाता है।
समस्या समाधान विधि के उपयोग के चरण
- समस्या की उत्पत्ति एवं चयन करना।
- समस्या का निवारण करना।
- वैकल्पिक समाधानो को खोजना, उनकी जांच करना।
- विचार-विमर्श करके उपयुक्त विकल्प को खोजना।
- रणनीति पर कार्य करना एवं मूल्यांकन करना।
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समस्या समाधान विधि के लाभ
- इस विधि के माध्यम से विषय में रुचि उत्पन्न होती है।
- अवलोकन क्षमता का विकास होता है।
- तार्किक क्षमता का भी विकास होता है एवं चिंतन शक्ति का विकास होता है।
- इस विधि के माध्यम से भावी जीवन में आने वाली समस्याओं को हल करने में मदद मिलती है।
- विद्यार्थी स्वयं सक्रिय रहते हैं, इसीलिए अर्जित ज्ञान स्थाई हो जाता है।
- स्वाध्याय की आदत का विकास होता है।
- यह विधि पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं को समझने के लिए अंतर्दृष्टि के विकास में सहायक होती है।
- बच्चों में बहुमुखी चंदन को बढ़ावा देने हेतु उपयोगी।
- समूह प्रक्रियाओं में बच्चों को भागीदारी के योग्य बनाने हेतु
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5. अन्वेषण विधि\ खोज विधि (Heuristic method)
- अन्वेषण विधि के जनक एच.ई. आर्मस्ट्रांग माने जाते हैं।
- “हयूरिस्टिक” एक ग्रीक शब्द है। इसका अर्थ” मैं खोज करता हूं” होता है।
- यह शिक्षण की एक ऐसी विधि है जिसमें विद्यार्थी अनुसंधानकर्ता के रूप में कार्य करता है। विद्यार्थी को अपने निरीक्षण तथा प्रयोग में स्वयं खोजना होता है।
- अध्यापक विद्यार्थियों को बहुत से क्रियाकलाप बताते हैं। फिर विद्यार्थी स्वयं प्रयोग करके निष्कर्ष निकालते हैं।
अन्वेषण विधि के गुण
- इस विधि का प्रमुख गुण यह है कि इसमें बच्चों में वैज्ञानिक सोच का विकास होता है।
- बच्चे सदैव क्रियाशील रहते हैं।
- इस विधि के माध्यम से बच्चों में प्रेक्षण करने की क्षमता का विकास होता है।
- अन्वेषण विधि के द्वारा वे आंकड़े एकत्रित करना सीखते हैं। आंकड़ों की व्याख्या करना, प्रायोगिक हल तैयार करना और अपेक्षित निष्कर्ष पर पहुंचना सीखते हैं।
अन्वेषण विधि के चरण
1 समस्या की पहचान करना
2 अवलोकन और प्रयोग करना
3 समस्या समाधान
4 मूल्यांकन करना
6. क्षेत्र भ्रमण(Field trip)
क्षेत्र भ्रमण विधि के प्रतिपादक” प्रोफेसर रैन”माने जाते हैं। क्षेत्र भ्रमण लोगों के एक समूह को उनके सामान्य पर्यावरण से दूर की यात्रा पर ले जाना है। जैसे कि- चिड़ियाघर, बाग, उद्यान, अजायबघर के भ्रमण विद्यालय जीवन का अंग है। इन ब्राह्मणों को सफल बनाने का मंत्र यह है कि ऐसी विभिन्न क्रियाओं की योजना बनाई जाए जो कि सुखद एवं शैक्षणिक दोनों हो। यह भी महत्वपूर्ण है कि शैक्षिक भाग पर अधिक जोर ना दिया जाए।
उदाहरण- ” पौधे के अध्ययन” के लिए क्षेत्र भ्रमण कराना।
उद्देश्य- इसका उद्देश्य है कि बच्चे पौधों के नाम, बाहरी लक्षणों से भेद कराना सीखेंगे, उनके रूप व आकार एवं पदों की डिजाइन में अंतर देख पाएंगे। प्रत्येक पौधे की उपयोगिता के बारे में जाने।
सफल क्षेत्र भ्रमण के चरण
1 भ्रमण हेतु उद्देश्य निर्धारित करना
एक शिक्षक होने के नाते सबसे पहले आपको भ्रमण हेतु शैक्षिक उद्देश्य निर्धारित करना होगा।
2 कार्यक्रम की योजना बनाना
भ्रमण पर जाने से पहले कार्यक्रम की पूर्ण योजना बनानी होती है। जैसे- सब कुछ देखने में कितना समय लगेगा, किस रास्ते से जाना है। क्रियाएं करवाने के लिए जगह की उपलब्धता, किस प्रकार की क्रियाएं अधिगम को बेहतर करने के लिए ठीक रहेगी। याद रहे आप एक ही बार में भ्रमण मे बहुत अधिक सीखने के प्रयास ना करें।
3 बच्चों को संक्षेप में बताना
भ्रमण पर जाने से पहले ही बच्चों को यह बताना महत्वपूर्ण है कि वे कहां जा रहे हैं,वे क्या देखेंगे, भ्रमण के उद्देश्य क्या है, तथा योजना क्या है भ्रमण के दौरान “क्या करना है क्या नहीं करना है।”
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4 भ्रमण के बाद
भ्रमण के समाप्त होने के बाद बच्चों को एक स्थान पर एकत्र करके एक संक्षिप्त मौखिक वार्तालाप की जा सकती है। या विद्यालय में आकर, ऐसे सत्र में चर्चाएं प्रश्न उत्तर, क्विज भ्रमण के बारे में लिखना या चित्र बनाना आदि।
5 कार्य का मूल्यांकन करना
भ्रमण द्वारा जिन उद्देश्यों की प्राप्ति करना चाहते थे। वे पूरे हुए या नहीं
- यदि उद्देश्य प्राप्त नहीं हुए तो उसके क्या कारण थे?
- महाराणा आपके वश में थे या बाहर?
- भ्रमण के समय समूह ने कुछ ऐसा व्यवहार किया जिसकी आशा नहीं थी?
- क्या भ्रमण के समय परिस्थितियां सही थी?
- क्या समय पर्याप्त था? क्या स्टाफ पर्याप्त था।
- भविष्य में इसे बेहतर बनाने के लिए क्या अलग किया जा सकता है?
कार्यपत्रक(Work Sheet)
कार्यपत्रक को किसी भी प्रकार केभ्रमण हेतु प्रयोग में लाया जा सकता है। जैसे- पार्क, चिड़ियाघर, ऐतिहासिक स्थल इत्यादि के भ्रमण के लिए।
कार्यपत्रक ब्राह्मण को एक उद्देश्य देने में सहायता करते हैं क्योंकि बच्चे पूरी तरह से व्यस्त हो जाते हैं। अपने खास अवलोकन, अनु क्रियाओं तथा दृष्टिकोण बताते हैं। कार्य तो छोटे समूहों में बांटने में सहायता करते हैं। जो स्वतंत्र रूप से कार्य कर सकते हैं।
7. परियोजना विधि (Project method)
किलपैट्रिक(प्रतिपादक) के अनुसार ” परियोजना एक पूरे दिल से की जानेवाली उद्देश्य पूर्ण क्रिया है, जो कि सामाजिक पर्यावरण में संपादित की जाती है।”
परियोजना विधि के चरण
परियोजना विधि के तीन प्रमुख चरण होते हैं जो कि इस प्रकार है।
(1 ) क्रिया – पूर्व अवस्था
- परियोजना कार्य की समस्या तथा उसके उद्देश्य कथन ।
- चुनी गई परियोजना के विभिन्न पक्षों को निर्धारित करना तथा नियोजित करना जैसे कि संसाधन, निश्चित कार्य, जोखिम\ चुनौतियां, प्रलेखन आदि।
- परियोजना टीम को दीक्षित करना- मेलजोल बढ़ाना, भूमिका एवं कार्य बांटना।
(2) क्रिया अवस्था
- परियोजना के स्त्रोत एवं उपकरणों की पहचान।
- योजना बनाना तथा उस पर कार्य करना।
- परी योजना के लिए अलग-अलग संभावित क्रियाकलाप एवं कार्यों की सूची बनाना।
- कार्यक्षेत्र, लक्ष्य समूह की पहचान करना, उपकरणों को संचालित करना तथा तथ्य एकत्रित करने के लिए निर्देश देना।
क्रियोतरअवस्था
- तथ्यों को एकत्रित करने , विश्लेषण करने तथा समझने का कार्य।
- समस्या के समाधान की ओर जाना।
- अनुभव पर विचार करना अनुभवों को प्रलेखित करना।
शिक्षक की भूमिका एक संसाधक में परिवर्तित हो जाती है। शिक्षक द्वारा बच्चों को चुनाव करने, योजना बनाने, लागू करने तथा मूल्यांकन करने में दिशा प्रदान करने की आवश्यकता पड़ सकती है। ताकि परियोजना एक उद्देश्य पूर्ण एवं अर्थ पूर्ण अधिगम अनुभव बन पाए।
उदाहरण- सफाई अभियान
- बच्चे विद्यालय को साफ करने का अभियान चला सकते हैं।
- विद्यार्थियों के समूह 1 सप्ताह के लिए प्रतिदिन विभिन्न क्षेत्रों का निरीक्षण करेंगे। अवलोकन करेंगे तथा जिस प्रकार का कचरा उन्हें मिला कितना और कहां मिला उसकी सूची बनाएंगे।
- बच्चों से खाद का एक गड्ढा बनवाएं।
परियोजना विधि की उपयोगिताए
- अधिगम के नियम जैसे कि अधिगम हेतु तैयारी, इसका प्रभाव तथा प्रोत्साहन का घटक, इस विधि में भली-भांति प्रयोग होते हैं।
- अनुभव वास्तविक जीवन पर आधारित होता है। इसीलिए लंबे समय तक बना रहता है।
- यह कार्य अनुभव, अभिसारी चिंतन आत्मविश्वास तथा आत्म अनुशासन का अवसर प्रदान करती है।
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